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यदि धर्म करने में विरोध और विपत्ति विशेष नहीं हैं तो मैं क्यों अत्यन्त अल्प धर्मसाधना कर रहा हूँ ? आज में जो धर्म कर रहा हूँ, उससे अधिकतर धर्म करना बाकी रहता है। (७९)
मैंने जो-जो धर्म नहीं किया है, उस उसका स्मरण करता हूँ। धर्म कब, कौन सा और किस प्रकार करूँगा ? इस भावना का आश्रय लेता हूँ । (८०)
कार्य को क्रियान्वित करने के तीन सोपान होते हैं । सर्वप्रथम, इष्ट कार्य की मन में कल्पना करनी चाहिए । (८१)
दो, कार्य को सम्पन्न करने की स्पष्ट योजना होनी चाहिए । यह योजना अपनी शक्ति के प्रति आत्मविश्वास से पूर्ण होनी चाहिए । (८२)
तीन, अपनी क्षमता के अनुसार प्रयत्न होना चाहिए । यह प्रयत्न निरंतर, उत्साह पूर्ण और समयबद्ध होना चाहिए । (८३)
कभी सुझास नहीं हाश्रय लेकर जो काय
इस क्रम का आश्रय लेकर जो कार्यों में प्रवृत्त होता है, उसकी सफलता के पुष्प कभी मुरझाते नहीं है । (८४)
तृतीय प्रस्ताव