Book Title: Samvegrati
Author(s): Prashamrativijay, Kamleshkumar Jain
Publisher: Kashi Hindu Vishwavidyalaya

View full book text
Previous | Next

Page 143
________________ दिव्यवस्त्रों के भोग भोगने वाले सुकुमार शालिभद्र मुनि ने दीक्षित होकर अग्नि के समान तप्त शिला पर ध्यान करते हुए शुभ की साधना की । (६१) गर्भवती सीता को राम ने घने जंगल में छोड़ दिया था, तब डरने पर भी कर्म की लीला का विचार करते हुए वह दीन नहीं हुई । (६२) के और भी कई साधक हुए हैं, जिनहोंने दुःख और भी कई साधक हुए हैं, जिन्होंने दु:ख के भार में भी अपनी प्रसन्नता को नहीं छोड़ा । वे महापुरुष स्मरणमात्र से समता प्रदान करने वाले हैं । (६३) पुण्य के नष्ट हो जाने पर इच्छा कभी भी पूरी नहीं होती है । अनावश्यक विषय की इच्छा दुःख को ही बढ़ाने वाली होती है । (६४) मैंने जो सुख पाया है, वह हजारों अन्य लोगों ने नहीं पाया है। यह सोचकर प्राप्त सुख में सन्तोष मानना सुखद है । (६५) जो अप्राप्त की चिन्ता में प्राप्त को भी भूल जाता है। वह कुत्ते की तरह दोनों जगहों से भ्रष्ट हो जाता है । (६६) पाँचवा प्रस्ताव १२५

Loading...

Page Navigation
1 ... 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155