Book Title: Punyadhya Charitram
Author(s): Vardhamansuri
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj
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________________ ARY पुण्यावर चरित्र सान्वय भाषान्तर 189 // 18 // DOOOOOOOOOOOOT अर्थ:-(वळी) हे भाइ ! तुं तो सुवर्णनी पेठे अग्निवडे (मारावडे) बहु तपाच्या छतां प्रण स्वाभाविक उत्तम गुणोवडे अग्रेसर थयोथको (लीधेल नियममा निश्चल रह्योथको) उत्तम रंगना स्थान सरखो (उत्तम जातिना स्थानरूपज) रह्यो. // 458 // . यक्षादिक्षोभसंरम्भो यः कश्चिद्विदधे मया / तं मयि प्रणयं तन्वन् त्वं सहस्व सहस्व भोः // 459 // अन्वयः-यः कश्चित् यक्षादिक्षोभसंरंभः मया विदधे, तं मयि प्रणयं तन्वन भो त्वं सहस्व सहस्व // 459 // अर्थ:-जे कई यक्षनी विकुर्बणा आदिकथी (तने)डराववाने में धांधल करी, ते माटे मारापर कृपा करी, तारे क्षमा करवी.' किं च याचस्व किंचिन्मांक वा याचा भवादृशाम् / स्वदडस्पृक्पयसिक्तो रोगी नीरुग्भविष्यति / 460 अन्वयः-किच मा किंचित याचस्व' वा भवाहशा यांचा को त्वदंगस्पृक् पयः सिक्तः रोगी नीरुग् भविष्यति. // 40 // अर्थ:-वळी (तुं) मारीपासे कंइंक मागी अथवा तारा जेवाने याचना क्याथी संभवे तारा शरीरना स्पर्शवाला जलथी स्नान, करेलो रोगी माणस रोगरहित थशे. // 460 // Guntatnasur MS AkadhakTrust.

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