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[ गोम्मटसार जीवकाण्ड गाथा ४८८
बहुरि केवलदर्शनी जीवनि का परिमाण केवलज्ञानी जीवनि का परिमाण के समान जानना । सो इनिका प्रमाण ज्ञानमार्गणा विषै कया है ।
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एइंदियपहुदीर्ण, खीणकसायंतणंतरासीणं । जोगो चक्खुदंसणजीवाणं होदि परिमाणं ॥ ४८८ ॥
एकेद्रिप्रभृतीनां क्षीणकषायांतानंत राशीनाम् । योगः प्रचक्षुर्दर्शनजीवानां भवति परिमारणम् ॥४८८ ॥
टीका - एकेद्रिय आदि क्षीणकषाय गुणस्थानवर्ती पर्यंत अनंत जीवनि का जोड दीए, जो परिमाण होइ तितना चक्षुदर्शनी जीवनि का प्रमारण जानना ।
इति श्राचार्य श्रीनेमिचन्द्र विरचित गोम्मटसार द्वितीय नाम पचसग्रह ग्रथ की जीवतत्त्वप्रदीपिका नाम सस्कृत टीका के अनुसारि सम्यग्ज्ञानचद्रिका नामा भाषाटीका विषै जीवकाड विषै प्ररूपित जे वीस प्ररूपणा तिनि विषे दर्शनमार्गमा प्ररूपणा है नाम जाका सा चौदहवा अधिकार सपूर्ण भया । | १४ ||
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