Book Title: Pratishtha Pujanjali
Author(s): Abhaykumar Shastri
Publisher: Kundkund Kahan Digambar Jain Trust

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Page 5
________________ SAA T L प्रतिष्ठा पूजाञ्जलि मंगलाचरण पंचपरमेष्ठी वंदना अरहंत सिद्ध सूरि उपाध्याय साधु सर्व, अर्थ के प्रकाशी मांगलीक उपकारी हैं। तिनको स्वरूप जान राग तैं भई जो भक्ति, काय को नमाय स्तुति को उचारी है ।। धन्य-धन्य तुमही तें काज सब आज भये, कर जोरि बार-बार वन्दना हमारी है । मंगल कल्याण सुख ऐसो हम चाहत हैं, होहु मेरी ऐसी दशा जैसी तुम धारी है ।। वन्दनीय हो गये वन्दनीय हो गये प्रभु, निज का वन्दन कर। हुए जगत आराध्य, स्वयं का आराधन कर ॥ परमतत्त्व की श्रद्धा से, श्रद्धेय हो गये । आप आपको ध्याय, ध्यान के ध्येय हो गये ।। क्या करें गुणगान क्या करें गुणगान प्रभुवर आपके उपकार का । आपने निज निधि हमें दी नमन करते आपका ।। आप में प्रभु आप से ही आप - सी श्रद्धा जगे । दूर होंगे पाप सारे परिणति निज में रमें ।। HH u

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