Book Title: Punyadhya Charitram
Author(s): Vardhamansuri
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj
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________________ 0000000000000 - पुण्याच चरित्रं 217 सान्वय भाषान्तर / 217 // 00000G अर्थः-पछी रात्रिनो परोढीयानो भाग बाकी स्हेते जागी उठेला ते राजापासे तेज देवे प्रत्यक्ष थइ कयु के, // 523 // जय त्वं कीर्तिविस्तीर्ण निस्तीर्णभवसागर / प्रतिपन्नमनोदाढर्थ श्रीपुण्याढ्य महीपते // 524 // अन्वयः-कीर्ति विस्तीर्ण ! निस्तीर्णभवसागर! प्रतिपत्रमनोदाढर्य ! (हे) श्रीपुण्याढ्य महीपते ! त्वं जय! / / 524 // अर्थ:-कीर्तिथी प्रसिद्ध थयेला, तथा तरेलो छे संसारसमुद्र जेणे एवा, अने स्वीकारेल छे मननु निश्चलपणुं जेणे एवा, हे पुण्याय महीपाल ! तुं जय पाम ? // 524 // अवधिज्ञानतो ज्ञात्वा नृदुःपूरं तवाग्रहम् / लोकोत्तरं स्वरूपं च किंचिदथैव भावि ते // 525 // शुभापुयाँ तत्तपनानिश्चित्य ज्ञानभास्करात् / बिम्बं निर्माय जैनेन्द्रं पतिष्ठाप्य यथाविधि // 526 // अस्थापयं वने तस्मिंश्चैत्ये पूर्णीकृते क्षणात् / अहं तवैव भाग्यानां सम्प्रति प्रतिहस्तकः // 527 // तत्कल्याणनिधे तूर्णमेहि पूर्णमनोरथः / जिनं चन्द्राननं नत्वा नमस्यो जगतां भव // 528 // 00000000 SeeGOOGOSOCICIC00000 PP.AC.Gunratnasun M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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