Book Title: Samvegrati
Author(s): Prashamrativijay, Kamleshkumar Jain
Publisher: Kashi Hindu Vishwavidyalaya

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Page 141
________________ जब तक कर्मों का नाश नहीं होता, तब तक दुःख रहता ही है । कर्मों का नाश होने पर दुःख की परम्परा कहाँ रहेगी ? (५५) मेरा इतना लालनपालन किया हुआ शरीर दुःख के समय में काँपने लगता है। किन्तु यदि मन की दृढ़तापूर्वक उसे शिक्षित किया जाए, तो वह क्लेश नहीं पाता है । (५६) जैसे खेलों के लिए या युद्ध के लिए शरीर को सहनशील बनाया जाता है । उसी प्रकार अपने संकल्प से जीव दुःख में भी सुखी बन सकाता है । (५७) सहनलाल बहा नहीं जाता, यह मन का दुःख सहा नहीं जाता, यह मन की दुर्बलता है । सुख चाहते हो तो मन को सहनशील बनाए । (५८) अरिहंत भगवान महावीर बारह वर्ष तक मौन से उपसर्ग सहन कर के ही तीर्थंकर हुए थे । (५९) व्याघ्री के द्वारा काँटे जाने से जिनका शरीर नष्ट हो गया, ऐसे सुकोशल महामुनि उस तीव्र कष्ट के समय भी आत्मा के ही ध्यान में लगे रहने के कारण आनन्द के सागर रूप मोक्ष को पा सके । (६०) पाँचवा प्रस्ताव १२३

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