Book Title: Prasamrati Prakarana
Author(s): Umaswati, Umaswami, Mahesh Bhogilal, V M Kulkarni
Publisher: Nita M Bhogilal & Others

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Page 126
________________ प्रशमरति 108 क्षीणचतुष्कर्मांशो वेद्यायुर्नामगोत्रवेदयिता। विहरति मुहूर्तकालं देशोनां पूर्वकोटि वा ॥२७०।। तेनाभिन्नं चरमभवायुर्दुर्भेदमनपवर्तित्वात्। तदुपग्रहं च वेद्यं तत्तुल्ये नामगोत्रे च ॥२७१॥ यस्य पुन : केवलिन : कर्म भवत्यायुषोऽतिरिक्ततरम्। स समुद्धातं भगवानथ गच्छति तत्समीकर्तुम् ।।२७२।।

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