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क्रोध में व्यक्ति अंधा हो जाता है। यदि क्रोध स्वभाव बन जाये, क्रोध आदत बन जाये, तो समझना चाहिये कि क्राध की आग उसे तबाह करके रहेगी। उसकी खुशियाँ हमेशा के लिये विदा हो जायेंगी । शास्त्रों में तुंकारी की घटना आती है | उसे क्रोध के कारण कैसे-कैसे असहनीय दुःख सहन करना पड़े।
मणिवत नाम के एक महामुनि अनेक देशों में विहार करत हुये किसी समय उज्जैन के बाहर श्मशान में ठहर गये | वे रात्रि के समय मृतक-शय्या द्वारा ध्यान कर रह थे। इतने में वहाँ एक कापालिक वैताली-विद्या सिद्ध करने के लिये आया । उसे चूल्हा बनाने के लिये तीन मुर्दे चाहिये थे। अतः वह कछ दर पडे हये दो मर्दो को घसीट लाया और इन महामुनि को भी मुर्दा समझकर उसन तीनों क सिर का चूल्हा बना लिया | उस चूल्हे पर उसने नर कपाल रखा और आग जलाकर कुछ नैवेद्य पकाने लगा। थाड़ी देर बाद जब आग जोर से जलने लगी तब जीवित मुनिराज क सिर की नशें जलने लगीं और तीव्र वेदना से उनका हाथ ऊपर की ओर उठ गया, जिससे सिर पर रखा कपाल गिर गया और आग भी बुझ गई । इधर इस घटना से कापालिक ने समझा भूत आ गया, इसलिये वह वहाँ से भाग गया।
मुनिराज मेरू क समान अचल पड़े-पड़े आत्मचिंतन कर रहे थे। प्रातः होते ही आते-जाते किसी ने मुनिराज की यह दशा देखी तो झट दौड़कर मुनिभक्त सेठ जिनदत्त को सारा हाल सुना दिया। जिनदत्त सेठ उसी समय दौड़े आये और मुनिराज को अपने घर ले गये तथा वैद्य को बुलाकर इलाज के लिये पूछा । वैद्य ने कहा-सेठ जी! सोमशर्मा भट्ट के यहाँ लक्षपाक नाम का बहुत ही बढ़िया तेल है, उसे लाकर लगाओ, उससे बहुत ही जल्दी आराम हा जायेगा। इतने
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