Book Title: Punyadhya Charitram
Author(s): Vardhamansuri
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

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Page 191
________________ peopeNOODSOSO900 पुण्याच चरित्र यच्च किंचित्कदाचित्त्वमातुरश्चिन्तयिष्यसि / भविष्यत्याशु तत्पुण्यशुभानां किमु दुर्लभम् // 461 // “अन्वयः-च आतरः त्वं कदाचित् यत् किंचित् चितयिष्यसि, तत् आशु भविष्यति, पुण्यशुभाना कि दुर्लभः // 461 अर्थः-वळी अणीने समये तुं कोइक बखते जे कई चितवीश, ते (कार्य) तुरत थशे, केमके पुण्यशालिओने | दुर्लभ छे! // 461 // सान्वय भाषान्तर / 190 / 190 अन्वयः-अधुना पुनः त्वां कस्य अपि नगरस्य अंते मुंचामि, वाहशा तुच्छा अपि अहि चारिका क्लैशावेशाय. // 462 / / अर्थ:-हवे तो तने कोइक नगरनी नजदीक मूकुं, केमके तारा जेवाना चरणोनी स्वल्प सेवा पण (अथवा तारा जेवाना स्वल्प पगला पण) दुःखनो नाश करनारा छे. // 462 // इत्युक्त्वा द्युतिदीप्ताशस्तिरोधत्त सुरोत्तमः। प्रान्ते पुरस्य कस्यापि स्वमपश्यच्च केशवः॥ 463 // " अन्वयः इति उक्त्वा धुति दीव आशः सुरोचमः तिरोधत्त, च केशवः स्वं कस अपि पुरस्य माते अपश्यतः // 46 // 000000000000

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