Book Title: Pratishtha Pujanjali Author(s): Abhaykumar Shastri Publisher: Kundkund Kahan Digambar Jain Trust View full book textPage 7
________________ प्रतिष्ठा पूजाञ्जलि LL ज्योतिय॑न्तर-भावनामरगृहे मेरौ कुलाद्रौ तथा, .. जम्बू-शाल्मलि-चैत्यशाखिषु तथा वक्षार-रौप्याद्रिषु । इष्वाकारगिरौ च कुण्डलनगे द्वीपे च नन्दीश्वरे, शैले ये मनुजोत्तरे जिनगृहाः कुर्वन्तु ते मंगलम् ।।७।। यो गर्भावतरोत्सवो भगवतां जन्माभिषेकोत्सवो, यो जातः परिनिष्क्रमेण विभवो यः केवलज्ञानभाक् । यः कैवल्यपुरप्रवेशमहिमा संपादितः स्वर्गिभिः, कल्याणानि च तानि पञ्च सततं कुर्वन्तु ते मंगलम् ।।८।। इत्थं श्री जिनमंगलाष्टकमिदं सौभाग्यसंपत्प्रदम्, कल्याणेषु महोत्सवेषु सुधियस्तीर्थङ्कराणामुषः। ये शृण्वन्ति पठन्ति तैश्च सुजनैर्धर्मार्थकामान्विता, लक्ष्मीराश्रियते व्यपायरहिता निर्वाणलक्ष्मीरपि ।।९।। **** निरखत जिनचन्द्रवदन निरखत जिनचन्द्र-वदन स्व-पद सुरुचि आई। प्रकटी निज आन की पिछान ज्ञान भान की। कला उद्योत होत काम-जामनी पलाई।।निरखत.।। शाश्वत आनन्द स्वाद पायो विनस्यो विषाद। आन में अनिष्ट-इष्ट कल्पना नसाई।निरखत. ।। साधी निज साध की समाधि मोह-व्याधि की। उपाधि को विराधि कैं आराधना सहाई।।निरखत.।। धन दिन छिन आज सुगुनि चिन्ते जिनराज अबै। सुधरो सब काज 'दौल' अचल रिद्धि पाई।निरखत.।।Page Navigation
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