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साधूरराजकीतरेणांको भारतीविलोलसमधीः ।
गुणवर्गधर्मनिलितसंख्यावन्मानवेषु वर्णक्रमाः ।। सो इहां सा कहिए सात, घू कहिए नव, र कहिए दोय, रा कहिए दोय, ज कहिए आठ, की कहिए एक, तें कहिए छह, इत्यादि दक्षिण भाग ते अंक जानने ।
पज्जत्तमणुस्सारणं, तिचउत्थो माणुसीण परिमारणं । सामण्णा पूण्णूणा, मणुवअपज्जत्तगा होति ॥१५॥ पर्याप्तमनुष्याणां, त्रिचतुर्थो मानुषीणां परिमारणं । सामान्याः पूर्णोना, मानवा अपर्याप्तका भवति ॥१५९।।
टीका - पर्याप्त मनुप्यनि का प्रमाण कह्या, ताका च्यारि भाग कीजिए, तामै तीन भाग प्रमाण मनुपिणी द्रव्य स्त्री जाननी । वहुरि सामान्य मनुष्य राशि में स्यो पर्याप्त मनुप्यनि का परिमाण घटाएं, अवशेष अपर्याप्त मनुष्यनि का परिमाण हो है । इहां 'प्राङ्मानुषोत्तरान्मनुष्याः' इस सूत्र करि पैतालीस लाख योजन व्यास धरै मनुष्य लोक है । ताका 'विक्खभवग्गदहगुण' इत्यादि सूत्र करि एक कोडि बियालीस लाख तीस हजार दोय सै गुणचास योजन, एक कोण, सतरह से छ्यासठि वनुप, पाच अंगुल प्रमाण परिधि हो है । बहुरि याको व्यास की चौथाई ग्यारह लाग्न पत्रीस हजार योजन करि गुणे, सोलह लाख नव से तीन कोडि छह लाख चीवन हजार छ से एक योजन अर एक लाख योजन का दोय सै छप्पन भाग विर्ष उगगीन भाग इतना क्षेत्रफल हो है । वहुरि याके अंगुल करने सो एक योजन के नात लाग्ब अइसठि हजार अगल है। सो वर्गराशि का गुणकार वर्गरूप होइ, इस न्याय करि मात लाग्न अडमठि हजार का वर्ग करि तिस क्षेत्रफल को गुण नव हजार यारि नै वियालीम कोडाकोडि कोडि इक्यावन लाख च्यारि हजार नव सै अडसठि कोदारोटि उगवीस लान्त्र नियालीस हजार च्यारि से कोडि प्रतरांगुल हैं । वहुरि ए प्रमाणागल है. सो उहां उत्सेधागुल न करने, जातै चौथा काल की प्रादि विष वा जन्मपिगी काल का तीसरा काल का अन्तविष वा विदेहादि क्षेत्र विष आत्मांगुल का नो प्रमाण प्रमाग्गांगुल के समान ही है । सो इनि प्रतरांगुलनि के प्रमाण तें भी पान मनुय मंत्र्यात गुणे हैं। तथापि आकाश की अवगाहन की विचित्रता जानि मदेव न पन्ना ।