Book Title: Prasamrati Prakarana
Author(s): Umaswati, Umaswami, Mahesh Bhogilal, V M Kulkarni
Publisher: Nita M Bhogilal & Others

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Page 68
________________ 50 प्रशमरति प्रशमितवेदकषायस्य हास्यरत्यरतिशोकनिभृतस्य । भयकुत्सानिरभिभवस्य यत्सुखं तत्कुतोऽन्येषाम्॥१२६॥ सम्यग्दृष्टिआनी ध्यानतपोबलयुतोऽ प्यनुपशान्त : । तं लभते न गुणं यं प्रशमगुणमुपाश्रितो लभते ॥१२७।। नैवास्ति राजराजस्य तत्सुखं नैव देवराजस्य । यत्सुखमिहैव साधोर्लोकव्यापाररहितस्य ॥१२८।। संत्यज्य लोकचिन्तामात्मपरिज्ञानचिन्तनेऽ भिरत : । जितलोभरोषमदन : सुखामास्ते निर्जर : साधुः ॥१२९।। या चेह लोकवार्ता शरीरवार्ता तपस्विनां या च। सद्धर्मचरणवार्तानिमित्तकं तवयमपीष्टम्॥१३०॥ लोक : खल्वाधार : सर्वेषां ब्रह्मचारिणां यस्मात् । तस्माल्लोकविरुद्धं धर्मविरुद्धं च संत्याज्यम्॥१३१॥

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