Book Title: Praudh Apbhramsa Rachna Saurabh Part 1
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy

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Page 11
________________ 10. चउपासें चउपासे हि/चउपासिउ == चारों योर, चारों ओर से वाक्य-प्रयोग (1) 1. तुहुं तेत्थु/तहिं/तेत्तहे/तउ वसहि । -तुम वहाँ रहो। 2. हउं एत्थ/एत्थ/एत्तहे वसउं । -मैं यहाँ रहता हूँ/रहती हूँ। 3. सो केत्थु कहि/केत्तहे वसइ । -वह कहाँ रहता है ? 4. हउ जेत्थ जहि/जेतहे/जउ वस उं, तेत्थु सो वि वसइ । -मैं जहाँ रहता हूँ, वहाँ वह भी रहता है । 5. परमेसरु सव्वेत्तहे अस्थि । -परमेश्वर सब स्थानों पर है । 6. हउ अण्णेत्तहे गउ ।। -मैं दूसरे स्थान पर गया। (2) 1. तुहं कहन्तिउ/कउ मझु फलु लहेसहि । -तुम कहां से मेरे लिए फल प्राप्त करोगे ? 2. तुहुं तहितिउ मझु फलु लहेहि । -तुम वहां से मेरे लिए फल प्राप्त करो। 3. विमाणु कहि/केत्थु उड्डिउ । ___-विमान कहां से उड़ा ? 4. विमाणु तत्थहो उड्डिउ । -विमान वहां से उड़ा । 5. एत्तहे गाणहो सुहु अत्थि, एत्तहे इंदियहो सुह अत्थि ।। -एक अोर ज्ञान का सुख है, दूसरी ओर इन्द्रियों का सुख है । (3) 1. कहिं चिकत्थइ/कहि मि मोरा णच्चन्ति । -कहीं पर मोर नाचते हैं । 2 ] [ प्रौढ अपभ्रंश रचना सौरभ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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