Book Title: Samvegrati
Author(s): Prashamrativijay, Kamleshkumar Jain
Publisher: Kashi Hindu Vishwavidyalaya

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Page 121
________________ धर्म की उदीरणा करना कल्याणमित्र का लक्षण है। वह धर्म में अधिक समान या न्यून हो सकता है। (७३) धर्मश्रद्धा से जिसकी आत्मा युक्त है, धर्म के आचरण को जो जानता है, जो नित्य धर्म के अभ्यास में लगा हुआ है उसे श्रेष्ठ कल्याणमित्र समझना चाहिए । (७४) कल्याणमित्र के साथ में धर्म का पालन करें। उनकी प्रेरणा से कार्य करें। उनका निषेध हो वहाँ से निवृत्त हो जाए । उनकी इच्छा का अतिक्रमण न करें । (७५) सदा उनका आदर करें। उनकी धर्मसाधना का अभिवादन करें। आत्मशुद्धि के लिए उन्हें मार्गदर्शक माने । ( ७६ ) इसी प्रकार अन्य निमित्तों के द्वारा शुभ संस्कार का ग्रहण करे, शुभ प्रतिभावों को प्राप्त करे और शुभ अभिप्राय प्राप्त करें। (७७) चौथा प्रस्ताव १०३

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