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[ गोम्पटमार जीवकाण्ड गाथा १८३-१८४ बादरसुहुपदयेण य, बादरसुहमा हवंति तदेहा । घादसरीरं थूलं, अघानदेह हवे सुहुमं ॥१८३॥
बादरसूक्ष्मोदयेन च, बादरसूक्ष्मा भवंति तदेहाः ।
घातशरीरं स्थूलं, अघातदेहं भवेत्सूक्ष्मम् ॥१८३॥ टीका - पूर्व कहे जे पृथिवीकायिकादिक जीव, ते वादर नामा नाम कर्म की प्रकृति के उदय ते वादर शरीर धरै, वादर हो है । वहुरि सूक्ष्म नामा नामकर्म की प्रकृति के उदय ते सूक्ष्म होइ । जाते वादर, सूक्ष्म प्रकृति जीवविपाकी हैं । तिनके उदय करि जीव को बादर-सूक्ष्म कहिए । बहुरि उनका शरीर भी वादर सूक्ष्म ही हो है । तहां इंद्रिय विपय का संयोग करि निपज्या सुख-दुख की ज्यों अन्य पदार्थ करि आपका घात होड, रुकै वा पाप करि और पदार्थ का घात होइ, रुकि जाय, असा घात शरीर ताको स्थूल वा वादर-शरीर कहिए । वहुरि जो किसी की घाते नाही वा आपका घात अन्य करि जाके न होइ, असा अघात-शरीर, सो सूक्ष्म-शरीर कहिए । वहुरि तिनि शरीरनि के धारक जे जीव, ते घात करि युक्त है शरीर जिनिका ते घातदेह तौ वादर जानने । वहुरि अघातरूप है देह जिनका, ते अघातदेह सूक्ष्म जानने । असे शरीरनि के रुकना वा न रुकना संभव है।
तद्देहभंगुलस्स, असंखभागत्स विदभाणं तु । आधारे थूला ओ, सवत्थ णिरंतरा सुहमा ॥१४॥ तहेहनालस्यासंख्यभागस्य वृदमानं तु ।
आधारे स्थूला श्रो, सर्वत्र निरंतराः सूक्ष्माः ।।१८४॥ टोका - तिनि वादर वा सूक्ष्म पृथ्वीकायिक, अपकायिक, तेज कायिक, गतकायिक जीवनि के शरीर धनांगुल के असंख्यातवै भाग प्रमाण हैं । जातै पूर्व जीवममानाधिकार विप अवगाहन का कथन कीया है। तहां सूक्ष्म वायुकायिक अपर्याप्तक की जघन्य शरीर अवगाहना ते लगाइ वादर पर्याप्त पृथिवीकायिक की उत्कृष्ट अवगाहना पर्यंत वियालीस स्थान कहे, तिनि सवनि विपै घनांगुल कौं पल्य के अनंन्यातवा भाग का भागहार संभव है । अथवा तहां ही 'वीपुण्णजहणोत्तिय प्रमं वसंग्यं गुणं तत्तो' इस मूत्र करि वियालीसवां स्थान की असंख्यात का गुणकार