Book Title: Prasamrati Prakarana
Author(s): Umaswati, Umaswami, Mahesh Bhogilal, V M Kulkarni
Publisher: Nita M Bhogilal & Others

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Page 122
________________ प्रशमरति 104 पूर्व करोत्यनन्तानुबन्धिनाम्नां क्षयं कषायाणाम् । मिथ्यात्वमोहगहनं क्षपयति सम्यक्त्वमिथ्यात्वम् ॥२५९।। सम्यक्त्वमोहनीयं क्षपयत्यष्टावत : कषायांश्च । क्षपयति ततो नपुंसकवेदं स्त्रीवेदमथ तस्मात्॥२६०| हास्यादि तत: षट्कं क्षपयति तस्माच्च पुरुषवेदमपि । संज्वलनानपि हत्वा प्राप्नोत्यथ वीतरागत्वम्॥२६॥ सर्वोद्घातितमोहो निहतक्लेशो यथा हि सर्वज्ञ : । भात्यनुपलक्ष्यरावंशोन्मुक्त : पूर्णचन्द्र इव ॥२६२।। सर्वेन्धनैकराशीकृतसंदीप्तो ह्यनन्तगुणतेर्जी :। ध्यानानलस्तपःप्रशमसंवरहविर्विवृद्धबल : ॥२६३॥ क्षपकश्रेणिमुपगत : स समर्थ : सर्वकर्मिणां कर्म । क्षपयितुमेको यदि कर्मसंक्रम : स्यात्परकृतस्य ।।२६४।। परकृतकर्मणि यस्मान्न क्रामति संक्रमो विभागो वा। तस्मात्सत्त्वानां कर्म यस्य यत्तेन तद्वेद्यम् ॥२६५॥

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