Book Title: Pratishtha Lekh Sangraha Part 02
Author(s): Vinaysagar
Publisher: Vinaysagar

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Page 134
________________ १०९ प्रतिष्ठा-लेख-संग्रहः द्वितीयो विभागः (५५८) मनरूप जी-पादुका ॥ स्वस्ति श्री संवति १९०७ प्रमिते मासोत्तम मार्ग सित ५ पञ्चम्यां गुरौ। श्रीमद्धृहद्खरतरभट्टारकगच्छे श्रीकीर्तिरत्नसूरिशाखायां पं। प्र। पं। श्रीमनरूपजित्कानां चरणसरोरुहयुगलस्थापने ॥ (५५९) जिनकुशलसूरि-पादुका स्फटिकरत्न । संवत् १९०७ माघ सु। १२ सोमवारे दादाजी श्रीजिनकुशलसूरिजी चरण..........नौतिः। (५६०) सुपार्श्वनाथ-मूलनायक । संवत् १९०७ रा वर्षे । मा। फागुण सुदि ३ गुरुवार श्रीसुपार्श्वजिनबिंबं। प्रति। भ० श्रीजिनसौभाग्यसूरिभिः॥ (५६१) शिलापट्ट-प्रशस्तिः ॐ नमः॥ त्रिभुवनप्रभुश्रीमत्पद्मप्रभु-चन्द्रप्रभु-श्रीमद्गौडीपार्श्वप्रभुजिनेन्द्राणामयं प्रासादश्चिरं विजयताम् संव्वत् १९०७ प्रमिते शाके १७७२ प्रवर्तमाने मासोत्तम फाल्गुन मासे शुभेऽसित पक्षे पञ्चम्यां तिथौ गुरौ। ५ श्रीमन्महाराजाधिराज राजराजेन्द्र श्रीसवाई रामसिंहजित्कानां विजयमाने साम्राज्ये बृहत्तपागच्छेश जंगम युगप्रधान भट्टारकजिच्छ्रीविजयजिनेन्द्रसूरि-पट्टालङ्कार भ० जिच्छीविजयदेवेन्द्रसूरिजितां धर्मराज्ये विद्यमाने सवाई जयनगरे घाटमध्येयं । जयवंतसागरजित्कोपदेशादोशवालवंशे वृद्धशाखायां वैदमुहतागोत्रे सुश्रावक पुण्यप्रभावक देवगुरुभक्तिकारक मुहताजी श्रीकपूरचंदजी तत्सुत राजसीजी तत्पुत्र जगरामजी तत्पुत्र जैनधर्मोद्योतकारक आदर्शव्रतधारक श्रीअनन्तरामजित्केनासौ श्रीमत्प्रासादः प्रतिष्ठा च। कारापिता सकलपंडितशिरोमणि पं। प्रवर श्रीगुमानसागरजिद्वणिगजेन्द्राणां शिष्य पं। श्रीशिवसागरजित्पं । श्रीजयवंतसागरजिद्गणीनां शिष्यमुख्य पं। श्रीजयसागरगणिना प्रासादोयं प्रतिष्ठितः॥ श्रीरस्तु॥ ५५८. अजमेर दादाबाड़ी ५५९. जयपुर यति श्यामलालजी का उपासरा ५६०. पार्डी (नागपुर) सुपार्श्वनाथ मंदिर ५६१. जयपुर घाट पद्मप्रभ मंदिर Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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