Book Title: Samipya 1992 Vol 09 Ank 01 02
Author(s): Pravinchandra C Parikh, Bhartiben Shelat
Publisher: Bholabhai Jeshingbhai Adhyayan Sanshodhan Vidyabhavan

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Page 26
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भने ५७ ता, न स पुनरावत ते न स पुनरावर्तते। से मनीषी क्यने, तना ससाभांना आवतन પૂરાં થઈ જાય છે. ભારતીય દર્શનના પરમ લક્ષ્ય સ્વરૂપ મોક્ષ કે મૂર્તિને પામવા માટેના સરળ રાજમાર્ગ તરીકે, આથી જ, ભક્તિનો મહિમા ગવાય છે, ભકિતનો સાર સ્વીકાર થયો છે. પાદટીપ १. स्वाय प. २. हुमा कुमारसंभवम्, ७-३७, रघुवंशम्-२-६; मुद्राराक्षसम् १-१५; गीता ९-३४, रामचरित मानस, सुन्दरकांड ३, माहि. ३. ऋथिनां वैविण्याद् ॥ महिम्नस्तोत्रे ४. कस्यापि ५. श्रवण कीर्तन विष्णो: स्मरण पादसेवनम् । अर्चन वन्दन दास्य सख्यमात्मनिवेदनम् ॥ श्रीमद्भागवत, प्रशानी en है. पुराण ७. भक्ति: षोडशधा प्रोक्त। भवबन्धविमुक्तये (पद्मपुराण, उत्तरखण्ड, शिवपावती संवाद) ८. भक्ति प्रयच्छ रघुपुङ्गव ! निर्भरांमे (रामचरित मानस, सुन्दरकांड), लोक ३-पाद ४ ६. अमृतस्वरूपा च। नारदभक्ति सूत्र-३ १०. यल्लब्ध्वा पुमान् सिदो भवति, अमृता भवति, तृप्तो भवति ॥ यत्प्राप्य, म कश्चिद वाञ्छति, न शोषति, न द्वेष्टि न रमते नात्साही भवति ॥ अपन, ४-५ . ११. नारदपुराण, पू. ख., अ. ३४, लेक ८१ १२. स्कन्दपुराण, का. खंड, पू. अ. २१ १३. शान्डियभक्ति स्त्र, १-२ १४. गीता, १८-५५ १५. सस्मृतिरेषामभक्तिः स्यात् । शाण्डिल्य भक्तिसूत्र, ३-६ १६. अवधूत गीता, कोक १ १७. कस्यापि १८. 1. 1. केनोपनिषद मां स्थित यक्ष-स्तुति તિલ માંસ २३] For Private and Personal Use Only

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