Book Title: Pratishtha Pujanjali
Author(s): Abhaykumar Shastri
Publisher: Kundkund Kahan Digambar Jain Trust

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Page 9
________________ प्रतिष्ठा पूजाञ्जलि n घड़ी जिनराज दर्शन की... घड़ी जिनराज दर्शन की, हो आनंदमय हो मंगलमय, घड़ी यह सत्समागम की, हो आनंदमय हो मंगलमय ॥ १ ॥ अहो प्रभुभक्ति जिनपूजा, और स्वाध्याय तत्त्व-निर्णय, भेद - विज्ञान स्वानुभूति, हो आनंदमय हो मंगलमय ।। २ ।। असंयम भाव का त्यागन, सहज संयम का हो पालन, अनूप शान्त जिन-मुद्रा, हो आनंदमय हो मंगलमय || ३ || क्षमादिक धर्म स्वाश्रय से, सहज वर्ते सदा वर्ते, परम निर्ग्रन्थ मुनि जीवन, हो आनंदमय हो मंगलमय ।।४।। हो अविचल ध्यान आतम का, कर्म बंधन सहज छूटें, अचल ध्रुव सिद्ध पद प्रगटे, हो आनंदमय हो मंगलमय ॥ ५ ॥ कैसी सुन्दर जिनप्रतिमा... कैसी सुन्दर जिनप्रतिमा है, कैसा सुन्दर है जिनरूप । जिसे देखते सहज दीखता, सबसे सुन्दर आत्मस्वरूप ॥ टेक ॥। नग्न दिगम्बर नहीं आडम्बर, स्वाभाविक है शांत स्वरूप । नहीं आयुध नहीं वस्त्राभूषण नहीं संग नारी दुखरूप ॥ १ ।। बिन शृंगार सहज ही सोहे, त्रिभुवन माँही अतिशय रूप । कायोत्सर्ग दशा अविकारी, नासादृष्टि आनन्द रूप ।।२।। अर्हत प्रभु की याद दिलाती, दर्शाती अपना प्रभु रूप । बिन बोले ही प्रगट कर रही, मुक्तिमार्ग अक्षय सुखरूप ।।३।। जिसे देखते सहज नशावे, भव-भव के दुष्कर्म विरूप । भावों में निर्मलता आवे, मानो हुए स्वयं जिनरूप ||४|| महाभाग्य से दर्शन पाया, पाया भेदविज्ञान अनूप । - चरणों में हम शीश नवावें, परिणति होवे साम्यस्वरूप ||५| 11914

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