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स्थापत्यों की रचना की, और असका ब्योरा जैन ग्रंथोमें किया गया है । बाहुबली ने तक्षशिला बसायी जहाँ इक्कीस इक्कीस २१४२१ प्रत्येक बाजूके मडपवालो चतुमुख प्रासाद अन्होंने बंधाया भरतचक्रवर्तीके पुत्र सोमयशाने त्रैलोक्य दीपक नामका प्रासाद बनाया जिसका अद्भुत वर्णन जैन ग्रंथों में है। पवित्र शत्रुजय नदीकी पूर्व में और दक्षिणमें "सुरविश्राम" और "रत्न तिलक" नामके प्रासाद, और गिरनार पर "सुरसुदर" नामके चतुर्मुख प्रासादके अिर्दगिई ४४११ चौवालीस म डपवाला उद्यान सहित प्रासाद और पश्चिममें "स्वस्तिका-वर्तिक' नामका प्रासाद भी बनवाया था।
भरत चक्रवर्तीने अष्टापद पर्वतपर की जहाँ ऋषभदेव के अग्नि संस्कार हुओ थे असी स्थलपर तीन बडे स्तूप बंधाये और अक योजन लंबा और चौडा चतुर्मुख 'सिंहनिषद्या” नामक प्रासाद बनवाया और वहाँ पर अँचा स्तूप और छोटे छोटे स्तूप बंधाये । अिन सबों के वर्णन जैन ग्रंथोमें दिये हैं। परंतु अनके अवशेष आज देखनेमें आते नहीं । ___ महाभारतकी पांडवो की सभाका वर्णन देते हुओ "विश्वकर्मा" या "मय" स्थपतिके स्थानपर अर्जुनके मित्र मणिधुडविद्याधरने विद्यावलसे इंद्रसभा जैसी नवीन सभाका निर्माण किया था असा वर्णन दिया है ।
बौद्ध संपदायके स्थापत्यो में भी जैनियों जैसी चैत्य. स्तूप विहार और स्तंभकी प्रथा विदामान थी । बुद्ध निर्वाण के दो शताब्दि वाद प्रतिमा पुजनका प्रारंभ हुआ। अनके अपर देवालय बनाये गये जिनको चैत्य कहते हैं। बुद्ध या अनके संप्रदायके महापुरुषोंके अस्थि, बाल, या भस्मके अपर स्मारक बनाने में आते । असे स्थापत्यको "स्तूप (उलटे टोकरेके आकारका)" कहते हैं। बौद्धसाधुओंके रहने के या अध्ययन करनेके स्थानको “विहार" कहते है। खुद बुद्ध भगवानने विहारके मापके बारे में कहा है । बुद्ध भगवानने जहाँ जहाँ बास किया हो या अपदेश दिया हो, जैसे पवित्र स्थानोंपर अनुयायीयोंने स्मृतिरूप विशाल "स्तंभ" खडे किये हैं। वर्तमानमें यह सब स्थापत्य संपूर्ण रूपसे या अवशेष रूपमें देखने में आते हैं। ___ वैदिक, जैन, या बौद्धसंप्रदायकी कंदराओ बनाी जानेके बाद देवालयोंको बांधनेकी प्रथा शुरु हुी होगी अमा माननेका कारण मिलता है। देशके पृथक पृथक भागों में कैदरा बन सके जैसी गिरिमालाओं मौजुद है । वहाँ पहले तो सरल रूपमें गुफाओं होने लगी और बादमें घाट और नक्काशी कामसे अलंकृत होने लगी। अिनमेंसे की गुहाओं की छत काष्ठकी प्रतिकृति रूप हैं । असा माना जाय कि यह कला लकडीपरसे पत्थरमें उतरी । जैसी कलामय गुफाओं की छत