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सम्यग्ज्ञानचन्द्रिका भाषाटोका ]
टीका जा कारण ते संज्वलनकषाय के सर्वघाती स्पर्धकनि का उदयाभाव लक्षण धरें क्षय होतें, बहुरि बारह कषाय उदय कौ न प्राप्त तिनका, अर संज्वलन कषाय र नोकषाय, इनके निषेकनि का सत्ता अवस्था रूप लक्षण धरै उपशम होते; बहुरि संज्वलन कषाय, नोकषायनि का देशघाती स्पर्धकनि का तीव्र उदय तै सकलसयम अर मल का उपजावनहारा प्रमाद दोऊ हो है । तीहि कारण ते प्रमत्त सोई विरत, सो षष्ठम गुणस्थानवर्ती जीव प्रमत्तसंयत असा कहिए है ।
"विवक्खिदस्स संजमस्स खश्रोवसमियत्तपडुप्पायरणमेत्तफलत्तादो कथं संजल रणरणोकसायाणं चरितविरोहोणं चारित्तकारयत्तं ? देशघादित्त रेग सपविक्ख गुणं विरिणम्मूलरणसत्तिविरहियारणमुदयो विज्जमागो वि ण स कज्जकार श्रोत्ति संजमहेदुत्तरेण विविक्खियत्तादो, वत्थुदो दु कज्जं पडुप्पायेदि मलजरगरणपमादोविय 'अविय इत्यवधारणे' मलजरगरणपमादो चेव जम्हा एवं तम्हा हु पमत्ताविरदो सो तमुवलक्खदि । "
याका अर्थ - विवक्षित जो संयम, ताकै क्षायोपशमिकपना का उत्पादनमात्र फलपना है । संज्वलन अर नोकषाय जे चारित्र के विरोधी, तिनकै चारित्र का उपजावना कैसे संभव है ?
करना
तहां कहै है – एक देशघाती है, तीहि भावकरि अपना प्रतिपक्षी संयमगुण, ताहि निर्मूल नाश करने की शक्ति रहित है । सो इनका उदय विद्यमान भी है, तथापि अपना कार्यकारी नाही, सयम नाश न करि सके है । जैसे संयम का कारणपना करि विवक्षा ते संज्वलन अर नोकषायनि के चारित्र उपजावना उपचार करि जानना । वस्तु तै यथार्थ निश्चय विचार करिए, तब ए सज्वलन अर नोकपाय अपने कार्य ही कौ उपजावे है । इनि ते मल का उपजावनहारा प्रमाद हो है । श्रपि च असा शब्द है सो प्रमाद भी है, जैसा अवधारण अर्थ विषै जानना । मल का उपजावनहारा प्रमाद है, जाते असे ताते प्रकट प्रमत्तविरत, सो षष्ठम गुणस्थानवर्ती जीव है |
ताहि लक्षण करि कहै है
वत्तावत्तपमादे, जो वसइ पमत्तसंजदो होदि । सयलगुरणशीलकलिओ, महत्वई चित्तलायरणो ॥ ३३॥
- धवला, पुस्तक १, पृष्ठ १७६, गाया ११३
१. पट्खडागम