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दुःख आए तब आठ विषय पर चिन्तन करे । पूर्वकृत पापों का, कर्मों के सम्पूर्ण नाश का, जिन दुःखों का अनुभव नहीं किया है उन दुःखों का तथा संसार की नियति का विचार करना चाहिए । (४३)
शरीर के स्वभाव का और पूर्वकालीन मुनिओ की साधनाओं का, इच्छाओं की व्यर्थता तथा सुखों के अस्थायित्व का विचार करना चाहिए। (४४)
मेरा ही यह पाप आज दुःखरूप में उपस्थित हुआ है । यह अनेक जन्मो से चला आया है । और जन्मान्तर का कारण । (४५)
इस दुःख को यदि मैं आनन्दरहित उत्साहहीन होकर विवश की तरह आर्तभाव से सहूँगा, तो मेरे इस आर्त ध्यान से नये कर्मसमूह का बन्धन होगा । (४६)
मैंने (पूर्वजन्म में) अनेक दुष्ट कार्य किए है । आज वे मिलकर उपस्थित हुए हैं I यह मेरी ही गलती का परिणाम है । (४७)
यदि मैने पूर्वजन्म में वैसे पाप नहीं किए होते, तो इस जन्म में दुःख का पात्र नहीं बना होता । (४८)
पाँचवा प्रस्ताव
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