Book Title: Sambodh Prakaranam
Author(s): Haribhadrasuri, 
Publisher: Jain Granth Prakashak Sabha

View full book text
Previous | Next

Page 3
________________ ॥ॐ नमः ॥ ॥ श्रीमद्धरिभद्रसूरिविरचितम् ॥ ॥ संबोधप्रकरणम् ॥ Remonomy नमो विततेकान्तिकात्यन्तिकहितहेतुभ्यः सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्रभृद्भयः श्रीमत्सद्गुरुभ्यः॥ नमिऊण वीयरायं सव्वन्न तियसनाहकयपूर्य । संबोहपयरणमिणं वुच्छं सुविहियहियठाए ॥१॥ जे केवि मग्गरत्ता चरिमावत्ते य चरिमकरणम्मि । तसि विबोहणठ्ठा भव्वाणं भवियदव्वाणं ॥२॥ सेयंबरो य आसं-बरो य बुद्धो य अहव अण्णो वा । समभावभाविअप्पा लहइ मुरकं न संदेहो ॥३॥ मग्गो मग्गो लोए भणंति सब्वेवि मग्गणारहिया । परमप्पमग्गणा जत्थ तम्मग्गो मुरकमग्गुत्ति ॥४॥ जत्थ य विसयकसाय-वाओ मग्गो हविज्जणो अपणो। नामाइ चउपमेओ भणिओ सो वीपरागेहिं ॥५॥ सववि मग्गासमा भव्वाण Jain Education For Private & Personal Use Only ainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 ... 130