Book Title: Purusharthsiddhyupay Hindi Author(s): Amrutchandracharya, Makkhanlal Shastri Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad View full book textPage 8
________________ आशीर्वाद विगत कतिपय वर्षों से जैनागम को धूमिल करने वाला एक श्याम सितारा ऐसा चमक गया कि सत्य पर असत्य का आवरण आने लगा-एकान्तवाद-निश्चयाभास तूल पकड़ने लगा। आज के इस भौतिक युग में असत्य को अपना प्रभाव फैलाने में विशेष श्रम नहीं करना होता, यह कटु सत्य है, कारण जोव के मिथ्या संस्कार अनादिकाल से चले आ रहे हैं। विगत ७०-८० वर्षों में एकान्तवाद ने जैनत्व का टीका लगा कर निश्चयनय की आड़ में स्याद्वाद को पोछे धकेलने का प्रयास किया है। मिथ्या साहित्य को प्रसार-प्रचार किया है। आचार्य कुन्द-कुन्द की आड़ लेकर अपनी ख्याति चाही है और शास्त्रों में भावार्थ बदल दिये हैं, अर्थ का अनर्थ कर दिया है। बुधजनों ने अपनी क्षमता पर 'एकांत' से लोहा लिया है पर वे अपनी ओर से जनता को अपेक्षित सत्साहित्य सुलभ नहीं करवा पाये । आचार्यश्री विमलसागरजी महाराज के सन्मार्ग दिवाकर महोत्सव के अवसर पर आर्ष साहित्य का प्रचुर प्रकाशन हो और यह जन-जन को सुलभ हो । इसी भावना से दुर्लभ आर्ष ग्रन्थों का प्रकाशन किया जा रहा है। सत्यसूर्य के तेजस्वी होने पर असत्य अन्धकार स्वतः हो पलायन कर जाता है। आर्ष ग्रंथों के प्रकाशन हेत जिन भव्यात्माओं ने अपनी स्वीकृति दी है एवं प्रत्यक्ष-परोक्ष रूप में जिस किसी ने भी इस महदनुष्ठान में किसी भी प्रकार का सहयोग किया है उन सबको हमारा आशीर्वाद है। उपाध्याय भरतसागर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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