Book Title: Punyadhya Charitram
Author(s): Vardhamansuri
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

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Page 222
________________ pe00000000000OSEEDS S पुण्याढ्य चरित्रं --- 1221 // GeeeeDEO अर्थः-चंद्रनी (सघळी) कलाओने पत्थररूप बनावीने जाणे बनान्यो होय नहीं। एवो आ जिनप्रासाद राजनां चक्षुरूपी कुमुदने (चंद्रविकासी कमलने) आनंद पमाडवा लाग्यो. // 533 // ............... ततो न्यरूपयत्तत्र भूवरस्तोरणं पुरः / पुण्यश्रीदूरविधृतस्वयंवरणमाल्यवत् // 534 // अन्वयः-ततः भूवर पुरः पुण्य श्री दूर विधृत स्वयंवरण माल्यवत् तत्र तोरणं न्यरूपयत् / / 534 // अर्थ:-पछी सजाए अगाडीना भागमा पुण्यलक्ष्मीए दूरथी पकडी राखेली स्वयंवर माला सरखं त्या तोरण जोयुं. // 534 // चैत्यद्वारं ददर्शासौ सद्धर्मपुरगोपुरम् / सतां यत्र स्थितानां स्याजिनः सुलभदर्शनः॥५३५॥ * अन्वयः-असौ सद्धर्म पुर गोपुरं चैत्यद्वारं ददर्श, यत्र स्थिताना सतां जिन मुलभदर्शन: स्यात् // 535 // अर्थ-(पछी) ते राजाए उत्तम धर्मरूपी नगरना दरवाजासर ते जिनमंदिस्तुं द्वार जोयु, के ज्या उमेला सज्जनोने जिनेश्वस्प्रभु मुलभ दर्शनवाला थाय. // 535 // - 00000CCESGOOOOOOOOO PP.AC.GunratnasuriM.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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