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पानी को प्रखर सूर्य आदि के द्वारा प्राकृतिक पीड़ा होती है और स्नानादि तथा रसोई बनाने से मनुष्यकृत पीड़ा होती है । (७)
अग्नि को उल्कापात व आंधी आदि से नैसर्गिक व यन्त्रों के उपयोग से मानवनिर्मित पीड़ा होती है । (८)
हवा को चट्टानों से टकराने आदि से नैसर्गिक कष्ट होता है, नाँव, कूवाखम्भ, ध्वजा आदि के द्वारा मानवकृत कष्ट होता है । (९)
चक्रवातों से (आँधियों से) वनस्पतियों को बड़े पैमाने पर वेदना स्वाभाविक होती है, माला गूंथने आदि के द्वारा विविध प्रकार से मनुष्यकृत वेदना होती है । (१०)
निगोद राशि के जीवों में जन्ममृत्यु की निरन्तरता कर्म निर्मित्त है। इस प्रकार स्थावरों में निमित्तों की उपस्थिति होती है । (११)
इन निमित्तों से स्थावरों में क्या प्रतिक्रिया दिखाई देती है, यदि यह शंका हो, तो समाधान बताते हैं, सावधान होकर सुनिए । (१२)
दूसरा प्रस्ताव
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