Book Title: Prasamrati Prakarana
Author(s): Umaswati, Umaswami, Mahesh Bhogilal, V M Kulkarni
Publisher: Nita M Bhogilal & Others

Previous | Next

Page 144
________________ प्रशमरति 126 प्रशमरतिनित्यतृषितो जिनगुरुसाधुजनवन्दनाभिरत : । संलेखनां च काले योगेनाराध्य सुविशुद्धाम्॥३०६॥ प्राप्त:कल्पेष्विन्द्रत्वं वा सामानिकत्वमन्यद्वा । स्थानमुदारं तत्रानुभूय च सुखं तदनुरूपम् ॥३०७।। नरलोकमेत्य सर्वगुणसंपदं दुर्लभां पुनर्लब्ध्वा । शुद्ध: स सिद्धिमेष्यति भवाष्टकाभ्यन्तरे नियमात्॥३०८॥

Loading...

Page Navigation
1 ... 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168