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सभ्यशानचन्द्रिका भाषाटोका ]
[ ६८९ आदि देकरि भव्य सिद्ध अपेक्षा कथन जानना । बहुरि सामान्य ससारी अपेक्षा दोऊ जायगे समानता संभव है । बहुरि सूक्ष्मनिगोद वर्गणा का कथन कहिए है
सो इहां भव्य सिद्ध अपेक्षा तो कथन है नाही। तातै जघन्य सूक्ष्मनिगोदवर्गणा लोक विर्षे होइ वा न होइ, जो होइ तो एक वा दोय वा तीन उत्कृष्ट प्रावली का असंख्यातवां भाग प्रमाण होइ । आगे जैसे संसारीनि की अपेक्षा प्रत्येक वर्गणा का कथन कीया, तैसे ही यवमध्य ताई अनतानन्त वर्गणा भए, उत्कृष्ट विष एक एक बधावना । पीछे उत्कृष्ट सूक्ष्मवर्गणा पर्यंत एक एक घटावना। सामान्यपन सर्वत्र उत्कृष्ट का प्रमाण पावली का असंख्यातवां भाग कहिये । इहां सर्वत्र संसारी सिद्ध कौं योग्य असी जो प्रत्येक बादर निगोद, सूक्ष्मनिगोद वर्गणा तिनिका यव आकार प्ररूपणा विषे गुणहानि का गच्छ जीवराशि तें अनन्त गुणा जानना । नाना गुण हानिशलाका का प्रमाण यवमध्य ते ऊपरि वा नीचे प्रावली का असख्यातवां भाग प्रमाण जानना।
भावार्थ-संसारी अपेक्षा प्रत्येकवर्गणा, बादरनिगोदवर्गणा, सूक्ष्मनिगोदवर्गणा विषै जो यवमध्य प्ररूपणा कही, तहां लोक विर्षे पावने की अपेक्षा जेते एक एक परमाणू बधने रूप जे वर्गणा भेद तिनि भेदनि का जो प्रमाण सो तो द्रव्य है । पर जिनि वर्गणानि विष उत्कृष्ट पावने की अपेक्षा समानता पाइये, तिनिका समूह सो निषेक, तिनिका जो प्रमाण, सो स्थिति है । बहुरि एक गुणहानि विष निषेकनि का जो प्रमाण सो गुणहानि का गच्छ है । ताका प्रमाण जीवराशि ते अनन्त गुणा है । बहुरि यवमध्य के ऊपरि वा नीचे गुणहानि का प्रमाण, सो नानागुणहानि है । सो प्रत्येक आवली का असंख्यातवां भागमात्र है। जैसे द्रव्यादिक का प्रमाण जानि, जैसे निषेकनि विषे द्रव्य प्रमाण ल्यावने का विधान है । तैसे उत्कृष्ट पावने की अपेक्षा समान रूप जे वर्गणा, तिनिका प्रमाण यवमध्य ते ऊपरि वा नीचे चय घटता क्रम लीए जानना।
इहां प्रश्न - जो इहां तो प्रत्येकादिक तीन सचित्त वर्गणानि के अनते भेद कहे, एक एक भेदरूप वर्गणा लोक विषै आवली का असख्यातवा भाग प्रमाण सामान्य पर्ने कही । बहुरि पूर्व मध्यभेदरूप सचित्तवर्गणा सर्व असख्यात लोक प्रमाण ही कही सो उत्कृष्ट जघन्य बिना सर्व भेद मध्यभेद विष प्राय गए, तहा असा प्रमाण कैसे संभवै ?