Book Title: Punyadhya Charitram
Author(s): Vardhamansuri
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj
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________________ DOST990900CTOD पुण्याढ्य चरित्रं R19 // सान्वय भाषान्तर 1219 ) भाग्योनो जामीन एवो जे हुं, तेणे ते वनमा एक क्षणमांज संपूर्ण करेला जिनमंदिरमा स्थापन करी छे. // 527 // माटे कल्याणना भंडारसरखा एवा हे राजन! तुं तुरत चाल तथा त्यां चंद्रसरखा मुखवाळा (अथवा चंद्रानननामना) प्रभुने नमीने तारों मनोरथ पूरो करीने जगतने नमवा लायक था। 528 / / एवी रीतनुं ते देवनुं वचन सांभळीने राजाए विचार्यु के, अहो! आ हस्तिदेव मारो केटलो उपकारी ययो! // 529 // पंचभिः कुलकं // नवप्रासादतीर्थेशदर्शनोत्कण्ठितस्ततः। पुरःकृतसुरः पृथ्वीपतिः प्रतिवनं ययौ // 530 // 'अन्वयः-ततः नव प्रासाद तीर्थ ईश दर्शन उत्कंठितः, पुरः कृत सुरः पृथ्वीपतिः वनपति ययो. // 530 // अर्थः-पछी ते नवा बनावेला जिनमंदिरमा प्रतिष्ठित थयेला श्रीतीर्थकरमभुनां दर्शनमाटे उत्सुक ययेलो, तथा आगळ करेल छे ते देवने जेणे, एवो ते पुण्याढ्यराजा वनमा गयो. // 530 / / / प्रासादमौलिमारुह्य नृत्यन्त्याः सुकृतश्रियः / लोलं हस्तमिव प्रेक्ष्य पताकां मुमुदे नृपः // 531 // Do00000ECISCCEEDOSED Jun Gun Aaradhak Trust PP.AC.GunratnasuriM.S.

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