Book Title: Prasamrati Prakarana
Author(s): Umaswati, Umaswami, Mahesh Bhogilal, V M Kulkarni
Publisher: Nita M Bhogilal & Others

Previous | Next

Page 120
________________ प्रशमरति 102 सातर्द्धिरसेष्वगुरु : प्राप्यर्द्धिविभूतिमसुलभामन्यै : । सक्त : प्रशमरतिसुखे न भजति तस्यां मुनि : सङ्गम् ॥२५५।। या सर्वसुरवरद्धिविस्मयनीयापि सानगारट्टे :। नार्घति सहस्राभागं कोटिशतसहस्रगुणितापि ॥२५६।। तजयमवाप्य जितविघ्नरिपुर्भवशतसहस्रदुष्प्रापम्। चारित्रमथाख्यातं संप्राप्तस्तीर्थकृत्तुल्यम् ।।२५७।। शुक्लध्यानाद्यद्वयमवाप्य कर्माष्टकप्रणेतारम्। संसारमूलबीजं मूलादुन्मूलयति मोहम् ॥२५८।।

Loading...

Page Navigation
1 ... 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168