Book Title: Samyag Gyan Charitra 01
Author(s): Yashpal Jain
Publisher: Kundkund Kahan Digambar Jain Trust

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Page 685
________________ मनुष्यणी देश संयत MORECEC- रचना चक्षु भा३ आदि शुभ सं - मनुष्यणी पमत्त रचना र ६ / १०४ १ २३६ सा चक्षु भा३ Jछ आदि शुभ मनुष्यणो अप्रमत्त रचना म विना। व४ त्यासाचक्षु मा स आहा 156 मनुष्यणी अपूर्व फरण रचना ११. अपू संप६ १० आहार सातार विना 000 सा१चक्षु भार CGLEPLEARCHECCA POINEKARRASSORRY S ... मनुष्यणी २ ३ ४६ अनिवृत्ति ४ाकरण प्रथम भाग रचना। अनि सप६ । १० । मै म४ त्रच १ भीषा छ१ आदि शुक्ल मनुष्यणी. भनिगृत्तिक रणद्वितीय नाभागरचना म . . ४ मति सा१वक्षु भार आदि छ१ आदिशक म और । मनुप्पणी. भनिनिका रणतनीय' अनि - संप ६ / १०१ ० गया मनिसा चक्ष मा १ श्लोमयादि छे आदि शुक्ल INM

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