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sarafar भाषीका ]
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याका अर्थ
श्रेय जो कल्याण, ताके मार्ग की सम्यक् प्रकार सिद्धि, सो परमेष्ठि के प्रसाद ते हो है । इस हेतु तै मुनि प्रधान है, ते शास्त्र की आदि विषै तिस परमेष्ठी का स्तोत्र करना कहै है । बहुरि ऐसा वचन है
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अभिमतफलसिद्धेरभ्युपायः सुबोधः, प्रभवति स च शास्त्रात्तस्य चोत्पत्तिराप्तात् । इति भवति स पूज्यस्तत्प्रसादात्प्रबुद्धैर्न हि कृतमुपकारं पण्डिताः (साधवो) विस्मरति ॥
याका अर्थ - वांछित, अभीष्ट फल की सिद्धि होने का उपाय सम्यग्ज्ञान है । बहुरि सो सम्यग्ज्ञान शास्त्र ते हो है । बहुरि तिस शास्त्र की उत्पत्ति प्राप्त जो सर्वज्ञ तै है । इस हेतु तै सो प्राप्त सर्वज्ञदेव है, सो तिसका प्रसाद ते ज्ञानवंत भए जे जीव, तिनकरि पूज्य हो है, सो न्याय ही है व पंडित है, ते कीए उपकार को नाही भूल है, तातै शास्त्र को आदि विषै उपकार स्मरण किसे अर्थ करिए ऐसा न कहना । ऐसे चौथा प्रयोजन दृढ किया ।
याहीर्ते विघ्न विनाशने को, बहुरि शिष्टाचार पालने कौ, बहुरि नास्तिक के परिहार कौ, बहुरि अभ्युदय का कारण जो परम पुण्य, ताहि उपजावने कौ, बहुरि कीया उपकार के यादि करने को शास्त्र की आदि विषै जिनेद्रादिक को नमस्कारादि रूप जो मुख्य मंगल, ताकौ आचरण करत संता, बहुरि जो अर्थ कहेगा, तिस अभिधेय की प्रतिज्ञा को प्रकाशता सता आचार्य है, सौ सिद्धं इत्यादि गाथा सूत्र को कहै है
सिद्धं सुद्धं परमिय, जिरिंगदवरणेमि चंद्मकलंकं । गुरणरयरणभूसणुदयं, जीवस्स परूवणं वोच्छं ॥१॥
जिनेद्रवरनेमिचन्द्रम कलंकम् ।
सिद्धं शुद्धं प्रणम्य, गुणरत्नभूषणोदयं, जीवस्य प्ररूपणं वक्ष्ये ॥ १॥
टीका - अहं वक्ष्यामि । अहं कहिए मै जु हों ग्रंथकर्ता । सो वक्ष्यामि कहिये होगा करौगा । कि ? किसहि करोगा ? प्ररूपणं कहिये व्याख्यान अथवा अर्थ को प्ररूपै वा अर्थ याकरि प्ररूपिये ऐसा जु ग्रंथ, ताहि करोगा । कस्य प्ररूपणं ? किसका प्ररूपण कहोगा ? जीवस्य कहिये च्यारि प्राणनि करि जीव है, जीवेगा, जीया ऐसा जीव जो आत्मा, तिस जीव के भेद का प्रतिपादन करण हारा शास्त्र