Book Title: Pratishtha Lekh Sangraha Part 02
Author(s): Vinaysagar
Publisher: Vinaysagar

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Page 218
________________ महोपाध्याय विनयसागर जन्म - 1जुलाई, 1929 शिक्षा : साहित्य महोपाध्याय, साहित्याचार्य, जैन दर्शन शास्त्री, साहित्यरत्न (सं.) आदि। सम्मानित उपाधियाँ : साहित्य वाचस्पति, महोपाध्याय, शास्त्र-विशारद, विद्वत्रत्न आदि। म. विनयसागर प्राकृत, संस्कृत, अपभ्रंश, गुजराती, राजस्थानी भाषाओं के विद्वान तथा पुरालिपियों एवं हस्तलिखित लिपियों के विशेषज्ञ तो हैं ही, उनके पास जैन-दर्शन एवं परम्परा का चहुँमुखी अध्ययन और अनुभव भी है। खरतरगच्छ के इतिहास और साहित्य के धुरंधर ज्ञाता है। एक लम्बे समय से जैन दर्शन, प्राकृत भाषा, पुरातत्त्व, इतिहास आदि अनेक विषयों में शोधरत होने के साथ-साथ आपका लेखन नियमित रूप से चल रहा है। आपके द्वारा लिखित/अनुवादित/सम्पादित पुस्तकों की श्रृंखला में 50 से अधिक हैं तथा अन्य दस पुस्तकें प्रकाशन के लिये प्राकृत भारती अकादमी के 1551 प्रकाशन भी आपके Serving JinShasanik आपकी पुस्तकों में से वृत्तमौक्तिकम् तथा नेमिदूतम् क्रमः | श्वविद्यालय के एम. ए. संस्कृत के पाठ्यक्रम में रही हैं / कार ने सन् 1986 में, 1988 में राजस्थानी वेलफेयर gyanmandirgkobatirth.org हर सम्मान पुरस्कार तथा प्राकृत भारती अकादमी, जयपुर ने गौतम गणधर पुरस्कार से आपको सम्मानित भी किया है। सम्प्रति भोगीलाल लहरचंद इन्स्टीट्यूट ऑफ इंडोलोजी, दिल्ली के प्रोफेसर पद तथा सन् 1977 से प्राकृत भारती अकादमी, जयपुर के निदेशक एवं संयुक्त सचिव पद पर कार्यरत हैं। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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