Book Title: Samyktotsav Jaysenam Vijaysen
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Rupchandji Chagniramji Sancheti

View full book text
Previous | Next

Page 7
________________ फेडूं मैं थारे ७८ .. तणों पर्दू प्यारे तणी पामुस्यु लण पामस्यु लग. वहे कहे . तेनुना दोपे तनुजा समा मय मेमांश्रुत नयनां श्रुत मर्षे स्यन्द हर्षानन्द पाछे धावे पाछे आवा आया आदि सो आरीसो नीम दीये युक्ति पुक्ति वहां यहाँ अजा जे अजाने मेहल संकीर्षा संकीर्ण थापे क्यों माहेरो महिरो ॥४॥ मान .. भगी नगद विदरा अखणु भणी नणद बिद्या अपणो कह . . कयो तजे ... मगन युगन्द्रिया गगन युगत्रिया माने

Loading...

Page Navigation
1 ... 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 ... 190