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[ गोम्मटसार जीवकाण्ड गाथा १ मैं कहाँगा; असी प्रतिज्ञा करि । इस प्रतिज्ञा करि इस शास्त्र के संवन्धाभिधेय, शक्यानुष्ठान, इष्टप्रयोजनपना है; तातै बुद्धिवंतनि करि आदर करना योग्य कह्या है ।
तहा जैसा संबन्ध होइ, तैसा ही जहा अर्थ होइ; सो संवधाभिषेय कहिये । वहरि जाके अर्थ के आचरण करने की सामर्थ्य होइ, सो शक्यानुष्ठान कहिये । वहुरि जो हितकारी प्रयोजन लिए होइ, सो इष्टप्रयोजक कहिये ।
____कथंभूतं प्ररूपणं ? जाकौ कहाँगा, सो कैसा है प्ररूपण ? गुणरत्नभूषणोदयंगुण जे सम्यग्दर्शनादिक, तेई भये रत्न, सोई है आभूषण जाक, असा जो गुणरत्नभूपण चामुंडराय, तिसत है उदय कहिये उत्पत्ति जाकी असा शास्त्र है । जाते चामुडराय के प्रश्न के वश ते याकी उत्पत्ति प्रसिद्ध है । अथवा गुणरूप जो रत्न सो भूपयति कहिये शोभै जिहि विपै ऐसा गुणरत्नभूपण मोक्ष, ताकी है उदय कहिये उत्पत्ति जाते ऐसा शास्त्र है।
भावार्थ - यहु शास्त्र मोक्ष का कारण है । वहुरि विकथादिरूप वंध का कारण नाही है । इस विशेषण करि १. वधक २ वध्यमान ३. वंधस्वामी ४. वंधहेतु ५. बंधभेद - ये पंच सिद्धात के अर्थ हैं।
तहा कर्मवव का कर्ता संसारी जीव, सो वंधक । वहुरि मूल-उत्तर प्रकृतिवध मो वंध्यमान । वहुरि यथासभव वव का सद्भाव लीये गुणस्थानादिक, सो बंधस्वामी। वहुरि मिथ्यात्वादि प्रास्रव, सो ववहेतु । वहुरि प्रकृति, स्थिति आदि वंधभेद - इनका निरूपण है, तातं गोम्मटसार का द्वितीयनाम पंचसंग्रह है। तिहिविर्ष वंधक जो जीव, ताका प्रतिपादन करणहारा यहु शास्त्र जीवस्थान वा जीवकांड इनि दोय नामनिकरि विव्यात, नाहि मैं कहाँगा । जैसा शास्त्र के कर्ता का अभिप्राय यह विणेपण दिवाव है।
बहुरि कथंभूतं प्ररूपणं ? कैसा है प्ररूपण ? सिद्ध कहिये पूर्वाचार्यनि की परसग करि प्रसिद्ध है, अपनी रुचि करि नाही रचनारूप किया है । इस विणेपण फरि प्राचार्य अपना कापना की छोडि पूर्व प्राचार्यादिकनि का अनुसार को कहै है। पुनः कि विशिष्ट प्ररूपणं? बहरि कैसा है प्ररूपण ? शुद्धं कहिये पूर्वापर विरोध को प्रादि देकरि दोपनि करि रहित है, तातै निर्मल है । इस विशेपण करि सम्यग्ज्ञानी गति में उपादेयपना इन गास्त्र का प्रकाशित कीया है ।।