________________
११० ]
[ गोम्मटसार जीवकाण्ड गाथा ३८
भावार्थ - च्यारि-च्यारि प्रमाण लीए, एक-एक विकथा प्रमाद का पिड, ताको दूसरा प्रमाद कषाय का प्रमाण च्यारि, सो च्यारि जायगा स्थापि, एक-एक पिंड के ऊपरि क्रम तै एक-एक कषाय स्थापिए/१११ १) जैसे स्थापन कीए, तिन
४४४४
का जोड सोलह पिड प्रमाण होइ । वहुरि 'असे ही सर्वत्र करना' इस वचन ते यहु सोलह प्रमाण पिंड जो समुदाय, सो तीसरा इद्रिय प्रमाद का जेता प्रमाण, तितनी जायगा स्थापिए । सो पांच जायगा स्थापि ( १६ १६ १६ १६ १६ ), इनके ऊपरी तीसरा इद्रिय प्रमाद का प्रमाण एक-एक रूपकरि स्थापन करना ।
भावार्थ - पूर्वोक्त सोलह भेद जुदे-जुदे इंद्रिय प्रमाद का प्रमाण पांचा, सो पांच जायगा स्थापि, एक-एक पिड के ऊपरि एक-एक इंद्रिय भेद स्थापन करना ( १६ १६ १६ १६ ) असे स्थापन कीए, अधस्तन कहिए नीचे की अपेक्षा अक्षसंचार को कारण दूसरा प्रस्तार हो है ।
सो इस प्रस्तार अपेक्षा आलाप जो भंग कहने का विधान, सो कैसे हो है ?
सोई कहिए है - स्त्रीकथालापी-क्रोधी-स्पर्शन-इंद्रिय के वशीभूत-निद्रालुस्नेहवान असा असी भंगनि विष प्रथम भंग है। बहुरि भक्तकथालापी-क्रोधी-स्पर्शन इंद्रिय के वशीभूत-निद्रालु-स्नेहवान असा दूसरा भंग है । वहुरि राष्ट्रकथालापीक्रोधी-स्पर्शन इंद्रिय के वशीभूत-निद्रालु-स्नेहवान् असा तीसरा भंग है। बहुरि अवनिपालकथालापी-क्रोधी-स्पर्शन इंद्रिय के वशीभूत-निद्रालु-स्नेहवान् जैसा चौथा भंग है। जैसे ही क्रोध की जायगा मानी वा मायावी वा लोभी क्रम तै कहि च्यारिच्यारि भंग होइ, च्यारौ कपायनि के एक स्पर्शन इद्रिय विष सोलह आलाप हो है।
___ बहुरि जैसे ही स्पर्शन इद्रिय के वशीभूत की जायगा रसना वा घ्राण वा चक्षु वा श्रोत्र इंद्रिय के वशीभूत क्रम ते कहि एक-एक के सोलह-सोलह भेद होइ पाचों इंद्रियनि के असी प्रमाद पालाप हो है । तिनि सवनि को जानि व्रती पुरुपनि करि प्रमाद छोडने ।
भावार्थ - एक जीव के एक काल कोई एक-एक, कोई भेदरूप विकथादिक हो हैं । तातै तिनके पलटने की अपेक्षा पद्रह प्रमादनि के असी भग हो हैं । जैसा ही यह अनुक्रम चौरासी लाख उत्तरगुण, अठारह हजार शील के भेद, तिनका भी प्रन्नार विर्ष करना।