Book Title: Prakrit Vyakaranam
Author(s): Charanvijay
Publisher: Atmanand Jain Sabha

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Page 12
________________ आ ग्रंथना अंतिम प्रुफो (Proofs) पूज्यपाद, प्रवर्तक, श्रीमान् कांतिविजयजी महाराजना प्रशिष्यरत्न, विद्वान् , संशोधनकार्यमां अतिनिपुण, पूज्यप्रवर, मुनिवर्य, श्रीमान् पुण्यविजयजी महाराजे तपासी आप्या छे. ते माटे तेओश्रीनो अंतःकरणथी आभार मार्नु छ. जो के बनता प्रयत्ने आ प्राकृत व्याकरण शुद्ध करेल छ तथापि दृष्टि दोषथी, अक्षर योजकना दोषथी, के मुद्रण दोषथी कोइ अशुद्धि रहेवा पामी होय तो निसर्ग कृपालु सुज्ञ सुधारवा कृपा करशे. एवी आशा साथे विरमुं छं. उजमबाई धर्मशाला. रतनपोल. अमदाबाद. | निवेदक१९९१ कर्तिकसुदि ५. आत्मसं ३९. [ मुनि चरणविजय. रविवार. ता.११-११-३४.)

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