Book Title: Pratishtha Pujanjali Author(s): Abhaykumar Shastri Publisher: Kundkund Kahan Digambar Jain Trust View full book textPage 4
________________ पंचपरमेष्ठी वंदना वन्दनीय हो गये क्या करें गुणगान मंगलाष्टक मंगल पञ्चक घड़ी जिनराज दर्शन की कैसी सुन्दर जिनप्रतिमा ऐसा ही प्रभु मैं भी जिन स्तवन दर्शन स्तुति प्रतिमा प्रक्षाल पाठ लघु अभिषेक पाठ मैंने प्रभुजी के चरण पखारे आराधना पाठ श्री अरहंत सदा मंगलमय विनय पाठ पूजा पीठिका श्री देव-शास्त्र-गुरु पूजन श्री देव-शास्त्र-गुरु पूजन समुच्चय पूजन श्री पंचपरमेष्ठी पूजन श्री सिद्ध पूजन श्री आदिनाथ पूजन श्री शान्तिनाथ पूजन श्री पार्श्वनाथ पूजन श्री सीमन्धर पूजन श्री वीतराग पूजन श्री मुनिराज पूजन चौबीस तीर्थंकरों के अर्घ्य महा अर्घ्य शान्ति पाठ विसर्जन पाठ यागमण्डल विधान निरखत जिनचन्द्रवदन प्रक्षाल के संबंध में विचारणीय बिन्दु दरबार तुम्हारा मनहर है। विषयानुक्रमणिका मंगल प्रभात जी मंगल चार जगत में हैं... धन्य धन्य है घड़ी आज की.... अब विषयों में नाहिं रमेंगे.... ५ | केवलज्ञानकल्याणक पूजन मोक्षकल्याणक स्तुति ५ मोक्षकल्याणक पूजन ६ निर्वाणकाण्ड (भाषा) ८ जिनमार्ग ९ ज्ञानाष्टक ९ सान्त्वनाष्टक १० १० ११ १२ १६ १६ १७ १८ १९ ५१ ५५ ५९ ६४ ६८ आनन्द अवसर आयो... २० अशरीरी सिद्ध भगवान... २४ रोम-रोम पुलकित हो जाए... प्रभो आपकी अनुपम परिणति २८ ३१ ऐसे साधु सुगुरु कब मिलि हैं ३४ सिद्धों की श्रेणी में आने वाला.. ३७ मुनिवर आज मेरी .... ४१ ४६ ७५ ७६ गर्भकल्याणक स्तुति गर्भकल्याणक पूजन जन्मकल्याणक स्तुति जन्मकल्याणक पूजन उपकल्याणक पूजन १३७ आहारदान के समय मुनि ऋषभदेव पूजन १४३ ज्ञानकल्याणक स्तुति ७६ ७७ १२१ १२२ मेरा सहज जीवन समता षोडसी परमार्थशरण सर्वज्ञ शासन जयवंत वर्ते ये महा महोत्सव.... शासन ध्वज लहराओ... १३० १३१ वे मुनिवर कब मिलि हैं उपगारी निर्ग्रन्थों का मार्ग.... प्रतिष्ठा पूजाञ्जलि जंगल में मुनिराज अहो.... रोम-रोम से निकले प्रभुवर... धन्य धन्य मुनिवर का जीवन धन्य मुनिराज की समता धनि मुनिराज हमारे हैं। निर्ग्रन्थ दिगम्बर साधु निर्ग्रन्थ भावना महिमा है अगम जिनागम... धन्य धन्य जिनवाणी माता... धन्य-धन्य वीतराग वाणी.... सुनकर वाणी जिनवर..... शान्ति सुधा बरसाये जिनवाणी सांची तो गंगा यह... केवलि - कन्ये वाङ्मय... हे जिनवाणी माता... जिन-बैन सुनत मोरी .... १४७ बारह भावना विविध ७ आनन्द अवसर आज १५ धन धन जैनी साधु जगत के देखो जी आदीश्वर स्वामी... १६ ९४ कर्त्तव्याष्टक १०२ वीतरागी देव तुम्हारे १०६ जिनवर का उपकार अहो १५६ १५७ १६८ १७० १७२ १७३ १७५ १७६ १७८ १७९ १८० १८२ १८/२ १८३ १८३ १८४ १८५ १८६ १८/६ १८७ १८८ १८८ १८/९ १९० १९ १९१ १९२ १९३ १९४ १९६ १९/६ १९७ १९७ १९८ १९८ १९९ १४ १४ ६ १५५ १७७ १८५Page Navigation
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