Book Title: Punyadhya Charitram
Author(s): Vardhamansuri
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj
View full book text
________________ 00000000000000000000 - पुण्याढ्य (6) योजनानां शतमितस्तत्पुरं मत्पुराद्भवेत् / कथं याम्यद्य तत्राशु जीवबन्धुमुखोत्सुकः // 491 // चरित्रं तद्वार्तात इति ध्यायन्नेव हंसस्य पार्श्वगम् / स्वमैक्षत ततः क्षमापः सतातं सपरिच्छदम् ॥४९॥युग्मम् 12031 अन्वय:-ततः तत् वार्तिःक्ष्माप इत: मत्पुरात् तत् पुरं योजनानां शतं भवेत्, जीवत् बंधु मुख उत्सुकः अद्य तत्र आशु कथं यामि' इति ध्यायन् एव स्वं सतातं सपरिच्छदं हंसस्य पार्श्वगं ऐक्षत. // 491 // 492 // युग्मं / / अर्थः-पछी ते वृत्तांतथी पीडित थयेलो ते राजा आम्हारा नगरथी ते नगर एकसो जोजन दूर छे, तो (म्हारा ते) जीवता भाइनु मुख जोवाने उत्सुक थयेलो एवो हुँ, आजे त्या तुरत केम पहोंची शकुं? एम विचारतांज ते पोताने (पोताना) पिता तथा परिवारसहित हंसनी पासे बेठेलो जोवा लाग्यो. // 491 // 492 // युग्मं // कुथितांगातिदुर्गन्धवस्तबन्धुकदम्बकम् / एकयैवाम्बयायुक्तं रोदनोच्छूननेत्रया // 493 // अतिभिर्नरकार्तीनां सारोद्धारिवार्दितं / आसन्नमृत्युं भूक्षिप्तं दुःखी हंस ददर्श सः॥ युग्मं॥ // 494 // GOOGGC ocomreatescecaecocccecrea Jun Gun Aaradhak Trust PRAC Gunnatasuri MS

Page Navigation
1 ... 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229