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सम्यग्ज्ञानचन्द्रिका भाषाटीका ]
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वृद्धि कैसे संभव ? बहुरि अत के कांडक विषे घनांगुल का संख्यातवां भाग आदि सख्यात प्रतर पर्यंत सर्व प्रकार करि अध्रुववृद्धि संभव है । औसे ही अन्य काडकनि विषे यथासंभव करि ध्रुववृद्धि जाननी ।
कम्महयवग्गणं धुवहारेणिगिवार भाजिदे दव्वं । उक्करसं खेत्तं पुण, लोगो संपुण्णओ होदि ॥ ४१० ॥
कार्मणां ध्रुवहारेणैक वार भाजिते द्रव्यं । उत्कृष्ट क्षेत्रम् पुनः, लोकः संपूर्णो भवति ॥४१०॥
टीका कार्मारण वर्गणा को एक बार ध्रुवहार का भाग दीएं, जो प्रमाण "होइ, तितने परमाणूनि का स्कंध को उत्कृष्ट देशावधि जाने है । बहुरि क्षेत्र करि संपूर्ण लोकाकाश को जाने है । लोकाकाश विषै जितने पूर्वोक्त स्कंघ होइ, वा तिनते स्थूल होंइ, तिन सबनि को जान है ।
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पल्ल समऊण काले, भावेण असंखलोगमेत्ता है । दव्वस य पज्जाया, वरदेसोहिस्स विसया हु ||४११॥
पत्यं समयोनं काले, भावेन असंख्य लोकमात्रा हि । द्रव्यस्य च पर्याया, वरदेशावर्धोविषया हि ॥ ४११ ॥
टीका देशावधि का विषय भूत उत्कृप्ट काल एक समय घाटि एक पल्य प्रमाण है । बहुरि भाव असंख्यात लोक प्रमाण है । सो इहां काल अर भाव शब्द करि द्रव्य के पर्याय उत्कृष्ट देशावधि ज्ञान का विषयभूत जानना ।
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भावार्थ एक समय घाटि एक पल्य प्रमाण अतीत काल विपे जे अपने जानने योग्य द्रव्य के पर्याय भए, अर तितने ही प्रमाण अनागत काल विप अपने जानने योग्य द्रव्य के पर्याय होहिगे, तिनको उत्कृष्ट देशावधि ज्ञान जाने । बहुरि भाव करि तिनि पर्यायनि विषै प्रसंख्यात लोक प्रमाण जे पर्याय, तिनिको जाने । जैसे काल अर भाव शब्द करि द्रव्य के पर्याय ग्रहे । अँसे ही अन्य भेदनि विप भी
१. हस्तलिखित, ग, घ प्रति मे असख्यातवा शब्द है ।
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