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प्रतिभाव, जो कि पहले निरंकुश था, उत्तम अनुभव आदि के द्वारा कुछ वश में हो जाता है । (४३)
मनुष्यत्व आदि (मोक्षसाधक) सामग्री महापुण्य से प्राप्त होती है, यह जो ग्रन्थकार कहते हैं, उसका आशय यही है कि यहाँ उत्तम निमित्त का आश्रय प्राप्त होता है । (४४)
अब तक जीव ने चित्त में जितना भी, जो भी दुःख निर्मित किया है, उसका उदय भाव्यमानता से हुआ है । (४५)
इस भाव्यमानता की ही इस समय सफल शस्त्रक्रिया करनी चाहिए । कृपारूपी अमृत के सागर खुद जिनेन्द्र देव इस रोग के चिकित्सक है। (४६)
दूसरा प्रस्ताव
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