Book Title: Samvegrati
Author(s): Prashamrativijay, Kamleshkumar Jain
Publisher: Kashi Hindu Vishwavidyalaya

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Page 127
________________ प्रश्न :- संगीत को सुनकर, सुन्दर पुष्पादि को देखकर, स्वादिष्ट अन्न का आस्वाद पाकर सुख का स्वतन्त्र अनुभव होता है । (१३) उसी प्रकार काँटे चुभने पर, भूख लगने पर, रोगादि के संकट में दुःख का स्वतन्त्र रूप से अनुभव होता है । (१४) जो जैसा है, उसकी उस रूप में संवेदना होती है तो उसे विकृति कैसे कह सकते है ? ऐसा मानने पर तो सर्वज्ञ को भी विकृति से दूषित मानना होगा । (१५) चेतना की निमित्तों की वशवर्तिता और कर्म की विक्षोभावस्था सुख और दुःख में दिखाई देती है । (१६) रंगे हुए काच के आरपार से देखने पर वस्तु रंगरूप में जैसी नहीं होती है वैसी दिखती है । (१७) यहाँ आँखों का क्या दोष है, दोष तो रंग के होने का है। जीव का यहाँ क्या दोष है, दोष केवल मोह का है । (१८) पाँचवा प्रस्ताव १०९

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