Book Title: Prakrit Vyakaranam
Author(s): Charanvijay
Publisher: Atmanand Jain Sabha

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Page 24
________________ ईद् धैर्ये ॥ ८।१।१५५॥ ओतोऽद्वाऽन्योन्य-प्रकोष्ठा-ऽऽतोद्य-शिरोवे दना-मनोहर-सरोरुहे तोश्च वः॥१५६॥ ऊत् सोच्छासे ॥ ८।१।१५७॥ गव्यउ-आअः॥८।१।१५८ ॥ औत ओत् ॥८।१।१५९॥ उत् सौन्दर्यादौ ॥८।१।१६०॥ कौक्षेयके वा॥८।१।१६१॥ अउः पौरादौ च ॥८।१।१६२॥ आच्च गौरवे ॥ ८।१।१६३ ॥ नाव्यावः॥८।१।१६४॥ एत् त्रयोदशादी स्वरस्य सस्वरव्यञ्जनेन ॥ स्थविर-विचकिला-ऽयस्कारे ॥ ८॥१११६६ ॥ घा कदले ॥८।१।१६७॥ बेतः कर्णिकारे ॥८।१।१६८॥ 3

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