Book Title: Prakrit Vyakaranam Part 2 Author(s): Hemchandracharya, Ratanlal Sanghvi Publisher: ZZZ Unknown View full book textPage 3
________________ (६) प्राकृत-भाषा के अद्वितीय विद्वान पं. श्री वरदासनी अपने पोस्ट कार्ड ता. २५-६-६४ में लिखते हैं कि:-"व्याकरण मोकली ने मने आभारी कर्यो छे।" (७) वं मुनि श्री जिनेन्द्र विजयजा लीबड़ा (काठियावाड़। से अपने पोस्ट कार्ड ता. १५-१२-६६ में लिखते हैं कि:-''पू. हेमवन्द्र सू. म. ना व्याकरण ने हिन्दी--विवेचन अने समजावट थी सारी रोते प्रगट करायो छ जे प्राथमिक अभ्यासोओं माटे अणु उपयोगी थशे ।" (८) गुजरात युनीवरसिटी में अधमागधी भाषा के विशिष्ट प्रोफेसर डॉ. के. बार चन्द्रा अपने ता. १०-१-६७ वाले पत्र में लिखते हैं कि:-''सरल भाषा में हिन्दी अनुवाद सब के लिये उपयोगी होगा । हरेक शब्द की सिद्धि व्याकरण के सूत्रों द्वारा समझाई गयी है, काफी परिश्रय किया गया है। विश्व विद्यालययों के प्राकृत के विद्यायियों के लिये यह ग्रन्थ बहुत ही उपयोगी है । वैसे हिन्दी भाषा में यह ग्रन्थ अपूर्व है।" (6) पं. श्री अंबालाल प्रेमचन्द शाह व्याकरण तीर्थ. अहमदाबाद अपने पत्र ता. २-१-६७ में लिखते हैं कि:-"आपने प्राकृत-व्याकरण का विस्तृत अनुवाद, उदाहरणों की व्युत्पत्ति और शब्द व धातुओं के अर्थ का कोश देकर ग्रन्थ को सुबोध बनाने का प्रयत्न किया है, जिससे विद्यार्थियों को खूब उपयोगी बन पड़ेगा।" (१०) श्री मूलचन्दजी सा. जन शास्त्री-श्री महावीरजी-राजस्थान अपने पत्र में लिखते हैं कि:-'इसके बल पर प्राकृत-भाषा का जिज्ञासु अपनी ज्ञान-पिपासा अच्छी तरह से शमित कर सकता है । यह बड़ा ही उपयोगी सुन्दर कार्य संपन्न हुआ है।" (११) मास्टर मा बी शोभालालजी महेता उदयपुर अपने पोस्ट कार्ड ता. १९-५-६६ द्वारा लिखते हैं कि:-“पहिला भाग जो मेरे पास आया, बड़ा सुन्दर एवं प्रशंसनीय है । समझाने को अच्छो शैली है ।"-- {१२) “सम्यग्दर्शन" सैलाना के सुयोग्य संपादक थी रतनलालजी साहब डोशो अपने पत्र "सम्यग्दर्शन" के वर्ष १७ अंक २२ ता. २० नवम्बर ६६ में लिखते हैं कि:-"प्राकृत भाषा के अभ्यासियों के लिये यह ग्रन्थ बहुत लाभ दायक होगा।" (१३) "गुजरात युनीवरसीटी-अहमदाबाद" के भाषा--विज्ञान के सम्मान्य प्रोफेसर "श्री ए. सी, भयाणो" अपने पत्र में ता. ६-२-६७ को लिखते हैं कि:-"प्राकृत-व्याकरण (हिन्दी व्याख्या सहित) मल्युं । ते माटे आपनो आभारी छु । अत्यन्त श्रम लईने बधां सूत्रो जीणवट थी अने अन्य जे जे सूवो लागु पडतां होय तेम नी पूर्ति साये विशदता थी समझाया छ । प्राकृत ना अभ्यास नी रुचि के लोक प्रियता ओछी थती जाय छे त्यारे या प्रकार नी व्याख्या वालुं व्याकरण अभ्यासी ने खूबज उपयोगी थाय तेम छ ।" सम्पादक संघवीPage Navigation
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