Book Title: Prakrit Vyakaranam
Author(s): Narmadashankar Damodar Shastri
Publisher: Narmadashankar Damodar Shastri

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Page 8
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रथमःपादः। मूल भाषांतर. या सूत्रमा बहुल ए पदनो श्रा शास्त्रनी समाप्ति सुधी अधिकार बे. तेथी को ठेकाणे तेनी प्रवृत्ति पाय, को ठेकाणे अप्रवृत्ति थाय. कोश् काणे विकटप थाय अने को ठेकाणे तेथी जुदुंज थाय, ते एम योग्य स्थाने दर्शाविशुं. ॥ढुंढिका॥ बहुलं बहुपूर्व लांक्वादाने बहून् श्रर्थान् लातीति बहुलं क्रियावितोषणादम् । क्वचिडः प्रत्ययः डित्यंत्यः थालोपः लोकात् मोऽनुखारः बहुल ॥ टीका भाषांतर. बहुलं ए शब्दमां पूर्वे बहु शब्द . तेने लांक् ए धातु ग्रहण करवामां प्रवर्ते बे, ते लगाडी बहु एवा अर्थने जे ग्रहण करे ते बहुल कहेवाय . अहिं बहुला अयुं तेने क्रियावि० ए सूत्रथी अम् आव्यो, अथवा कचित् ड प्रत्यय श्राव्यो, पजी डित् प्रत्यय परबते अंत्य आकारनो लोप थयो एटले बहुल थयु, पनी लोक व्याकरणथी म् नो अनुस्वार थयो एटले बहुलं ए शब्द सिद्ध थयो. आर्षम् ॥३॥ ऋषीणामिदमार्ष श्रार्ष प्राकृतं बहुलं जवति । तदपि यथास्थानं दर्शयिष्यामः । श्रार्षे हि सर्वे विधयो विकल्पते ॥ मूल भाषांतर. शषि जे पूर्वाचार्य संबधी ते आर्ष कहेवाय जे. अर्थात् ते शषि प्रणीत प्राकृत बहुल श्राय . तेपण योग्य स्थाने दर्शाविशुं. ते आर्षप्राकृतमा सर्व प्रकारना विधि विकटपे थाय ने, ॥ढुंढिका ॥ आर्ष रुषीणामिदं श्रार्ष ऋषिवृष्ण्यंधककुरस्यश्त्यण वृद्धिः ऋकारस्यार अवर्णेवर्णस्यश्लोपः ११ आत्यस्यमोम् सिस्थानेम् समानादमोतः अलुका मोऽनुं० आर्ष आर्षे हि सर्वे विधयो वैचित्रेण प्रवर्त्तते इत्यर्थः ॥३॥ मूल भाषांतर. रुषि संबंधी ते आर्ष कहवाय. आर्ष ए शब्दमां रुषिवृष्ण्यंधक ए सूत्रवडे अण् प्रत्यय आवी वृद्धि थाय एटले रुकारनो आर् अयो, पनी अवर्णेवर्णस्य ए सूत्रवडे पि मां रहेला इकारनो लोप अयो. ते नपुंसके प्रथमानुं एक वचन होवाथी सि ने स्थाने म् अयो, अने समानादमोतःए सूत्रवडे अ नो लुक् थयो, पठी मोनुस्वार सूत्रवडे म् नो अमुस्वार अवाश्री आर्ष ए शब्द सिझ थयो. आ आर्ष प्राकृतमां सर्व जातना विधयो विकटपे थाय वे. For Private and Personal Use Only

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