Book Title: Prakrit Vyakaranam Part 2
Author(s): Hemchandracharya, Ratanlal Sanghvi
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 2
________________ प्राकृत-व्याकरण-प्रथम-भाग पर प्राप्त कुछ एक सम्मतियों का विशिष्ट अंश (१) कविरत्न, गंभीर विचारक, उपाध्याय श्री अमर मुनि नी महाराज साहब फरमाते हैं कि:-"यह हिन्दी टोक। अपने कक्ष पर सर्वोत्तम टीका है । प्रत्येक सूत्र का हिन्दी अर्थ है, मूत्रों में उदाहरण स्वरूप दिये गय समग्र प्रयोगों की विश्लेषणात्मक साधनिका है और यत्र तत्र यथावश्यक शंका समाधान भी है । मेरे विचार में उक्त हिन्दो टोका के माध्यम से साधारण पाठक भी आचार्य हेमचन्द्र के प्राकृत-व्याकरण का सर्वागीण अध्ययन कर सकता है।" ता. १५-११-६६ (२) प्रसिद्धवक्ता, पंडित रत्न, मालप-कैमरी श्री सौभाग्यमलजी महाराज साहब लिखाते हैं कि:-"आपने जो प्राकृत व्याकरण भाग पहिला सरल भाषा में तैयार किया है, वह प्राकृत-भाषा के अभ्यासियों के लिये बहुत उपयोगी तथा उपकारक हुआ है।" ता. २३-११-६६ (३) स्थानकवासी जैन - अहमदाबाद अपने ता. ५-१-६५ के अंक में प्रकाशित करता है कि:-या ग्रन्थ नु संयोजन कराने प्राकृत भाषा ना अभ्यासिओ माटे खूबज अनुकूलता उभी करी आपो छे ते माटे ग्रन्थ ना योजक, संयोजक अने प्रकाशक नो सेवा सराहनीय छ' (४) तरुण जैन-जोधपुर अपने ता. ६-७-६५ के अंक में प्राप्ति-स्वीकार करता हुआ लिखता है कि:-''प्राकृत-व्याकरण के ऊपर प्रियोदय हिन्दी-व्याख्या नामक बिस्तृत टीका की रचना करके प्राकृत-भाषा के पाठकों के हित में अत्यन्त प्रशंसनीय कार्य किया है। हिन्दो-व्याच्या प्राकृतभाषा को समझने समझाने में पूर्ण रूपेण सक्षम है । प्राकृत शब्दों को सावनिका का निर्माण भी सूत्र-संख्या का निर्देश करते हुए किया है। इससे प्राकृत-व्याकरण को पढ़ने पढ़ाने की परिपाटो सदा के लिये भविष्य में भी सुरक्षित हो गई है।" (५) सुप्रसिद्ध जैन विद्वान, गंभीर लेखक और विचारक भी इल सुख भाई मालवणिया ता. २३-१-६७ के पत्र में लिखते हैं कि-"हिन्दो व्याख्या के साथ प्रकाशन जो हुआ है वह प्राकृत-भाषा के व्याकरण को बिना किसी की सहायता के जो जिज्ञासु पढ़ना चाहते हैं उनके लिये सहायक ग्रन्य के रूप में अवश्य सहायक सिद्ध होगा। व्याकरण में दिये गये प्रत्येक उदाहरण की व्याकरण की दृष्टि से सिद्धि करके दिखाई है-उससे अध्येता का मार्ग सरल हो जाता है । इसका विशेष प्रचार हो-यही कामना है।

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