Book Title: Prakrit Vyakaranam Author(s): Charanvijay Publisher: Atmanand Jain SabhaPage 73
________________ तनेस्तड-तड्ड-तड्डव-विरल्लाः॥८॥४।१३७॥ तृपस्थिप्पः ॥ ८ । ४ । १३८॥ ॥८।४।१३९॥ संतपेझङ्खः ॥ ८ । ४ । १४०॥ व्यापेरोअग्गः ॥८।४ । १४१॥ समापेः समाणः ॥ ८ । ४ । १४२॥ क्षिपेर्गलस्था-ऽड्डक्ख-सोल्ल-पेल-जोल-छुह हुल-परी-घत्ताः॥ ८ । ४ । १४३ ॥ उत्क्षिपेगुलगुञ्छोत्थवाऽलत्थोब्भुत्तोस्सिक हक्खुवाः॥८।४ । १४४॥ आक्षिपेीरवः ॥ ८ । ४ । १४५॥ स्वपेः कमवस-लिस-लोहाः॥८।४।१४६॥ वेपेरायम्बा-ऽऽयज्झौ ।। ८ । ४ । १४७॥ विलपेझड-वडवडौ ॥ ८।४।१४८॥ लिपो लिम्पः ॥ ८॥ ४ । १४९॥Page Navigation
1 ... 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134