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प्रवचनसारोद्धारे सटीके
-* प्रकाशकीय * अनंत उपकारी ज्ञानी भगवंतो मानव जन्मनी जे महत्ता बतायी छे तेनु मुख्य कारण प्रा मनुष्यजन्ममा ज सम्यग्दर्शन ज्ञान चारित्रनी आराधना सविशेषपणे शक्य छे. ते के 'सम्यग्दर्शन ज्ञानचारित्राणि मोक्षमार्गः' तथा 'ज्ञानक्रियान्या मोक्ष:' आदि सूत्रो द्वारा सम्यगज्ञान महत्त्व पण शास्त्रोमा स्थाने स्थाने बतायवामां आवेल छे शास्त्रग्रन्योना पा रहस्यामतनु आकंठपान करनार स्व० परमपूज्य परमोपकारी सिद्धांतमहोदधि कर्मसाहित्यनिष्णात प्राचार्यदेव श्रीमद विजय प्रेमसूरीश्वरजी महाराजानी परमकृपादृष्टिथी अने अभोश्रीनी ज परमपावनमयो निश्रामा मूलग्नंथ-प्राकृतभाषामां अने विवेचनगंथ-संस्कृतभाषामा लाखो श्लोक प्रमाण कमसहित्यनु निर्माण थइ चुक्यु छे अने हजी पण आगल सर्जन चालु छे. जेना १४ महाग्रंथ अमारी संस्था द्वारा प्रगट कर्या छे. ते सिवाय पण बंधशतकम् , प्राचीन चत्वारः कर्मगंयाः, नव्यकर्भग्रंथा. सूक्ष्मार्थविचारसारप्रकरण, स्यादवादरहस्य, उपमितिभवप्रपंचाकथा-भाग २, शतार्थवीथो,वादमाला वगेरे प्राचीन अप्रगट अप्राप्य होय तेवा ग्रन्थो पण प्रकाशित कर्या छे. या ग्रन्थ पग अमारी संस्था द्वारा प्रकाशीत करता आनंद थाय छे.
पा दरेकना प्राणभूत पू. स्वर्गीय प्राचार्यदेवेश विजय प्रेमसूरीश्वरजी महाराज साहेब छे. तेश्रोनो अमारा उपर अत्यंत उपकार छ जे कदी पण मूली काय तेम नथी. तेथी तेयोश्रीना अत्यंत ऋणी छोओ.
प्रा ग्रन्थरत्ननां प्रकाशन माटे अमने ३० वर्धमानतपोनिधि प्रभावक प्रवचनकार पू० प्राचार्यदेव श्री विजय भुवनभानुमूरीश्वरजी महाराजना प्रशिष्यरत्न जिनागमतत्त्वविद् पंन्यासप्रवर श्री जयघोषविजयजी महाराजे प्रोत्साहित करवा साथे संपादन माटे पू. प्राचार्यदेव श्री विजय भुवनभानुसूरीश्वरजी महाराजना शिष्यरत्न मुनिश्री पद्मसेनविजयजी महाराजने तथा स्व० युगमहर्षि पू. प्राचार्यदेव श्री विजयभद्रसूरीश्वरजी