Book Title: Prakrit Vyakaranam
Author(s): Charanvijay
Publisher: Atmanand Jain Sabha
Catalog link: https://jainqq.org/explore/002339/1

JAIN EDUCATION INTERNATIONAL FOR PRIVATE AND PERSONAL USE ONLY
Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीआत्मानन्द-जैन-शताब्दि-सिरीझ नं. २. न्यायांभोनिधिश्रीमद्विजयानन्दसूरिभ्यो नमः । कलिकालसर्वज्ञ-श्रीहेमचन्द्राचार्यविरचितं प्राकृतव्याकरणम्। (अष्टमाध्यायसूत्रपाठः) धातुपाठश्च सम्पादक: जैनाचार्यश्रीविजयवल्लभसरिपशिष्यरत्नपंन्यासश्रीउमङ्गविजयगणिविनेयो मुनिश्वरणविजयः। प्रकाशयित्रीश्रीआत्मानन्द-जैन-सभा. भावनगर. प्रति १००० ] मूल्यमाणकचतुष्टयम् [वीरसं० २४६१ विक्रमसं० १९९१, आत्मसं० ३९; ईस्वी सन् १९३५. Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Printed by Ramchandra Yesu Shedge, at the Nirnaya Sagar Press, 26-28, Kolbhat Lane, Bombay 2. Published by Vallabhdas Tribhuvandas Gandhi, Secretary, Shri Atmanand Jain Sabha. Bhavnagar. Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - समर्पण शान्त्यादि अनेक शुभगुण गणालंकृत विद्वान् माननीय पूज्यप्रवर मुनिवर्य श्रीमान् पुण्यविजयजी महाराजनी पुनित सेवामां ! सादर निवेदन करवान के सं० १९८४ नुं चौमासु पूज्यपाद प्रातःस्मरणीय आचार्य भगवान श्रीविजयवल्लभसूरीश्वरजी महाराजनी शीतल छत्र छायामां पाटणशहेरमा कयु. ते समये सेवके आपनी पासे श्रीहे. मचन्द्राचार्य महाराज रचित प्राकृतव्याकरण भणवानी हार्दिकभावना दरशावी. आपे आपना बहुमूल्य समयनो भोग आपी मने ते शीखव्यु. आपनी दयाथी अने श्रीगुरुदेवनी कृपाथी सेवक ने प्राकृत-मागधी विगेरे भाषानो यत्किंचित् बोध थयो. आ महान् उपकारने लइने आप पूज्यने ज आपनी अनीच्छाए पण आ प्राकृतव्याकरण नामनुं पुस्तक नम्र भावे सादर समर्पण करुं छु. आशा छे आप जरुर तेनो स्वीकार करशो. कृपाभिलाषी सेवक चरण. Page #4 --------------------------------------------------------------------------  Page #5 --------------------------------------------------------------------------  Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ न्यायांभोनिधि श्रीमद् विज्यानंदसूरीश्वरजी (आत्मारामजी) महाराज. श्री मध्य प्रेस-भावना२. Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ निवेदन. विद्वानोना करकमलमां श्रीआत्मानंद-जैन-शताब्दि-सिरीझनुं बीजं पुस्तक प्राकृतव्याकरण मूल अष्टमाध्याय समर्पण करतां परम प्रमोद थाय छे. आ प्राकृत व्याकरणना रचयिता सुप्रसिद्ध महान् तत्त्ववेत्ता कलिकालसर्वज्ञ, कुमारपालभूपालप्रतिबोधक, भगवान् श्रीहेमचंद्राचार्य महाराज छे. एओश्रीए पंचांगीपूर्ण सपाद लक्ष परिमित संस्कृत-प्राकृतव्याकरण बनान्युं छे. परममाननीय विद्वद्वर्य श्रीयुत पाणिनि महर्षिए वैदिक प्रयोगो साधवा माटे पोताना पाणिनि व्याकरणमां ज्यारे वैदिक प्रक्रिया राखी छे त्यारे श्रीहेमचंद्रसूरिजीए जैन आगम ग्रंथोना प्राकृत-मागधीभाषाना प्रयोगो सिद्ध करवा पोताना सिद्धहैमशब्दानुशासन व्याकरणमां आ प्राकृत व्याकरणना नामथी खतंत्र आठमो अध्याय रच्यो छे. अष्टाध्यायीमां सात अध्याय तो संस्कृतना रच्या छे अने केवल माठमामा छए भाषाना शब्दो सिद्ध थाय Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तेम कर्यु छे. पाणिनि व्याकरणमा वैदिक प्रक्रिया माटे खास कोई विभाग जुदो नथी पाड्यो त्यारे सिद्धहेमना सात अध्यायमां संस्कृत व्याकरण संपूर्ण करी आठमामां केवल प्राकृत विगेरे छए भाषाना नियमोज गुंथ्या छे. श्रीमहेचंद्राचार्य महाराज प्राकृत व्याकरणनो आरंभ करतां प्रथम "अथ प्राकृतम्" आ सूत्रनी रचना करे छे. तेमज एज सूत्रनी वृत्ति करतां पोते साफ जणावे छे के "संस्कृतानन्तरं प्राकृतमुच्यते" प्रथम में संस्कृत व्याकरण सात अध्यायना अठावीश पादमा संपूर्ण कयु. हवे प्राकृत व्याकरणनी शुरुआत करु . आ सूत्रथी आपणने पुरेपुरी खात्री थाय छे के सूरिजीए सहुथी प्रथम संस्कृत व्याकरण बनाव्युं अने पछी प्राकृत व्याकरणनो आरंभ कर्यो. आ आठमा अध्यायना चार पाद छे. प्रथम द्वितीय तृतीय पादमा अने चोथा पादना २५९ सूत्र सुधी प्राकृत प्रयोगोना नियमो ज आप्या छे. २६०थी शौरसेनी भाषानो आरंभ करी २६ सूत्रोमां तेना नियमो बतावी अंते शेषं प्राकृतवत् कही २८७ सूत्रथी मागधी भाषाना Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नियमोनो आरंभ करे छे. तेने १६ सूत्रमा समाप्त करी ३०३ थी पैशाची भाषाना नियमो २१ सूत्रमा पूर्ण करी ३२५ थी चूलिका पैशाची भाषाना कायदाओ बतावे छे १४ सूत्रोमां तेना खास नियमो आपी अंतमां प्रथम आवी गयेला नियमोनी साक्षी आपी ३३९ थी अपभ्रंश भाषाना नियमोनो आरंभ करे छे. तेने पादनी समाप्ति सुधी पहोंचाडेछे. आ प्रमाणे चारे पादमा प्राकृत, शौरसेनी, मागधी, पैशाची, चूलिकापैशाची, अने अपभ्रंश एम छए भाषाना नियमो रचयिताए सारी रीते बतान्या छे. श्रीहेमचंद्रसूरिना प्राकृतव्याकरणनी बराबरी करे तेवू सविस्तर व्याकरण बीजुं जोवामां आवतुं नथी. यद्यपि षड्भाषा चंद्रिका, प्राकृतप्रकाश, प्राकृतलक्षण विगेरे प्राकृतना नियमो बतावनार अन्य व्याकरणो छे. परंतु ए बधा संक्षेपमा छे. छए भाषानो जे विस्तार श्रीहेमचंद्रसूरिजीना प्राकृतव्याकरणमां मले छे तेवो विस्तार बीजा कोइ व्याकरणमां मलतो नथी एम चोक्कस खात्री पूर्वक हुं कहुं छु एम नही परंतु आजना Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समर्थ अर्ध मागधीना प्रोफेसरो ( Professors) मुक्तकंठे विना संकोचे उच्चारी रह्या छे. दिवसे दिवसे प्राकृत-मागधीनो अभ्यास वधु प्रमाणमा प्रसरतो जाय छे. ए बहुज इच्छनीय छे. अभ्यासिओने थोडामां वधु ज्ञान मले ए हिसाबे श्रीहेमचंद्राचार्य मूल सूत्रोमां एवा सरस नियमो बतावी आप्या छे के अभ्यासिओने अल्प प्रयासे प्राकृत-मागधीनो बोध मूल सूत्रो अने तेना नियमो कंठाग्र करी लेवाथी विशेष ज्ञान थइ शके एम छे. अने तेथीज आ मूल सूत्रो छपाववा प्रयत्न आदर्यों छे. घणा सूत्रोतो वृत्तिनी अपेक्षा राखताज नथी. पूर्वापरनो क्रम-अनुवृत्ति ध्यानमा रहे तो पछी वृत्तिनी जरुर विशेषतया जणाती नथी. पूना, पाटण, सूरत विगेरे स्थलोथी सवृत्तिक प्राकृतव्याकरण बहार पडयुं छे. परंतु मूल सूत्र रूपे हजु सुधी बहार न पडेल होवाथी आ केवल सूत्र रूपेज प्रगट करवा यत्न कर्यो छे. अर्ध मागधीना अभ्यासी साधु-साध्वी अथवा गृहस्थ-विद्यार्थी विगेरेने विशेषतया लाभ थाय ए माटे नानामां नानी साइझ (Pocket Sige) राखी छे. नानी साइझ Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ होवाथी प्रत्येक अभ्यासी सारी रीते पासे राखी शके अने कंठस्थ करी शके. सवृत्तिक पुस्तक मोटी साइझनु होवाथी विहारमा साधु-साध्वीने साथे राखवा प्राय हरकत पडे तेमज विद्यार्थिओ मोटी साइझने संभाली नथी शकता तेथी आ नानी साइझ पसंद करवामां आवी छे. प्राकृत व्याकरणनी अंते सविस्तर प्राकृत धात्वा. देश अकारादिक्रमथी आप्यो छे. एटले प्रथम प्राकृत धातु पछी संस्कृत धातु अने त्यारबाद प्राकृत सूत्रना सपाद अंक एम एक पृष्ठमां त्रण विभाग आपवामां आव्या छे. आधी अभ्यासीने वधु सुगमता पडशे एम मानवू योग्यज छे. प्राकृतमां अमुक धातुनु रूप आव्युं तो संस्कृतमा कयो धातु होवो जोइए ए जाणवा माटे आ धात्वादेश कोष ( Dictionary ) नी गरज पुरी पाडे छे. आ पुस्तक छपाववामा पूज्यपाद, प्रातःस्मरणीय, केलवणीना महान् प्रचारके, आचार्य श्रीविजयवल्लभसूरीश्वरजी महाराजना उपदेशथी अमदावाद शाहपुर निवासी शा. डाह्याभाई पोपटलाले घणी योग्य मदद आपी छे ते बद्दल तेमने धन्यवाद आपवो योग्यज गणाय. Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आ ग्रंथना अंतिम प्रुफो (Proofs) पूज्यपाद, प्रवर्तक, श्रीमान् कांतिविजयजी महाराजना प्रशिष्यरत्न, विद्वान् , संशोधनकार्यमां अतिनिपुण, पूज्यप्रवर, मुनिवर्य, श्रीमान् पुण्यविजयजी महाराजे तपासी आप्या छे. ते माटे तेओश्रीनो अंतःकरणथी आभार मार्नु छ. जो के बनता प्रयत्ने आ प्राकृत व्याकरण शुद्ध करेल छ तथापि दृष्टि दोषथी, अक्षर योजकना दोषथी, के मुद्रण दोषथी कोइ अशुद्धि रहेवा पामी होय तो निसर्ग कृपालु सुज्ञ सुधारवा कृपा करशे. एवी आशा साथे विरमुं छं. उजमबाई धर्मशाला. रतनपोल. अमदाबाद. | निवेदक१९९१ कर्तिकसुदि ५. आत्मसं ३९. [ मुनि चरणविजय. रविवार. ता.११-११-३४.) Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ KOVIN GOOD 60 आचार्य-श्रीविजयवल्लभसूरिभ्यो नमः ॥ कलिकालसर्वज्ञ-श्रीहेमचन्द्राचार्यविरचितं प्राकृतव्याकरणम् । (अष्टमाध्यायसूत्रपाठः) अथ प्राकृतम् ॥ ८।१।१॥ बहुलम् ॥ ८ ॥१२॥ आर्षम् ॥ ८।१।३॥ दीर्घ-हस्वौ मिथो वृत्तौ ॥ ८॥१॥४॥ पदयोः सन्धिर्वा ॥ ८।१।५॥ न युवर्णस्याऽस्वे ॥८।१।६॥ एदोतोः स्वरे ॥८।१।७॥ Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्वरस्योद्वृत्ते ॥ ८॥१८॥ त्यादेः ॥ ८॥१९॥ लुक् ॥ ८ ॥ १।१०॥ अन्त्यव्यञ्जनस्य ॥ ८।१।११॥ न श्रदुदोः ॥ ८।१।१२॥ निर्दुरोर्वा ॥ ८॥१॥१३॥ स्वरेऽन्तरश्च ॥ ८।१ । १४ ॥ स्त्रियामादविद्युतः ॥ ८।१।१५ ॥ रोरा ॥ ८।१।१६ ॥ क्षुधो हा ॥ ८।१।१७॥ शरदादेरत् ॥ ८।१।१८॥ दिक्-प्रावृषोः सः ॥ ८।१।१९ ॥ आयुरप्सरसोर्वा ॥ ८ । १ । २० ॥ ककुभो हः ॥ ८ ॥ १।२१॥ धनुषो वा ॥८॥१॥२२॥ Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३ मोऽनुस्वारः || ८ | १ | २३ ॥ वा स्वरे मश्च ॥ ८ । ड---नो व्यञ्जने ॥ १ । २४ ॥ ८ । १ । २५ ॥ वक्रादावन्तः ॥ ८ । १ । २६ ॥ क्त्वा स्यादेर्ण स्वोर्वा ॥ ८ । १ । २७ ॥ विंशत्यादेर्लुक् ॥ ८ । १ । २८ ॥ मांसादेव ॥ ८ । १ । २९ ॥ वर्गेऽन्त्यो वा ॥ ८ । १ । ३० ॥ प्रावृट् शरत्-तरणयः पुंसि ॥ ८ । १ । ३१ ॥ स्नमदाम - शिरो नभः ॥ ८ । १ । ३२ ॥ वाक्ष्यर्थ वचनाद्याः ॥ ८ । १ । ३३ ॥ गुणाद्याः क्लीबे वा ॥ ८ । १ । ३४ ॥ माल्याद्याः स्त्रियाम् ॥ ८ । १ । ३५ ॥ बाहोरात् ॥ ८ । १ । ३६ ॥ अतो डो विसर्गस्य ॥ ८ । १ । ३७ ॥ Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४ निष्प्रती ओत्परी माल्य-स्थोर्वा ॥ ८।१।३८ ॥ आदेः ।। ८ । १ । ३९॥ त्यदाद्यव्ययात् तत्स्वरस्य लुक् ॥ ८ । १।४० ॥ पदादपे ॥ ८ । १ । ४१ ॥ इतेः स्वरात् तश्च द्विः ॥ ८ । १ । ४२ ॥ लुप्तय-र-व-श-ष-सां श-ष-सां दीर्घः ॥ ८ । ११४३ अतः समृद्ध्यादौ वा ॥ ८ । १ । ४४ ॥ दक्षिणे हे ॥ ८ । १ । ४५ ॥ इः स्वप्नादौ ॥ ८ । १ । ४६ ॥ पक्का - ऽङ्गार ललाटे वा ॥ ८ । १ । ४७ ॥ मध्यम - कतमे द्वितीयस्य ॥ ८ । १ । ४८ ॥ सप्तपर्णे वा ॥ ८ । १ । ४९ ॥ मव्यर्वा ॥ ८ । १ । ५० ॥ ईर्हरे वा ॥ ८ । १ । ५१ ॥ ध्वनि - विष्वचोरुः ॥ ८ । १ । ५२ ॥ Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५ वन्द्र खण्डिते णा वा ॥ ८ । १ । ५३ ॥ गवये वः ॥ ८ । १ । ५४ ॥ प्रथमे पर्वा ॥ ८ । १ । ५५ ॥ ज्ञो णत्वेऽभिज्ञादौ । ८ । १ । ५६ ॥ एच्छय्यादौ ।। ८ । १ । ५७ ॥ वयुत्कर- पर्यन्ता ऽऽश्चर्ये वा ॥ ८ । १।५८ ॥ ब्रह्मचर्ये च । ८ । १ । ५९ ॥ तोऽन्तरि ॥ ८ । १ । ६० ॥ ओत् पद्मे ॥ ८ । १ । ६१ ॥ नमस्कार - परस्परे द्वितीयस्य ॥ ८ | १| ६२ ॥ वाप । ८ । १ । ६३ ।। स्वपावुच्च ॥। ८ । १ । ६४ ॥ नात् पुनर्यादाइ वा ॥ ८ । १ । ६५ ॥ वालाब्वरण्ये लुक् ॥ ८ । १ । ६६ ॥ वाऽव्ययोत्खातादावदातः ॥ ८ । १ । ६७ ॥ Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ घवृद्धा ॥ ८।१।६८॥ महाराष्ट्रे ॥ ८।१।६९ ॥ मांसादिष्वनुस्वारे ॥ ८।१।७०॥ श्यामाके मः॥८॥१॥७१॥ इ. सदादौ वा ॥ ८।१।७२॥ आचार्य चोऽच्च ॥८।१।७३॥ ई: स्त्यान-खल्वाटे ॥ ८।१।७४॥ उः सास्त्रा-स्तावके ॥८॥१।७५॥ ऊद् वाऽऽसारे॥८।१।७६॥ आर्यायां यः श्वश्वाम् ॥८।१।७७॥ एद् ग्राह्ये ॥८।१।७८ ॥ द्वारे वा ॥८॥१॥७९॥ पारापते रो वा ॥ ८।१।८०॥ मात्रटि वा ॥ ८।१।८१॥ उदोद् वाऽऽर्दै ॥ ८।१।८२॥ Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ओदाल्यां पड़ौ ॥ ८।१।८३ ॥ इस्वः संयोगे ॥८।१।८४॥ इत एद्वा ॥८।१।८५॥ किंशुक वा ॥८।१।८६॥ मिरायाम् ॥ ८।१। ८७ ॥ पृथिापृथिवी-प्रतिश्रुन्मूषिक-हरिद्रा बिभीतकेष्वत् ॥ ८।१।८८ ॥ शिथिलेशदे वा ॥ ८।१।८९॥ तित्तिरौ रः॥ ८।१।९०॥ इतो तो वाक्यादौ ॥ ८।१।९१॥ ईर्जिह्वा-सिंह-त्रिंशद्-विंशतो त्या ॥८॥१९२॥ लुकि निरः॥ ८।१।९३ ॥ द्विन्योरुत् ॥ ८।१।९४ ॥ प्रवासीक्षौ ॥ ८।१।९५॥ युधिष्ठिरे वा ॥ ८।१।९६ ॥ Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ओच्च द्विधाकृगः॥८।१।९७ ॥ वा निझरे ना ॥ ८।१।९८॥ हरीतक्यामीतोऽत् ॥ ८।१।९९ ॥ आत् कश्मीरे ॥ ८।१।१०० ॥ पानीयादिष्वित् ॥ ८।१।१०१॥ उज्जीर्णे ॥ ८।१।१०२॥ ऊहीन-विहीने वा ॥ ८।१।१०३ ॥ तीर्थे हे ॥ ८।१।१०४ ॥ एत्पीयूषा-ऽऽपीड-बिभीतक कीदृशेडशे ॥ नीड-पीठे वा ॥८।१।१०६॥ उतो मुकुलादिष्वत् ॥ ८।१।१०७॥ वोपरौ ॥ ८।१।१०८ ॥ गुरौ के वा । ८।१।१०९॥ इधुंकुटौ ॥ ८।१।११० ॥ पुरुषे रोः॥ ८।१।१११॥ Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ईः क्षुते ॥ ८॥ १।११२॥ अत् सुभग-मुसले वा ॥ ८।१।११३॥ अनुत्साहोत्सन्ने त्सच्छे ॥ ८॥१।११४॥ लुकि दुरो वा ॥ ८।१।११५ ॥ ओत् संयोगे॥ ८।१।११६ ॥ कुतूहले वा हस्वश्च ॥ ८।१।११७॥ अदूतः सूक्ष्मे वा ॥८।१।११८॥ दुकूले वा लश्च द्विः॥८।१।११९॥ ईर्वोचूढे ॥ ८।१।१२० ॥ उद्बु-हनूमत्-कण्डूय-वातूले ॥८॥१॥१२॥ मधूके वा ॥८।१।१२२॥ इदेतौ नू पुरे वा ॥८।१।१२३ ॥ ओत् कूष्माण्डी-तूणीर-कूर्पर-स्थूल-ताम्बूल गुडूची-मूल्ये ॥८॥१।१२४ ॥ स्थूणा-तूणे वा ॥८॥१।१२५॥ Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ P ऋतोऽत् ॥८।१।१२६॥ आत् कृशा-मृदुक-मृदुत्वे वा ॥८।११२७॥ इत् कृपादौ ॥८॥१।१२८ ॥ पृष्ठे वाऽनुत्तरपदे ॥८।१।१२९॥ मसूण-मृगाङ्क-मृत्यु-शृङ्ग-धृष्टे वा ॥ १३०॥ उद् ऋत्वादौ ॥८॥१।१३१॥ निवृत्त-वृन्दारके वा । ८।१।१३२ ॥ वृषभेवा वा ।।८।१।१३३ ॥ गौणाऽन्त्यस्य ॥८।१।१३४॥ मातुरिद्वा॥८॥१।१३५॥ उदूदोन्मृषि ।।८।१।१३६ ॥ इदुतौ वृष्ट-वृष्टि-पृथड्-मृदङ्ग-नप्तके १३७ वा बृहस्पती॥८।१।१३८॥ इदेदोद् वृन्ते ॥८॥१।१३९ ॥ रिः केवलस्य ॥८।१।१४० ॥ Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ऋणर्वृषभवृषौ वा ॥ ८॥ १।१४१॥ दृशः क्विफ्-टक्-सकः ॥ ८।१।१४२॥ आदृते ढिः॥ ८।१। १४३ ॥ अरिदृप्ते ॥ ८ । १ । १४४ ॥ लत इलिः कृप्त-कृन्ने ॥ ८।१। १४५ ॥ एत इद्वा वेदना-चपेटा-देवर-केसरे॥१४६॥ ऊः स्तेने वा ॥ ८।१ । १४७॥ ऐत एत् ॥ ८।१।१४८॥ इत् सैन्धव-शनैश्चरे ॥ ८॥ १।१४९ ॥ सैन्ये वा॥८।१।१५०॥ अइदैत्यादौ च ॥ ८ ॥ १। १५१॥ वैरादौ वा ॥ ८ । ११ १५२॥ एच्च दैवे ॥८।१।१५३॥ ॥८।१।१५४॥ Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ईद् धैर्ये ॥ ८।१।१५५॥ ओतोऽद्वाऽन्योन्य-प्रकोष्ठा-ऽऽतोद्य-शिरोवे दना-मनोहर-सरोरुहे तोश्च वः॥१५६॥ ऊत् सोच्छासे ॥ ८।१।१५७॥ गव्यउ-आअः॥८।१।१५८ ॥ औत ओत् ॥८।१।१५९॥ उत् सौन्दर्यादौ ॥८।१।१६०॥ कौक्षेयके वा॥८।१।१६१॥ अउः पौरादौ च ॥८।१।१६२॥ आच्च गौरवे ॥ ८।१।१६३ ॥ नाव्यावः॥८।१।१६४॥ एत् त्रयोदशादी स्वरस्य सस्वरव्यञ्जनेन ॥ स्थविर-विचकिला-ऽयस्कारे ॥ ८॥१११६६ ॥ घा कदले ॥८।१।१६७॥ बेतः कर्णिकारे ॥८।१।१६८॥ 3 Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अयौ वैत् ॥ ८॥१।१६९॥ ओत् पूतर-बदर-नवमालिका-नवफलिका पूगफले ॥८।१।१७०॥ न वा मयूख-लवण-चतुर्गुण-चतुर्थ-चतुर्दशचतुर्वार-सुकुमार-कुतूहलोदूखलोलूखले ॥ अवापोते ॥ ८।१।१७२॥ ऊच्चोपे ॥८।१।१७३ ॥ उमो निषण्णे ॥८।१।१७४॥ प्रावरणे अनवाऊ ॥८।१।१७५ ॥ स्वरादसंयुक्तस्यानादेः॥८।१ । १७६॥ क-ग-च-ज-त-द-प-य-वां प्रायो लुक् ॥१७७॥ यमुना-चामुण्डा-कामुका-ऽतिमुक्तके मोऽनुनासिकश्च ॥ ८।१।१७८॥ नाऽवर्णात् पः॥८॥१।१७९ ॥ अवर्णो यश्रुतिः॥८।१।१८० ॥ Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कुब्ज-कर्पर-कीले कः खोऽपुष्पे ॥ १८१॥ मरकत-मदकले गः कन्दुके त्वादेः ॥१८२॥ किराते चः॥८।१।१८३॥ शीकरे भ-हौ वा ॥८।१।१८४ ॥ चन्द्रिकायां मः॥८।१।१८५॥ निकष-स्फटिक-चिकुरे हः ॥८।१।१८६॥ ख-घ-थ-ध-भाम् ॥८।१।१८७ ॥ पृथकि धो वा ॥८।१।१८८ ॥ शुद्धले खः कः॥८॥१।१८९॥ पुन्नाग-भागिन्योर्गों मः॥८॥१।१९०॥ छागे लः ॥८।१।१९१॥ उत्वे दुर्भग-सुभगे वः॥८।१।१९२ ॥ खचित-पिशाचयोश्च स-लौ वा ॥१९३ ॥ जटिले जो झो वा ॥८॥१।१९४॥ टोडः॥८॥१।१९५॥ Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सटा-शकट-कैटभे ढः॥८।१।१९६ ॥ स्फटिके लः॥ ८।१।१९७॥ चपेटा-पाटौ वा ॥ ८॥ १। १९८ ॥ ठो ढः ॥ ८ । १ । १९९ ॥ अकोठे लः ॥ ८।१।२०० ॥ पिठरे हो वा रश्च डः॥ ८।१। २०१॥ डो लः॥८।१।२०२॥ वेणौ णो वा ॥ ८ ॥ १। २०३॥ ८।१।२०४॥ तगर-त्रसर-तूबरे टः ॥ ८।१।२०५॥ प्रत्यादौ डः॥८।१।२०६॥ इत्वे वेतसे ॥ ८।१।२०७॥ गर्भिता-ऽतिमुक्तके णः ॥ ८।१।२०८॥ रुदिते दिना ण्णः॥ ८।१।२०९॥ सप्ततौ रः ॥ ८॥ १।२१०॥ Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अतसी-सातवाहने लः॥८।१।२११॥ पलिते वा ॥ ८।१।२१२॥ पीते वो ले वा ॥ ८।१।२१३ ॥ वितस्ति-वसति-भरत-कातर__मातुलिङ्गे हः ॥ ८।१।२१४ ॥ मेथि-शिथिर-शिथिल-प्रथमे थस्य ढः॥२१५ निशीथ-पृथिव्योर्वा ॥८॥१॥२१६ ॥ दशन-दष्ट-दग्ध-दोला-दण्ड-दर-दाह-दम्भदर्भ-कदन-दोहदे दो वाडः ॥ ८॥२१७ ॥ दंश-दहोः ॥ ८।१।२१८ ॥ सङ्ख्या-गद्गदे रः॥ ८।१। २१९ ॥ कदल्यामद्रुमे ॥ ८।१।२२० ॥ प्रदीपि-दोहदे लः॥ ८॥ १। २२१॥ कदम्बे वा॥८।१।२२२ ॥ दीपौ धो वा॥८॥१।२२३॥ Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कदर्थिते वः॥८॥१।२२४॥ ककुदे हः॥८॥११२२५॥ निषधे धो ढः॥८।१।२२६॥ वौषधे ॥८।१।२२७॥ नो णः॥८॥१।२२८॥ वाऽऽदौ ॥८।१।२२९ ॥ निम्ब-नापिते ल-ण्हं वा ॥८॥ १।२३०॥ पो वः॥ ८॥१॥२३१॥ पाटि-परुष-परिघ-परिखा-पनस पारिभद्रे फः॥८।१।२३२॥ प्रभते वः॥८॥११२३३॥ नीपा-ऽऽपीडे मो वा ॥८।१।२३४॥ पापद्धौं ः॥८॥१॥२३५॥ फो भ-हौ ॥८॥१॥२३६॥ बो कः॥८॥१।२३७॥ Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बिसिन्यां भः॥८॥१॥२३॥ कबन्धे म-यौ ॥८।१।२३९ ॥ कैटभे भो वः॥८।१।२४०॥ विषमे मो ढो वा ॥ ८।१।२४१॥ मन्मथे वः॥८॥१।२४२॥ वाऽभिमन्यौ॥८॥१।२४३ ॥ भ्रमरे सो वा ॥८।१।२४४॥ आदेर्यो जः॥८।१।२४५ ॥ युष्मद्यर्थपरे तः॥८।१।२४६ ॥ यथ्यां लः ॥८।१।२४७ ॥ वोत्तरीया-ऽनीयन्तीय-कृये जः॥२४८ छायायां होऽकान्तौ वा ॥८।१।२४९॥ डाह-वौ कतिपये ॥ ८।१ । २५० ॥ किरि-भेरे रो डः॥८।१।२५१॥ पयोणे डा वा ॥८।१। २५२ ॥ Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १९ करवीरे णः॥८।१।२५३ ॥ हरिद्रादौ लः॥८।१।२५४ ॥ स्थूले लो रः॥ ८।१।२५५ ॥ लाहल-लागल-लाङ्गले वाऽऽदेणः ॥२५६॥ ललाटेच॥८।१।२५७ ॥ शबरे बो मः॥८।१।२५८ ॥ स्वम-नीव्योवा ॥ ८।१।२५९ ॥ श-षोः सः॥८।१।२६०॥ स्नुषायां हो न वा ॥ ८।१।२६१॥ दश-पाषाणे हः॥ ८।१।२६२॥ दिवसे सः॥८।१।२६३ ॥ हो घोऽनुस्वारात् ॥ ८।१।२६४ ॥ षट्-शमी-शाव-सुधा-सप्तपर्णेष्वादेश्छः २६५ शिरायां वा ॥ ८॥१।२६६ ॥ Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २० लुगू भाजन-दनुज-राजकुले जः सस्वरस्य न वा ॥ ८।१।२६७ ॥ व्याकरण-प्राकारा-ऽऽगते क-गोः।८।१।२६८ किसलय-कालायस-हृदये यः ॥८।१।२६९॥ दुर्गादेव्युदुम्बर-पादपतन-पादपीठेऽन्तः ॥ यावत्-तावजीविता-ऽऽवत्तेमाना-ऽवट-प्रा वारक-देवकुलैवमेवे वः ॥ ८॥१॥२७१॥ इत्याचार्यश्रीहेमचन्द्रविरचिते सिद्धहेमचन्द्राभिधानश ब्दानुशासने अष्टमस्याध्यायस्य प्रथमः पादः ॥१॥ यद्दोमण्डलकुण्डलीकृतधनुर्दण्डेन सिद्धाधिप!, क्रीतं वैरिकुलात् त्वया किल दलत्कुन्दावदातं यशः। भ्रान्त्वा त्रीणि जगन्ति खेदविवशं तन्मालवीनां व्यधादापाण्डौ स्तनमण्डले च धवले गण्डस्थले व स्थितिम्॥१॥ Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१ अर्हम् । अथ द्वितीयः पादः । संयुक्तस्य ॥ ८ । २ । १ ॥ शक्त-मुक्त-दष्ट-रुग्ण-मृदुत्वे को वा ॥ ८|२| २ || क्षः खः कचित्तु छ- झौ ॥ ८ । २ । ३॥ क- स्कयोर्नानि ॥ ८ । २ ॥४॥ शुष्क-स्कन्दे वा ॥ ८ । २।५॥ क्ष्वेकाद || ८ | २ | ६ ॥ स्थाणावहरे || ८ | २|७ ॥ स्तम्भे स्तो वा ॥ ८ ॥ २ ॥८॥ थ-ठावस्पन्दे ॥ ८ । २ । ९॥ रक्ते गो वा ॥ ८ । २ । १० ॥ शुल्के ङ्गो वा ॥ ८ । २ । कृत्ति - चत्वरे चः ॥ ८ । २ । १२ ॥ ११॥ Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ त्योऽचैत्ये॥८॥२॥१३॥ प्रत्यूषे षश्च हो वा ॥ ८॥२॥१४॥ त्व-थ्व-द-ध्वां च-छ-ज-झाः कचित् ॥१५॥ वृश्चिके श्चेञ्चुर्वा ॥८॥२॥१६॥ छोऽक्ष्यादौ॥८॥२॥१७॥ क्षमायां कौ ॥८॥२॥१८॥ ऋक्षे वा ॥ ८॥२॥१९॥ क्षण उत्सवे ॥८॥२॥२०॥ हस्वात् थ्य-श्व-त्स-प्सामनिश्चले ॥२॥२१॥ सामोत्सुकोत्सवे वा ॥ ८॥२॥२२॥ स्पृहायाम् ॥ ८॥२॥२३॥ ध-व्य-या जः॥८॥२॥२४॥ अभिमन्यौ ज-औ वा ॥८॥२॥२५॥ साध्वस-ध्य-ह्या झः॥८॥२॥२६॥ ध्वजे वा॥८॥२॥२७॥ Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३ इन्धौ झा॥८॥२॥२८॥ वृत्त-प्रवृत्त-मृत्तिका-पत्तन-कदर्थिते ट॥२९॥ तस्याऽधूर्त्तादौ ॥ ८॥२॥३०॥ वृन्ते ण्टः ॥ ८॥२॥३१॥ ठोऽस्थि-विसंस्थुले ॥८॥२॥३२॥ स्त्यान-चतुर्था-ऽर्थे वा ॥८॥२॥३३॥ ष्टस्याऽनुष्टेष्टा-सन्दष्टे ॥ ८॥२॥ ३४॥ गर्ते डः ॥ ८॥२॥ ३५॥ सम्मर्द-वितर्दि-विच्छर्द-च्छर्दि-कपर्द मर्दिते देस्य ॥ ८॥२॥३६॥ गर्दभे वा ॥ ८ ॥ २॥ ३७॥ कन्दरिका-भिन्दिपाले ण्डः॥८॥२॥३८॥ स्तब्धे ठ-ढौ ॥ ८।२।३९॥ दग्ध-विदग्ध-वृद्धि-वृद्धे ढः॥८॥२॥४०॥ श्रद्धद्धि-मूधा-ऽधंऽन्ते वा ॥ ८॥२॥४१॥ ॥ Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४ म्न-ज्ञोर्णः ॥ ८।२।४२॥ पञ्चाशत्-पञ्चदश-दत्ते ॥ ८।२।४३ ॥ मन्यौ न्तो वा ॥ ८।२।४४ ॥ स्तस्य थोऽसमस्त-स्तम्बे ॥ ८॥२॥ ४५ ॥ स्तवे वा ॥ ८॥२॥४६॥ पर्यस्ते थ-टौ ॥ ८॥२॥४७॥ वोत्साहे थो हश्च रः॥ ८।२।४८॥ आश्लिष्टे ल-धौ ॥ ८॥२॥४९॥ चिह्नन्धो वा ॥८॥२॥५०॥ भस्मात्मनोः पो वा ॥ ८॥२॥५१॥ म-क्मोः ॥८॥२॥५२॥ .. प्प-स्पयोः फः॥८॥२॥५३॥ भीष्मे मः॥८।२।५४॥ श्लेष्मणि वा ॥ ८।२।५५ ॥ ॥८॥२॥५६॥ Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हो भो वा ॥ ८।२। ५७ ॥ वा विह्वले वो वश्च ॥ ८।२।५८॥ वोर्खे ॥ ८।२। ५९॥ कश्मीरे म्भो वा ॥ ८।२।६० ॥ न्मो मः ॥ ८।२। ६१॥ ग्मो वा ॥ ८।२। ६२॥ ब्रह्मचर्य-तूर्य-सौन्दर्य-शौण्डीर्ये योरः॥६३॥ धैर्ये वा ॥ ८ । २ । ६४॥ एतः पर्यन्ते ॥ ८।२।६५ ॥ आश्चर्ये ॥ ८ ॥ २॥६६॥ अतो रिआ-ऽर-रिज-रीअं॥ ८।२।६७॥ पर्यस्त-पर्याण-सौकुमार्ये लः॥ ८।२।६८॥ बृहस्पति-वनस्पत्योः सो वा ॥ ८।२।६९ ॥ बाष्पे होऽश्रुणि ॥ ८ । २।७० ॥ कार्षापणे ॥ ८॥२।७१॥ Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दुःख-दक्षिण-तीर्थे वा ॥ ८।२।७२ ॥ कूष्माण्ड्यांमो लस्तु ण्डोवा॥८॥२॥७३॥ पक्ष्म-इम-प्म-स्म-झां म्हः ॥ ८॥२।७४ ॥ सूक्ष्म-न-ष्ण-स्न-ह-ह-क्ष्णां ग्रहः ॥८।२।७५॥ हो ल्हः॥ ८।२।७६ ॥ क-ग-ट-ड-त-द-प-श-ष-स-~-कर-पामूर्ध्व लुक् ॥ ८॥२॥७७॥ अधो म-न-याम् ॥ ८।२।७८॥ सर्वत्र ल-ब-रामवन्द्रे ॥ ८।२। ७९॥ द्रे रो न वा ॥ ८।२।८०॥ धाच्याम् ॥ ८।२।८१॥ . तीक्ष्णे णः॥८।२।८२॥ ज्ञो ञः॥८॥२।८३॥ मध्याह्ने हः ॥ ८।२।८४॥ दशाह ॥ ८।२।८५॥ Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आदेः श्मश्रु-श्मशाने ॥ ८।२।८६ ॥ श्चो हरिश्चन्द्रे ॥ ८।२। ८७ ॥ रात्रौ वा ॥ ८।२।८८॥ अनादौ शेषादेशयोर्द्वित्वम् ॥८।२।८९॥ द्वितीय-तुर्ययोरुपरि पूर्वः॥ ८॥२॥९॥ दीर्घ वा ॥ ८।२।९१॥ न दीर्घाऽनुस्वारात् ॥ ८।२।९२ ॥ र-होः ॥ ८।२।९३ ॥ धृष्टद्युम्ने णः॥ ८।२।९४ ॥ कर्णिकारे वा ॥ ८।२। ९५ ॥ दृप्ते ॥ ८।२।९६॥ समासे वा ॥ ८।२।९७॥ तैलादौ ॥ ८।२।९८॥ सेवादौ वा ॥ ८।२। ९९ ॥ शाङ्गै डात्पूर्वोऽत् ॥ ८॥२॥१०॥ Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्ष्मा-श्लाघा-रत्नेऽन्त्यव्यञ्जनात्॥८।२।१०१॥ स्नेहाऽग्योवा ॥ ८।२।१०२॥ प्लक्षे लात् । ८।२।१०३॥ ह-श्री-ही-कृत्स्न-क्रिया-दिष्ट्यास्वित्॥१०४॥ र्श-प-तप्त-वने वा ॥ ८।२।१०५॥ लात् ॥ ८।२।१०६॥ स्याद्-भव्य-चैत्य-चौर्यसमेषु यात्॥१०७॥ स्वप्ने नात् ॥ ८।२।१०८॥ स्निग्धे वाऽऽदितौ ॥ ८।२।१०९॥ कृष्णे वर्ण वा ॥ ८।२।११०॥ उच्चाहेति ॥ ८।२।१११ ॥ पद्म-छद्म-मूर्ख-द्वारे वा ॥ ८।२।११२॥ तन्वीतुल्येषु ॥ ८।२।११३ ॥ एकस्वरे श्वः-स्वे ॥ ८।२।११४ ॥ ज्यायामीत् ॥ ८।२।११५॥ Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ करेणू-वाराणस्यो र-णोर्व्यत्ययः ॥ ११६ ॥ आलाने ल-नोः ॥ ८ ॥ २॥ ११७ ॥ अचलपुरे च-लोः ॥ ८।२। ११८ ।। महाराष्ट्र ह-रोः ॥ ८ । २ । ११९ ॥ हदे ह-दोः॥ ८।२।१२० ॥ हरिताले र-लोने वा ॥ ८।२। १२१ ॥ लघुके ल-होः ।। ८।२।१२२ ॥ ललाटे ल-डोः ।।८।२।१२३ ॥ ये ह्योः ॥ ८ ॥ २ । १२४॥ स्तोकस्य थोक-थोव-थेवाः॥ ८।२।१२५॥ दुहित-भगिन्योधूआ-बहिण्यौ ॥८।२।१२६॥ वृक्ष-क्षिप्तयो रुक्ख-छूढी ॥ ८।२। १२७॥ वनिताया विलया ॥८२॥ १२८ ॥ गौणस्यपतः कूरः॥ ८ । २ । १२९ ॥ स्त्रिया इत्थी ॥ ८ । २ । १३० ॥ Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३० ८ । २ । १३२ ॥ २ । १३३ ॥ १३५ ॥ धृतेर्दिहिः ॥ ८ । २ । १३१ ॥ मार्जारस्य मञ्जर- वञ्जरौ || वैडूर्यस्य वेरुलिअं ॥ ८ । एहि एत्ता इदानीमः ॥ ८ । २ । १३४ ॥ पूर्वस्य पुरिमः || ८ । २ । त्रस्तस्य हित्-त || ८ । २ । १३६ ॥ बृहस्पती वहो भयः ॥ ८ । २ । १३७ ॥ मलिनोभय- शुक्ति-छुप्ता-ऽऽरब्ध- पदातेर्मइलावह-सिप्पि - छिक्का-ऽऽढत्त - पाइकं ॥ १३८ ॥ दंष्ट्राया दाढा || ८ | २ । १३९ ॥ बहसो बाहिं - बाहिरौ ॥ ८ । २ । १४० ॥ असो हे ।। ८ । २ । १४१ ॥ मातृ-पितुः स्वसुः सिआ च्छौ ॥ ८।२।१४२ ॥ तिर्यचस्तिरिच्छिः ।। ८ । २ । १४३ ॥ गृहस्य घरोsपतौ ॥ ८ । २ । १४४ ॥ - Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शीलाद्यधस्यरः ॥ ८।२। १४५ ॥ क्वस्तुमत्-तूण-तुआणाः ॥ ८॥२।१४६॥ इदमर्थस्य केरः ।। ८ । २ । १४७॥ पर-राजभ्यां क-डिको च ॥ ८ ॥२।१४८॥ युप्मदस्मदोऽज एच्चयः॥ ८।२।१४९॥ बतेवः ।। ८ । २ । १५० ।। सबोङ्गादीनस्यकः ।। ८ । २ । १५१ ॥ पथो णस्यकट ।। ८ । २ । १५२ ॥ इयस्याऽऽत्मनो णयः ।। ८ । २। ५५३ ॥ त्वस्य डिमा-त्ती वा ॥ ८।२।१५४ ॥ अनकोठात् तैलस्य डेल्लः ॥ ८।२।१५५ ॥ यत्तदेतदोऽतोरित्तिअ एतल्लक् च ॥१५६॥ इदंकिमश्च डेत्तिअ-डेत्तिल डेदहाः ॥१५७॥ कृत्वसो हुत्तम् ॥ ८।२। १५८ ॥ आल्विल्लोल्ला-ऽऽल-वन्त-मन्तेत्तर-मणा मतोः Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३२ । २ । १६२ ॥ १६३ ॥ तो दो तसो वा ॥ ८ । २ । १६० ।। पो हि - हत्थाः ॥ ८ । २ । १६१ ॥ वैकाद्दः सि सिअं इआ ॥ ८ डिल्ल-डुलौ भवे ॥ ८ । २ । स्वार्थे कश्च वा ॥ ८ । २ । १६४ ॥ लो नवैकाद्वा ॥ ८ । २ । १६५ ॥ उपरेः संव्याने ॥ ८ । २ । १६६ ॥ भ्रुवो मया डमया ॥ ८ । २ । १६७ ॥ शनैसो डिअम् ॥ ८ । २ । १६८ ॥ मनाको न वा डयं च ।। ८ । २ । १६९ ।। मिश्राड्डालिअः ॥ ८ । २ । १७० ।। रो दीर्घात् ॥ ८ । २ । १७१ ॥ त्वादेः सः ।। ८ । २ । १७२ ॥ विद्युत्-पत्र - पीतान्धाः ॥ ८ । २ । १७३ ॥ गोणादयः ॥ ८ । २ । १७४ ॥ Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३३ अव्ययम् ॥ ८ । २। १७५ ॥ तं वाक्योपन्यासे ॥ ८ ॥२ । १७६ ॥ आम अभ्युपगमे ॥ ८।२।१७७ ॥ णवि वैपरीत्ये ॥ ८ ॥ २॥ १७८ ॥ पुणरुत्तं कृत करणे ॥ ८।२। १७९ ॥ हन्दि विषाद-विकल्प-पश्चात्ताप निश्चय-सत्ये ॥ ८।२। १८०॥ हन्द च गृहाणार्थे ॥ ८ । २ । १८१॥ मिव पिव विव व व विअ इवार्थे वा ॥१८२॥ जेण तेण लक्षणे ॥ ८ । २ । १८३ ॥ णइ चेअ चिअच्च अवधारणे ॥८।२।१८४॥ बले निधारण निश्चययोः ॥ ८।२।१८५॥ किरेर हिर किलार्थे वा ॥ ८ । २ । १८६॥ णवर केवले ॥ ८।२।१८७ ॥ आनन्तर्ये णवरि ॥ ८।२।१८८ ॥ Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३४ अलाहि निवारणे ॥ ८।२।१८९॥ . अण णाई नञर्थे ॥ ८।२।१९० ॥ माई मार्थे ॥ ८ । २ । १९१ ॥ हद्धी निदे ॥ ८।२। १९२॥ वेवे भय-वारण-विषादे ॥ ८।२।१९३॥ वेव च आमन्त्रणे ॥ ८।२। १९४ ॥ मामि हला हले सख्या वा॥८।२।१९५॥ दे सम्मुखीकरणे च ॥ ८।२। १९६ ॥ हुं दान-पृच्छा-निवारणे ॥ ८।२।१९७॥ हुखु निश्चय-वितर्क-सम्भावन-विस्मये॥१९८ ऊ गर्दा-ऽऽक्षेप-विस्मय-सूचने ॥८।२।१९९॥ थू कुत्सायाम् ॥ ८।२।२०० ॥ रे अरे सम्भाषण-रतिकलहे॥८।२।२०१॥ हरे क्षेपे च ॥ ८।२। २०२॥ ओ सूचना पश्चात्तापे ॥ ८।२।२०३ ॥ Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३५ अबो सूचना-दुःख-सम्भाषणा-ऽपराध-वि. स्मया-ऽऽनन्दा-ऽऽदर-भय-खेद-विषाद-पश्चा तापे ॥ ८ । २ । २०४॥ अइ सम्भावने ॥ ८ ॥२। २०५ ॥ वणे निश्चय-विकल्पाऽनुकम्प्ये च ॥२०६॥ मणे विमर्श ॥ ८ । २।२०७॥ अम्मो आश्चर्य ॥ ८ ॥२। २०८ ॥ स्वयमोऽर्थे अप्पणो न वा॥ ८।२।२०९॥ प्रत्येकमः पाडिकं पाडिएकं ॥८।२।२१०॥ उअ पश्य ।। ८ । २।२११ ॥ इहरा इतरथा ॥ ८ । २ । २१२ ॥ एकसरिअंझगिति सम्प्रति ॥ ८।२।२१३॥ मोरउल्ला मुधा ॥ ८।२।२१४ ॥ दराऽधोऽल्पे ॥ ८।२।२१५ ॥ किणो प्रश्ने ॥ ८।२। २१६ ॥ Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६ इ-जे-राः पादपूरणे ॥ ८।२।२१७ ॥ प्यादयः॥८।२।२१८॥ इत्याचार्यश्रीहेमचन्द्रसूरिविरचिते सिद्धहेमचन्द्राभिधानशब्दानुशासने अष्टमस्याध्यायस्य द्वितीयः पादः समाप्तः ॥२॥ द्विषत्पुरक्षोदविनोदहेतोर्भवादवामस्य भवद्धजस्य । अयं विशेषो भुवनैकवीर!, परं न यकाममपाकरोति ॥१॥ Post ALLA RE: Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अहम् । अथ तृतीयः पादः। वीप्स्यात स्यादेवींप्स्ये स्वरे मो वा ॥१॥ अतः सेझैः॥ ८।३।२॥ वैतत्-तदः॥ ८।३।३॥ जसू-शसोलुक् ॥ ८।३।४॥ अमोऽस्य ॥ ८।३।५॥ टा-आमोर्णः ॥ ८।३।६॥ भिसो हि हिँ हिं ॥ ८ ॥३॥ ७॥ डन्सेस्तो-दो-दु-हि-हिन्तो-लुकः ॥८॥३॥८॥ भ्यसस्त्तो-दो-दु-हि-हिन्तो-सुन्तो ॥८॥३॥९॥ डसः स्सः ॥ ८।३।१०॥ डे म्मि डेः ॥ ८।३।११॥ जसू-शसू-डसि-तो-दो-द्वामि दीर्घः ॥ १२ ॥ Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३८ भ्यसि वा ।। ८ । ३ । १३ ॥ टाण- शस्येत् ॥ ८ । ३ । १४ ॥ भिस्-भ्यस्- सुपि ॥ ८ । ३ । १५ ॥ १६ ॥ १७ ॥ ८ । ३ । २० ॥ इदुतो दीर्घः ॥ ८ । ३ । चतुरो वा ॥ ८ । ३ । लुप्ते शसि ।। ८ । ३ । १८ ॥ अक्लीबे सौ ॥। ८ । ३ । १९ ॥ पुंसि जसो डउडओ वा ॥ वोतो डवो ॥ ८ । ३ । २१ ॥ जसू - शसोर्णो वा ॥ ८ । ३ । २२ ङसिङसोः पुं-क्लीबे वा ॥ ८ । ३ । २३ ॥ दो णा ।। ८ । ३ । २४ ॥ क्लीबे स्वरान्म् सेः ॥ ८ । ३ । २५ ॥ जस्-शस हूँ - इं- णयः सप्रागुदीर्घाः ॥ २६ ॥ स्त्रियामुदोतौ वा ॥ ८ । ३ । २७ ॥ ॥ Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३९ ईतः सेश्चा वा ॥ ८ । ३ । २८ ॥ टा-डसू-डेरदादिदेद्वा तु डसेः ॥ २९ ॥ नात आत् ॥ ८ । ३ । ३० ॥ प्रत्यये डीन वा ॥ ८ ॥ ३ ॥ ३१ ॥ अजातेः पुंसः ॥ ८॥ ३ ॥ ३२ ॥ किं-यत्-तदोऽस्यमामि ॥ ८ । ३ । ३३ ॥ छाया-हरिद्रयोः॥ ८ । ३ । ३४ ॥ स्वस्रादेडो॥ ८ । ३ । ३५ ॥ इस्वोऽमि ॥ ८।३ । ३६ ।। नामन्त्र्यात् सौ मः॥ ८ । ३ । ३७ ॥ डो दीघों वा ।।८।३॥ ३८ ॥ ऋतोऽद्वा ॥ ८।३।३९ ॥ नाम्यरं वा ॥ ८।३।४०॥ वाऽऽप ए ॥ ८।३। ४१ ॥ ईदूतोईस्वः ॥ ८ । ३ । ४२॥ Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४० क्विपः ।। ८ । ३ । ४३ ॥ ऋतामुदस्य मौसु वा ॥ ८ । ३ । ४४ ॥ आरः स्यादौ || ८ । ३ । ४५ ॥ आ अरा मातुः ॥ ८ । ३ । ४६ ॥ नान्यरः ।। ८ । ३ । ४७ ॥ आ सौ न वा ॥ ८ । ३ । ४८ ॥ राज्ञः ।। ८ । ३ । ४९॥ ८ । ३ । ५२ ॥ जस-शस् - ङसि - ङसां णो ॥ ८ । ३ । ५० ॥ टो णा ।। ८ । ३ । ५१ ॥ इर्जस्य णो णा - ङौ ॥ इणममामा ॥ ८ । ३ । ५३ ॥ ईद् भिस्यसाऽऽम् - सुपि ॥ ८ । ३ । ५४ ॥ आजस्य टाङसिङस्सु सणाणोष्वण् ॥५५॥ पुंस्यन आणो राजवच्च ॥ ८ । ३ । ५६ ॥ आत्मनष्टो णिआ णइआ ॥। ८ । ३ । ५७ ।। Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अतः सर्वादेर्डेजसः॥ ८।३। ५८ ॥ डेस्सि -म्मि-स्थाः ॥ ८।३। ५९॥ न वानिदमेतदो हिं॥ ८।३। ६० ॥ आमो डेसि ॥ ८।३। ६१॥ किं-तयां डासः ॥ ८।३। ६२॥ किं-यत्-तयो डन्सः ॥ ८।३। ६३ ॥ ईन्यः स्सा से ॥ ८।३। ६४॥ डे हे डाला इआ काले ॥ ८।३। ६५॥ डन्सेन्हीं ॥ ८।३। ६६ ॥ तदो डोः॥ ८।३।६७॥ किमो डिणो-डीसौ ॥ ८।३। ६८॥ इदमेतत्-किं यत्तयष्टो डिणा।।८।३।६९॥ तदो णः स्यादौ क्वचित् ॥ ८।३। ७०॥ किमः कस्त्र-तसोश्च ॥ ८।३ । ७१ ॥ इदम इमः॥८।३।७२॥ Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पुं-स्त्रियोर्न वाध्यमिमिआ सौ॥८॥३॥७३॥ स्सिं-स्सयोरत् ॥८।३ । ७४ ॥ डेर्मेन हः ॥ ८ । ३ । ७५ ॥ न त्थः॥८।३।७६॥ णोऽम्-शस्-टा-भिसि ॥ ८।३।७७॥ अमेणम् ॥ ८।३ । ७८ ॥ क्लीबे स्यमेदमिणमो च ॥ ८।३।७१॥ किमः किं ॥८।३।८०॥ वेदं तदेतदो डन्साम्भ्यां से-सिमौ ॥ ८१॥ वैतदो डन्सेरत्तो ताहे ॥ ८ । ३ । ८२ ॥ त्थे च तस्य लुक् ॥ ८।३ । ८३॥ एरदीतौ स्मौ वा ॥ ८।३।८४ ॥ वैसेणमिणमो सिना ॥ ८॥३॥ ८५ ॥ तदश्च तः सोऽक्लीबे ॥ ८।३।८६॥ वाऽदसो दस्य होऽनोदाम् ॥८॥३॥८७॥ Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४३ मुः स्यादौ ॥ ८ । ३ । ८८ ॥ म्मावये वा ॥ ८ । ३ । ८९ ॥ युष्मदस्तं तुं तुवं तुह तुमं सिना ॥ ९० ॥ भे तुब्भे तुज्झ तुम्ह तुम्हे जय्हे जसा ॥९१॥ तं तुं तुमं तुवं तुह तुमे तुए अमा ॥ ९२ ॥ वो तुज्झ तुब्भे तुम्हे उन्हे भे शसा ॥ ९३ ॥ भेदि दे ते तइ तर तुमं तुमइ तुमए तुमे तुमाइ टा ॥। ८ । ३ । ९४ ॥ भे तुम्भेहिं उज्झेहिं उम्हेहिं तुम्हेहिं उम्हेहिं भिसा ।। ८ । ३ । ९५ ॥ तइ - तुव - तुम तुह-तुम्भा ङसौ ॥ ९६ ॥ तुम्ह तुम्भ तहिन्तो ङसिना ॥ ९७ ॥ तुम्भ- तुय्हो होम्हा भ्यसि ॥ ८ । ३ । ९८ ॥ तइ-तु-ते- तुम्हं तुह-तु-तु-तुम-तुमे - तुमोतुमाइ दि-दे-इ-ए-तुम्भो भोय्हा उसा ॥ ९९ ॥ Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४४ तु वो भे तुब्भ तुब्भं तुब्भाण तुवाण तुमाण तुहाण उम्हाण आमा ।। ८ । ३ । १०० ।। तुमे तुम तुमाइ तइ तए ङिना ॥ १०१ ॥ तु-तुव-तुम तुह-तुभा ङौ ॥ ८ । ३ । १०२ ॥ सुपि ।। ८ । ३ । १०३ ॥ भो म्ह - झौवा ॥ ८ । ३ । १०४ ॥ अस्मदो म अम्मि अम्हि हं अहं अहयं सिना ।। ८ । ३ । १०५ ॥ अह अम् अहो मो वयं भे जसा ॥ १०६ ॥ णे णं मि अम्मि अम्ह मम्ह मं ममं मिमं अहं अमा ।। ८ । ३ । १०७ ॥ अम्हे अम्ही अम्ह णे शसा ॥ १०८ ॥ मए मयाइ म मे ममं ममए ममाइ मइ णे टा ।। ८ । ३ । १०९ ॥ अम्हेहि अम्हाहि अम्ह अम्हे णे भिसा ॥ Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४५ मइ-मम-मह-मज्झा ङसौ ॥ ८ । ३ । १११ ॥ माहौ भ्यसि ॥ ८ । ३ । ११२ ॥ मे मइ मम मह महं मज्झ मज्झं अम्ह अम्हं ङसा ८ ।। ३ । ११३ ॥ मझ अह अहं अम्हे अम्ही अम्हाण ममाण महाण मज्झाण आमा ॥ ११४ ॥ मि मइ ममाइ मए मेडिना ॥ ८ । ३ । ११५ ॥ अम्ह-मम-मह-मज्झा ङौ ॥ ८ । ३ । ११६ ॥ सुपि ।। ८ । ३ । ११७ । स्ती तृतीया ॥ ८ । ३ । ११८ ॥ द्वेद वे ॥ ८ । ३ । ११९ ॥ दुवे दोणि वेणि च जस्-शसा ॥ १२० ॥ त्रेस्तिण्णिः ।। ८ । ३ । १२१ ॥ चतुरश्चत्तारो चउरो चत्तारि ८ । ३ । १२२ ।। सङ्ख्याया आमो ह हं ॥ ८ । ३ । १२३ ॥ Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४६ शेषेऽदन्तवत् ॥ ८॥३।१२४ ॥ न दी? णो ॥ ८।३ । १२५ ।। डन्सेलुक् ॥ ८।३ । १२६ ॥ भ्यसश्च हिः॥ ८।३।१२७॥ डेडेः॥८।३।१२८ ॥ एत् ॥ ८।३। १२९॥ द्विवचनस्य बहुवचनम् ॥ ८।३। १३०॥ चतुर्थाः षष्ठी ॥ ८।३ । १३१ ॥ तादर्थ्यडेवा ॥ ८ । ३ । १३२ ॥ वधाडाइश्च वा ॥ ८।३।१३३ ॥ कचिद् द्वितीयादेः॥ ८ । ३ । १३४ ॥ द्वितीया-तृतीययोः सप्तमी॥८।३।१३५॥ पञ्चम्यास्तृतीया च ॥८।३।१३६ ॥ सप्तम्या द्वितीया ॥ ८ । ३ । १३७॥ क्यडोयलुक् ॥ ८।३।१३८॥ Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ XS त्यादीनामाद्यत्रयस्याद्यस्येचेचौ ।। १३९ ।। द्वितीयस्य स से || ८ | ३ । १४० ॥ तृतीयस्य मिः ।। ८ । ३ । १४१ ॥ वाद्यस्यन्ति ते इरे ॥ ८ । ३ । १४२ ॥ १४३ ॥ मध्यमस्येत्था-चौ ॥ ८ । ३ । तृतीयस्य मो- मु-माः ॥ ८ । ३ । १४४ ॥ अत एवैच से || ८ | ३ । १४५ ॥ सिनास्ते सिः ॥ ८ । ३ । १४६ ॥ मि मो - मैहि म्हो - म्हा वा ॥ ८ । ३ । १४७ ॥ अस्थिस्त्यादिना ॥ ८ । ३ । १४८ ॥ रदेदावावे ।। ८ । ३ । १४९ ॥ गुर्वादेरविर्वा ।। ८ । ३ । १५० ।। भ्रमेराडो वा ॥ ८ । ३ । १५१ ।। लुगावी क्त-भाव-कर्मसु ॥ ८ । ३ । १५२ ॥ अदेलुक्यादेरत आः ॥ ८ । ३ । १५३ ॥ Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४८ मौ वा ॥ ८ । ३ । १५४ ॥ इच्च मो-मु-मे वा ॥ ८ । ३ । १५५ ॥ क्ते ।। ८ । ३ । १५६ ॥ एच्च क्त्वा तुम्-तव्य भविष्यत्सु ॥ वर्त्तमाना- पञ्चमी - शतृषु वा ॥ ८ । ३ । १५८ ॥ १५७ ॥ ज्जा-ज्जे ॥। ८ । ३ । १५९ ॥ ईअ- इज्जौ क्यस्य ॥ ८ । ३ । १६० ॥ दृशि-वचेडींस - डुच्चं ॥ ८ । ३ । १६१ ॥ सी ही हीअ भूतार्थस्य ॥ ८ । ३ । १६२ ॥ व्यञ्जनादीअः || ८ । ३ । १६३ ॥ तेनास्तेरास्य हेसी ॥ ८ । ३ । १६४ ॥ जात् सप्तम्या इव ॥ ८ । ३ । १६५ ॥ भविष्यति हिरादिः ॥ ८ । ३ । १६६ ॥ मि मो - मु- मेस्सा हा नवा ॥ ८ । ३ । १६७ ॥ मो-मु-मानां हिस्सा हित्था ॥ ८ । ३ । १६८ ॥ Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेः स्सं ॥ ८ ३ । १६९ ॥ कृ-दो हं॥ ८।३। १७० ॥ श्रु-गमि-रुदि-विदि-दृशि-मुचि-वचि-छिदिभिदि-भुजां सोच्छं गच्छं रोच्छं वेच्छंदच्छं मोच्छं वोच्छं छेच्छं भेच्छं भोच्छं ॥१७१॥ सोच्छादय इजादिषु हिलुक् च वा॥१७२॥ दुसु मु विध्यादिष्वेकस्मिंस्त्रयाणाम् ॥१७३॥ सोहिवा ॥ ८।३ । १७४ ॥ अत इज्जस्विजहीजे-लुको वा ॥ १७५ ॥ बहुषु न्तु ह मो ॥ ८ । ३ । १७६ ॥ वर्तमाना-भविष्यन्त्योश्च ज जा वा ॥१७७॥ मध्ये च स्वरान्ताद्वा ॥ ८ । ३ । १७८ ॥ क्रियातिपत्तेः ॥ ८ । ३ । १७९ ॥ न्त-माणौ ॥ ८।३।१८० ॥ Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५० शत्रानशः॥ ८।३।१८१॥ ई च स्त्रियाम् ॥ ८।३ । १८२॥ इत्याचार्यश्रीहेमचन्द्रविरचिते सिद्धहेमचन्द्राभिधानशब्दा. नुशासने अष्टमस्याध्यायस्य तृतीयः पादः ॥ ३ ॥ ऊवं स्वर्गनिकेतनादपि तले पातालमूलादपि, त्वत्कीर्तिमति क्षितीश्वरमणे! पारे पयोधेरपि । तेनास्याः प्रमदास्वभावसुलभैरच्चावचैश्चापलैस्ते वाचंयमवृत्तयोऽपि मुनयो मौनव्रतं त्याजिताः॥१॥ Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अहंम् । अथ चतुर्थः पादः। इंदितो वा । ८।४।१॥ कथेवज्जर-पज्जरोप्पाल-पिसुण-सङ्घ-बोल्लचव-जम्प-सीस-साहाः ।। ८।४।२॥ दुःख णिवरः ॥ ८ । ४ । ३ ।। जुगुप्सेझुण-दुगुच्छ-दुगुञ्छाः ।।८।४।४॥ बुभुक्षि-वीज्योणीरव-वोजी ॥ ८ ॥४॥५॥ ध्या-गोझा-गो।। ८।४।६॥ ।४।७॥ उदो ध्मो धुमा ॥ ८ । ४ । ८ ।। श्रदो धो दहः ।। ८ । ४ । ९॥ पिबेः पिज-डल्ल-पट्ट-घोट्टाः ॥ ८।४।१०॥ उद्रातरोरुम्मा चसआ ॥ ८।४।११ ॥ Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ निद्रातेरो हीरोङ्कौ ॥ ८ । ४ । १२ ।। आइग्घः || ८ | ४ । १३ ॥ स्नातेरभुत्तः ।। ८ । ४ । १४ ॥ समः स्त्यः खाः ।। ८ । ४ । १५ ॥ स्थष्ठा थक्क चिट्ठ-निरप्पाः ॥ ८ । ४ । १६ ॥ उदष्ठ-कुक्कुरौ ।। ८ । ४ । १७ ॥ म्ले पायो || ८ | ४ । १८ ।। निर्मो निम्माण निम्मौ ॥ ८ । ४ । १९ ॥ क्षेर्णिज्झरो वा ॥ ८ । ४ १ २० ॥ छदेणेणुम नूम-सन्नुम-ढकौम्वाल-पालाः || ॥ नित्रिपत्योर्णिहोडः ॥ ८ । ४ । २२ ॥ दूङो दूमः ॥ ८ । ४ । २३ धवलेदुमः || ८ | ४ | २४ ॥ तुलेरोहाः ।। ८ । ४ । २५ ॥ विरिचेरोलुण्डोल्लुण्ड- पल्हत्थाः || ८ | ४|२६|| Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तडेराहोड-विहोडौ ॥ ८ । ४ । २७ ॥ मिश्रेवींसाल-मेलवौ ॥ ८ । ४ । २८ ॥ उद्धलेगुण्ठः ॥ ८॥ ४ । २९॥ भ्रमेस्तालिअण्ट-तमाडौ ॥ ८॥ ४ । ३०॥ नशेर्विउड-नासव-हारव-विप्पगालपलावाः ॥ ८।४।३१॥ -दक्खवाः ॥८।४।३२॥ उद्धटेरुग्गः ॥ ८।४।३३॥ स्पृहः सिहः ॥ ८।४ । ३४ ॥ सम्भावेरासङ्घः ॥ ८।४ । ३५ ॥ उन्नमेरुत्थोल्लाल-गुलुगुच्छोप्पेलाः॥३६॥ प्रस्थापेः पट्टव-पेण्डवो ॥ ८ । ४ । ३७ ॥ विज्ञपेर्वोक्का-बुक्कौ ॥ ८।४ । ३८ ॥ अर्परल्लिव-चच्चुप्प-पणामाः॥८॥४॥३९॥ यापेजवः ॥ ८।४। ४० ॥ लावेरोम्वाल-पवालौ ॥ ८।४।४१॥ Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विकोशेः पक्खोडः ।। ८ । ४ । ४२॥ रोमन्थे रोग्गाल-वग्गोलौ ॥ ८।४।४३ ॥ कमेर्णिहुवः ॥ ८ । ४ । ४४ ॥ प्रकाशेणुवः ।। ८।४। ४५ ॥ कम्पेर्विच्छोलः ॥ ८।४। ४६ ॥ आरोपर्वलः ॥ ८ । ४ । ४७ ॥ दोले रङ्खोलः ॥ ८ । ४ । ४८ ॥ रञ्ज रावः॥ ८।४। ४९ ॥ घटेः परिवाडः ॥ ८।४।५० ।। वेष्टेः परिआलः ।। ८ । ४।५१ ।। क्रियः किणो वेस्तु के च ॥ ८।४ । ५२ ।। भियो भा-बीहो ॥ ८ । ४ । ५३ ।। आलीडोऽल्ली ॥ ८ । ४ । ५४ ॥ निलीडेर्णिलीअ-णिलुक्क-णिरिग्ध-लुक्क-लिक्क लिहकाः ॥ ८।४ । ५५ ॥ Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५५ विलीडेविरा ॥ ८॥४॥५६॥ रुते रञ्ज-रुण्टौ ॥ ८।४ । ५७॥ श्रुटेर्हणः॥ ८ । ४ । ५८॥ धूगेधुवः॥ ८।४। ५९ ॥ भुवेहो-हुव-हवाः ॥ ८।४। ६० ॥ अविति हुः॥ ८।४। ६१॥ पृथक्-स्पष्टे णिबडः ॥८।४। ६२॥ प्रभौ हुप्पो वा ॥ ८ । ४ । ६३ ॥ के हूः ।। ८।४।६४॥ कृगेः कुणः ॥ ८।४। ६५॥ काणेक्षिते णिआरः॥ ८ । ४ । ६६ ॥ निष्टम्भाऽवष्टम्भे पिट्ठह-संदाणं ॥८।४।६७॥ श्रमे वावम्फः ॥ ८।४ । ६८॥ मन्युनौष्ठमालिन्ये णिबोलः॥८।४।६९॥ शैथिल्य-लम्बने पयल्लः ॥ ८।४ । ७० ॥ Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 15 निष्पाताच्छोटे णीलुञ्छः ।। ८ । ४ । ७१ ।। क्षुरे कम्मः ॥ ८ । ४ । ७२ ॥ चाटी गुललः || ८ | ४ । ७३ ॥ स्मरेर्झर - झूर-भर-भल-लढ- विम्हर-सुमर पयर - पम्हुहाः ।। ८ । ४ । ७४ ॥ विस्मुः पम्हुस - विम्हर- वीसराः ॥ ८१४।७५ ॥ व्याहृगेः कोक्क पोक्कौ ॥। ८ । ४ । ७६ ॥ प्रसरेः पयलोवेला || ८ | ४ १ ७७ ॥ महमो गन्धे ॥ ८ । ४ । ७८ ।। निस्सरेणीहर- नील-धाड-बरहाडाः ॥ ७९ ॥ जाग्रेजग्गः ॥ ८ ॥ ४ ॥ ८० ॥ व्याप्रेराअड्डुः || ८ | ४ । ८१ ।। संवृगे: साहर माहौ ॥ ८१४।८२ ॥ अहडेः सन्नामः ॥ ८ । ४ । ८३ ॥ प्रहृगेः सारः || ८ । ४ । ८४ ॥ Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अवतरेरोह-ओरसौ ॥ ८।४ । ८५ ॥ शकेश्चय-तर-तीर-पाराः॥ ८।४।८६॥ फकस्थकः ॥८॥४॥ ८७॥ श्लाघः सलहः ॥८।४।८८॥ खचेर्वेअडः ॥ ८।४।८९॥ पचेः सोल-पउलौ ॥ ८।४। ९० ॥ मुचेश्छड्डाऽवहेड-मेलोस्सिक-रेअव-णिल्लु ञ्छ-धंसाडाः॥ ८।४ । ९१ ॥ दुःखे णिबलः ॥ ८।४। ९२ ॥ वञ्चेर्वेहव-वेलव-जूरवोमच्छाः ॥८।४।९३ ॥ रचेरुग्गहा-ऽवह-विडविड्डाः ॥८।४।९४॥ समारचेरुवहत्थ-सारव-समार-केलायाः॥९५ सिचेः सिञ्च-सिम्पौ ॥ ८ । ४ । ९६ ॥ प्रच्छः पुच्छः ॥८।४। ९७ ॥ गर्जेबुकः ॥ ८ । ४ । ९८॥ Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वृषे टिकः ।। ८ । ४ । ९९ ॥ राजेरग्घ-छज्ज-सह-रीर-रेहाः || ८|४|१०० मस्जेराउड्डु - णिउड्ड-बुड्डु खुप्पाः ||८|४| १०१ पुञ्जेरारोल-बमाली ।। ८ । ४ । १०२ ।। लस्जेजहः ॥ ८ । ४ । १०३ ॥ तिजेरोसुकः ।। ८ । ४ । १०४ ।। मृजेरुग्घुस - लुञ्छ- पुञ्छ- पुंस-फुस- पुस- लुहहुल-रोसाणाः ।। ८ । ४ । १०५ ।। भजेर्वेमय मुसुमूर-मूर- सूर- सूड-विर- पवि रञ्ज-करञ्ज-नीरञ्जाः || ८ । ४ । १०६ ।। अनुव्रजेः पडिअग्गः ॥ ८ । ४ । १०७ ।। अर्जेर्विदवः || ८ | ४ । १०८ ।। युजो जुञ्ज - जुञ्ज-जुप्पाः ॥ ८ । ४ । १०९ ।। भुजो भुञ्ज - जिम जैम-कम्मा - ऽण्ह्-समाण चमढ चड्डाः ।। ८ । ४ १ ११० ॥ Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चोपन कम्मवः ।।८।४ । १११ ॥ घटेगढः ।। ८ । ४ । ११२ ।। समो गलः ।। ८ । ४ । ११३ ॥ हासेन स्फुटेमुरः ।। ८ । ४ । ११४ ॥ मण्डेश्चिञ्च-चिञ्चअ-चिञ्चिल-रीड-टिवि डिक्काः ।। ८।४ । ११५ ॥ तुडेस्तोड-तुट्ट-खुट्ट-खुडोक्खुडोलुक्क-णिलुक्क लुक्कोल्लराः ॥ ८ । ४ । ११६ ॥ घूर्णा घुल-घोल-धुम्म-पहलाः ॥८।४।११७॥ विकृतमः ।। ८ । ४। ११८ ॥ कथेरट्टः ।। ८ । ४ । ११९ ॥ अन्थो गण्ठः ॥ ८।४। १२० ।। मन्घु सल-विगेलो ।। ८ । ४ । १२१ ॥ लादेवअच्छः ॥ ८ । ४ । १२२ ॥ नेः सदो मजः ।। ८ । ४ । १२३ ।। Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ छिदेवुहाव-णिच्छल-णिज्झोड-णिवर गिल्लूर-लूराः॥ ८ । ४ । १२४ ।। आङा ओअन्दोद्दालो ॥ ८ । ४ । १२५ ॥ मृदो मल-मढ-परिहट्ट-खड्ड-चड्ड-मड्ड पन्नाडाः॥८।४। १२६ ॥ स्पन्देश्चलुचुलः ॥ ८।४ । १२७ ॥ निरः पदेवलः॥ ८।४।१२८ ॥ विसंवदेविअट्ट-विलोट्ट-फंसाः ॥८।४।१२९॥ शदो झड-पक्खोडौ ॥ ८।४ । १३० ॥ आक्रन्देणीहरः ॥ ८।४ । १३१॥ खिदेजर-विसूरौ ॥ ८।४ । १३२ ॥ रुधेरुत्थङ्घः ।। ८ । ४ । १३३ ।। निषेधेहकः ॥ ८।४ । १३४ ॥ ऋधेजूरः ।। ८।४। १३५ ॥ जनो जा-जम्मी ॥ ८।४ । १३६ ॥ Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तनेस्तड-तड्ड-तड्डव-विरल्लाः॥८॥४।१३७॥ तृपस्थिप्पः ॥ ८ । ४ । १३८॥ ॥८।४।१३९॥ संतपेझङ्खः ॥ ८ । ४ । १४०॥ व्यापेरोअग्गः ॥८।४ । १४१॥ समापेः समाणः ॥ ८ । ४ । १४२॥ क्षिपेर्गलस्था-ऽड्डक्ख-सोल्ल-पेल-जोल-छुह हुल-परी-घत्ताः॥ ८ । ४ । १४३ ॥ उत्क्षिपेगुलगुञ्छोत्थवाऽलत्थोब्भुत्तोस्सिक हक्खुवाः॥८।४ । १४४॥ आक्षिपेीरवः ॥ ८ । ४ । १४५॥ स्वपेः कमवस-लिस-लोहाः॥८।४।१४६॥ वेपेरायम्बा-ऽऽयज्झौ ।। ८ । ४ । १४७॥ विलपेझड-वडवडौ ॥ ८।४।१४८॥ लिपो लिम्पः ॥ ८॥ ४ । १४९॥ Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६२ गुप्येविर-णडो॥ ८।४ । १५० ॥ क्रपोऽवहो णिः ॥ ८ । ४ । १५१॥ प्रदीपेस्तेअव-सन्दुम-सन्धुक्का-ऽन्भुत्ताः१५२ लुभेः सम्भावः ॥ ८।४।१५३ ॥ क्षुभेः खउर-पड्डहौ ॥ ८।४।१५४ ।। आडो रभे रम्भ-ढवौ ॥ ८ । ४ । १५५ ॥ उपालम्भेझव-पच्चार-वेलवाः॥८।४।१५६॥ अवेज़म्भो जम्भा ॥ ८।४।१५७॥ भाराकान्ते नमेर्णिसुढः॥ ८।४।१५८ ॥ विश्रमणिवा ॥ ८।४। १५९॥ आक्रमेरोहावोत्थारच्छन्दाः ॥८।४।१६०॥ भ्रमेष्टिरिटिल्ल-ढुण्दुल्ल-ढण्ढल्ल-चकम्म-भम्मड-भमड-भमाड-तलअण्ट-झण्ट-झम्प-भुमगुम-फुम-फुस-ढुम-दुस-परी-पराः॥१६१॥ गमेरई-अइच्छा-ऽणुवजा-ऽवजसोकुसा Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६३ Sकुस-पच्चड्डु-पच्छन्द - णिम्महणी-णीण-णीलुक्क-पदअ-रम्भ-परिअल-वोल-परिअल-णिरिणास - णिवहा वहा वहराः ॥ १६२ ॥ आङा अहिपच्चुअः ॥ ८ । ४ । १६३ ॥ समा अभिः ॥ ८ । ४ । १६४ ॥ अभ्याङोम्मत्थः || ८ । ४ । १६५ ॥ प्रत्याङा पलोट्टः || ८ । ४ । १६६ ॥ शमेः पडिसा - परिसामौ ॥ ८ । ४ । १६७ ॥ रमेः संखुड्डु खेड्डो भाव- किलिकिच-कोडुममोट्टाय-णी सर - वेल्लाः ।। ८ । ४ । १६८ ।। पूरेरग्घाडा घोमा-मा-हिरेमाः ।। ८ । ४ । १६९ ॥ त्वरस्तुवर-जअडौ ॥ ८ । ४ । १७० ॥ त्यादिशत्रोस्तूरः ॥ ८ । ४ । १७१ ॥ तुरोऽत्यादौ ॥ ८ । ४ । १७२ ॥ Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६४ क्षरः खिर-झर-पज्झर-पच्चड-णिञ्चल-णि?__आः ॥ ८।४। १७३ ॥ उच्छल उत्थल्लः ॥ ८।४ । १७४॥ विगलेस्थिप्प-णिगृहौ ॥ ८।४ । १७५ ॥ दलि-वल्योर्विसट्ट-वम्फो ॥ ८।४।१७६॥ भ्रंशेः फिड-फिट्ट-फुड-फुट्ट-चुक्क भुल्लाः ॥ नशेणिरणास-णिवहा-ऽवसेह-पडिसा-सेहा ऽवहराः ॥ ८।४। १७८ ॥ अवात् काशो वासः॥ ८।४ । १७९ ॥ संदिशेरप्पाहः ॥ ८।४।१८०॥ दृशो निअच्छ-पेच्छा-ऽवयच्छा-ऽवयज्झ-बज-सबव-देवखोअक्खा-ऽवक्खा-ऽवअक्खपुलोअ-पुलअ-निआ-ऽवआस-पासाः॥१८१ स्पृशः फास-फंस-फरिस-छिव-छिहा-5ऽलुङ्खा ऽऽलिहाः॥ ८।४ । १८२॥ Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रविशे रिअः॥ ८।४ । १८३ ॥ प्रान्मृश-मुषोम्डेसः ॥ ८।४। १८४ ॥ पिषेणिवह-णिरिणास-णिरिणज-रोश्च चड्डाः ॥ ८।४।१८५ ।। भषेभुकः ॥ ८।४ । १८६ ॥ कृषः कड्ड-साअड्डा-ऽञ्चा-ऽणच्छा-ऽयञ्छा___ऽऽइञ्छाः ।। ८।४।१८७ ॥ असावक्खोडः॥८।४ । १८८ ॥ गवेषेर्दण्दुल्ल-ढण्ढोल-गमेस-वत्ताः॥१८९॥ श्लिषेः सामग्गा-ऽवयास-परिअन्ताः॥१९॥ प्रक्षेश्चोप्पडः॥ ८।४। १९१॥ का राहा-ऽहिलङ्घा-ऽहिलङ्घ-वच्च-वम्फ-मह सिह-विलुम्पाः ॥ ८।४।१९२ ॥ प्रतीक्षेः सामय-विहीर-विरमालाः॥१९३ ॥ तक्षेस्तच्छ-चच्छ-रम्प-रम्फाः ॥ ८।४।१९४॥ Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६६ विकसे: को आस-वोसट्टौ ॥ ८ । ४ । १९५ ।। हसेर्गुञ्जः ॥ ८ । ४ । १९६ ॥ स्रंसेर्व्हस - डिम्भौ ॥ ८ । ४ । १९७ ॥ त्रसेर्डर - बोज्ज-वजाः ॥ ८ । ४ । १९८ ॥ न्यसो णिम-णुमौ ॥ ८ । ४ । १९९ ॥ पर्यसः पलोट्ट- पलट्ट - पल्हत्थाः ॥ ८|४|२०० ॥ निःश्वसेर्झङ्खः ॥ ८ । ४ । २०१ ॥ उल्लसेरूसलोसुम्भ- णिलस-पुलआअ गुञ्जोला - SSरोआः ।। ८ । ४ । २०२ ।। भासेर्भिसः ।। ८ । ४ । २०३ ॥ ग्रसेर्धिसः || ८ | ४ | २०४ ॥ अवाद् गार्वाहः || ८ | ४ | २०५ ।। आरुहेश्वड - वलग्गौ ॥। ८ । ४ । २०६ ॥ मुगुम्म - गुम्मडौ ॥ ८ । ४ । २०७ ॥ दहेरहिऊला - ऽऽलुङ्खौ || ८ । ४ । २०८ ।। Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६७ ग्रहो वल- गेह-हर-पङ्ग-निरुवारा-ऽहि पच्चुआः ॥ ८ । ४ । २०९ ॥ क्त्वा तुम्-तव्येषु घेत् ॥ ८ । ४ । २१० ॥ वचो वोत् ॥ ८ । ४ । २११ ॥ रुद- भुज- मुचां तोऽन्त्यस्य ॥ ८ । ४।२१२ ॥ दृशस्तेन दुः ।। ८ । ४ । २१३ ॥ आः कृगो भूत-भविष्यतोश्च ॥ ८।४।२१४ ॥ गमिष्यमासां छः ॥ ८ । ४ । २१५ ॥ छिदि - भिदो न्दः ॥ ८ । ४ । २१६ ॥ युध-बुध-गृध-क्रुध - सिध-मुहां ज्झः ॥ २१७ ॥ रुधो न्ध-भौ च ॥ ८ । ४ । २१८ ॥ सद-पतोर्डः ॥ ८ । ४ । २१९ ॥ कथ वर्धा ढः ॥ ८ । ४ । २२० ॥ वेष्टुः ।। ८ । ४ । २२१ ॥ समो लः ।। ८ । ४ । २२२ ॥ Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वोदः॥८।४। २२३ ॥ स्विदां जः॥ ८ ॥ ४ । २२४ ॥ ब्रज-नृत-मदां चः॥८।४। २२५ ॥ रुद-नमोर्वः॥ ८।४ । २२६ ॥ उद्विजः॥८।४ । २२७ ॥ खाद-धावोर्लक् ॥ ८ । ४ । २२८ ॥ सृजो रः॥ ८।४ । २२९॥ शकादीनां द्वित्वम् ॥ ८।४।२३०॥ ।।४।२३१॥ प्रादेमीलेः॥ ८।४ । २३२॥ उवर्णस्याऽवः॥८।४।२३३ ॥ ऋवर्णस्याऽरः॥८।४ । २३४ ॥ वृषादीनामरिः॥ ८।४।२३५ ॥ रुषादीनां दीर्घः ॥ ८।४।२३६ ॥ युवर्णस्य गुणः ॥ ८।४।२३७॥ Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६९ स्वराणां स्वराः ॥ ८ । ४ । २३८ ॥ व्यञ्जनाददन्ते ॥ ८ । ४ । २३९ ॥ स्वरादतो वा ।। ८ । ४ । २४० ॥ चि-जि-श्रु-हु-स्तु-लू-पू-धूगां णो ह्रस्वश्च ॥ न वा कर्म-भावे वः क्यस्य च लुक् ॥ २४२ ॥ म्मश्चेः ।। ८ । ४ । २४३ ॥ हन् खनोऽन्त्यस्य ॥ ८ । ४ । २४४ ॥ भो दुह - लिह-वह-रुधामुच्चाऽतः ॥ २४५ ॥ दहो झः || ८ । ४ । २४६ ॥ बन्धो न्धः ।। ८ । ४ । २४७ ॥ समनूपाद् रुधेः ॥ ८ । ४ । २४८ ॥ गमादीनां द्वित्वम् ॥ ८ । ४ । २४९ ॥ हु-कृ-दु-ज्रामीरः ।। ८ । ४ । २५० ॥ अर्जेर्विढप्पः ।। ८ । ४ । २५१ ॥ ज्ञो णव - जौ ।। ८ । ४ । २५२ ।। Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ व्याहगे हिप्पः॥ ८॥ ४ । २५३ ॥ . आरभेराढप्पः ॥ ८।४।२५४॥ स्त्रिह-सिचोः सिप्पः॥ ८।४ । २५५ ॥ अहेर्पप्पः॥ ८ । ४ । २५६ ॥ स्पृशेश्छिप्पः ॥८।४।२५७ ॥ केनाऽप्फुण्णादयः ॥ ८।४।२५८ ॥ धातवोऽर्थान्तरेऽपि ॥ ८।४। २५९ ॥ तो दोऽनादौ शौरसेन्यामयुक्तस्य ॥२६०॥ अधः क्वचित् ॥ ८।४ । २६१ ॥ वादेस्तावति ॥ ८।४ । २६२ ॥ आ आमन्त्र्ये सौ वेनो नः॥८॥४।२६३ ॥ मो वा ॥ ८।४।२६४॥ भवद्-भगवतोः॥ ८।४।२६५ ॥ न वा यो व्यः॥ ८।४।२६६ ॥ ८।४।२६७॥. . Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ इह-हचोर्हस्य ॥ ८।४।२६८ ॥ भुवो भः॥ ८।४ । २६९ ॥ पूर्वस्य पुरवः ॥ ८।४ । २७० ॥ क्व इय-दूणौ ॥ ८।४ । २७१ ॥ कृ-गमो डडुअः॥ ८॥ ४ । २७२ ॥ दिरिचेचोः ॥ ८।४ । २७३ ॥ अतो देश्च ॥ ८।४।२७४ ॥ भविष्यति स्सिः ॥ ८॥ ४ । २७५ ॥ अतो उसेडादो-डादू॥८।४ । २७६ ॥ इदानीमो दाणिं ॥ ८ । ४ । २७७ ॥ तस्मात् ताः॥ ८॥ ४ । २७८ ॥ मोऽन्त्याण्णो वेदेतोः॥ ८।४ । २७९ ॥ एवार्थे य्येव ॥ ८।४ । २८० ॥ हले चेव्याह्वाने ॥ ८ । ४ । २८१॥ हीमाणहे विस्मय-निदे॥८।४।२८२ ॥ Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७२ णं नन्वर्थे ॥ ८।४।२८३ ॥ अम्महे हर्षे ॥ ८।४।२८४ ॥ हीही विदूषकस्य ॥ ८।४ । २८५ ॥ शेषं प्राकृतवत् ॥ ८ । ४ । २८६ ॥ अत एत् सौ पुंसि मागध्याम् ॥८।४।२८७॥ रसोर्ल-शौ ॥ ८।४ । २८८ ॥ स-षोः संयोगे सोऽग्रीष्मे ॥८।४।२८९॥ -ष्ठयोस्टः॥८।४।२९० ॥ स्वर्थयोरतः ॥ ८।४।२९१ ॥ ज-ध-यां यः॥८।४।२९२॥ न्य-ण्य-ज्ञ-खां नः॥८।४।२९३ ॥ प्रजो जः ॥ ८॥ ४ । २९४ ॥ छस्य श्चोऽनादौ ॥ ८।४।२९५ ॥ क्षस्य कः॥८।४।२९६ ॥ स्का प्रेक्षा-ऽऽचक्षोः॥ ८।४ । २९७ ॥ Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७३ तिष्ठश्चिष्ठः ।।८।४।२९८ ॥ अवणोद्वा डसो डाहः ॥ ८।४। २९९ ॥ आमो डाहँ वा ॥ ८।४ । ३०० ॥ अहं-वयमोहगे ॥ ८॥ ४ । ३०१ ॥ शेषं शौरसेनीवत् ॥ ८॥ ४ । ३०२ ।। ज्ञो ञः पैशाच्याम् ॥ ८।४।३०३॥ राज्ञो वा चिञ् ॥ ८ । ४ । ३०४ ॥ न्य-ज्योञ्जः ॥ ८ । ४ । ३०५॥ णो नः ॥ ८॥ ४ । ३०६॥ तदोस्तः ॥ ८ । ४ । ३०७ ॥ लोकः॥८।४।३०८ ॥ दा-पोः सः ॥ ८।४ । ३०९॥ हृदये यस्य पः॥ ८।४ । ३१० ॥ टोस्तुवा ॥ ८ । ४ । ३११॥ क्त्वस्तूनः ॥ ८ । ४ । ३१२ ॥ Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७४ जून-स्थूनौ ट्वः ॥ ८ । ४ । ३१३ ॥ - स्त्र-ष्टां रिय- सिन-सटाः क्वचित् ॥ ३१४ ॥ क्यस्येय्यः ॥ ८ । ४ । ३१५ ॥ कृगो डीरः ॥ ८ । ४ । ३१६ ॥ यादृशादेर्दुस्तिः ।। ८ । ४ । ३१७ ॥ इचेचः ॥ ८ । ४ । ३१८ ॥ आत्तेश्च ।। ८ । ४ । ३१९ ॥ भविष्यत्येय्य एव ॥ ८ । ४ । ३२० ॥ अतो उसेर्डातो-डातू ॥ ८ । ४ । ३२१ ॥ तदिदमोष्टा नेन स्त्रियां तु नाए ॥ ३२२ ॥ शेषं शौरसेनीवत् ॥ ८ । ४ । ३२३ ॥ न क-ग-च-जादि-षट्-शम्यन्त-सूत्रोक्तम् ३२४ चूलिका पैशाचिके तृतीय-तुर्ययोराद्य द्वितीयौ ।। ८ । ४ । ३२५ ॥ रस्य लो वा ॥ ८ । ४ । ३२६ ॥ - Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७५ नादि - युज्योरन्येषाम् ॥ ८ । ४ । ३२७ ।। शेषं प्राग्वत् ॥ ८ । ४ । ३२८ ॥ स्वराणां स्वराः प्रायोsपभ्रंशे ॥ ८।४।३२९ ॥ स्यादौ दीर्घ- ह्रस्व ॥ ८ । ४ । ३३० ॥ स्यमोरस्योत् ॥ ८ । ४ । ३३१ ॥ सौ पुंस्योद्वा ॥ ८ । ४ । ३३२ ॥ एट्टि ।। ८ । ४ । ३३३ ॥ डिनेच्च ॥ ८ । ४ । ३३४ ॥ भिस्येद् वा ॥ ८ । ४ । ३३५ ॥ डसे - हू ।। ८ । ४ । ३३६ ॥ भ्यसो हुं ॥। ८ । ४ । ३३७ ॥ उन्सः सु-हो- रसवः ॥ ८ । ४ । ३३८ ।। आमो हं ॥। ८ । ४ । ३३९ ॥ हुंचेदुवाम् || ८ | ४ | ३४० ॥ ङसि भ्यस् ङीनां हे -हुं-हयः ॥ ८ ॥ ४ । ३४१ ॥ Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आहो णा-ऽनुस्वारौ ॥ ८ । ४ । ३४२ ॥ एं चेदुतः॥ ८।४ । ३४३ ॥ स्यम्-जस-शसां लुक् ॥ ८।४ । ३४४॥ षष्ठ्याः ॥ ८।४ । ३४५ ॥ आमन्ये जसो होः॥ ८।४। ३४६ ॥ भिस्सुपोहि ॥ ८ । ४ । ३४७ ॥ स्त्रियां जस्-शसोरदोत् ॥ ८॥ ४ । ३४८ ॥ ट ए॥ ८।४। ३४९ ।। डसू-डन्स्योहे ॥ ८।४ । ३५० ॥ भ्यसामोर्तुः ॥ ८।४। ३५१ ॥ उहि ॥ ८।४ । ३५२ ॥ क्लीबे जस्-शसोरिं ॥ ८।४ । ३५३ ॥ कान्तस्याऽत उं स्यमोः॥ ८।४। ३५४॥ सर्वादेर्डसेहो ॥ ८४ । ३५५ ॥ किमो डिहे वा ॥ ८।४ । ३५६ ॥ Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७७ देहि || ८ | ४ | ३५७ ॥ यत्-तत्- किंभ्यो ङन्सो डासुर्न वा ॥ ३५८ ॥ स्त्रियां S || ८ | ४ | ३५९ ॥ ८ । ४ । ३६० ॥ यत्-तदः स्यमोर्धं त्रं ॥ इदम इमुः क्लीबे ॥ ८ । ४ । ३६१ ॥ एतदः स्त्री-पुं- क्लीवे एह एहो एहु ॥ ३६२ ॥ एइर्जस्-शसोः ।। ८ । ४ । ३६३ ॥ अदस ओइ || ८ | ४ | ३६४ ॥ इदम आयः ॥ ८ । ४ । ३६५ ॥ सर्वस्य साहो वा ॥ ८ । ४ । ३६६ ॥ किमः काई - कवणौ वा ॥ ८ । ४ । ३६७ ॥ · ३६८ ॥ युष्मदः सौ तुहुं ॥ ८ । ४ । जस-शसो तुम्हे तुम्हई ॥ ८ । ४ । ३६९ ॥ टा- डयमा पई तई ॥ ८ । ४ । ३७० ॥ भिसा तुम्हहिं ॥ ८ । ४ । ३७१ ॥ Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ डसि-डस्भ्यां तउ तुझ तुध्र ।। ८।४।३७२ ।। भ्यसाम्भ्यां तुम्हहं ॥ ८ । ४ । ३७३ ।। तुम्हासु सुपा ।। ८ । ४ । ३७४ ।। सावस्मदो ह ।। ८ । ४ । ३७५ ।। जस-शसोरम्हे अम्हई ॥ ८ । ४ । ३७६ ।। टा-ज्यमा मई ॥ ८।४।३७७ ।। अम्हेहिं भिसा ॥ ८।४ । ३७८ ।। महु मज्झु डसि-डरभ्याम् ॥ ८ । ४ । ३७९ ।। अम्हहं भ्यसाम्भ्याम् ॥ ८।४।३८० ॥ सुपा अम्हासु ॥८।४ । ३८१ ॥ त्यादेराद्यत्रयस्य बहुत्वे हिं न वा ॥ ३८२ ।। मध्यत्रयस्याऽऽद्यस्य हिः॥८।४ । ३८३ ॥ बहुत्वे हुः ॥ ८ । ४ । ३८४ ॥ अन्त्यत्रयस्याऽऽद्यस्य उं ॥ ८ । ४ । ३८५ ।। बहुत्वे हुँ॥ ८।४ । ३८६ ॥ Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७९ हि-स्वयोरिददेत् ॥ ८।४ । ३८७ ॥ वय॑ति-स्यस्य सः॥ ८।४ । ३८८ ॥ क्रियेः कीसु ॥ ८।४ । ३८९ ॥ भुवः पयोप्तौ हुच्चः।। ८।४ । ३९० ॥ ब्रूगो ब्रुवो वा ॥ ८।४। ३९१ ॥ ब्रजेञः ॥८।४। ३९२ ॥ दृशेः प्रस्सः ॥८।४ । ३९३ ॥ ग्रहेण्हः ॥ ८।४ । ३९४ ॥ तक्ष्यादीनां छोल्लादयः॥ ८।४ । ३९५ ॥ अनादौ खरादसंयुक्तानां क-ख-त-थ-प-फां ग-घ-द-ध-ब-भाः॥८।४ । ३९६ ॥ मोऽनुनासिको वो वा ॥ ८।४ । ३९७ ॥ वाऽधो रो लुक् ॥ ८ । ४ । ३९८ ॥ . अभूतोऽपि कचित् ॥ ८।४ । ३९९ ॥ आपद्-विपतू-संपदां द इः॥८॥४।४००॥ Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कथं यथा-तथा थादेरेमेमेहेधा डितः॥४०१ यादृक्-तादृक्-कीदृगीदृशां दादेहः॥४०२ अतां डइसः॥८।४।४०३ ॥ यत्र-तत्रयोस्त्रस्य डिदेत्य्वत्तु ॥८।४।४०४॥ एत्थु कुत्रा-ऽत्रे ॥ ८।४।४०५ ॥ यावत्-तावतोवादेम उं महिं ॥८।४।४०६॥ वा यत्-तदोऽतो.वडः॥८।४।४०७॥ वेदं-किमोर्यादेः ॥ ८।४। ४०८ ॥ परस्परस्याऽदिरः॥ ८।४।४०९॥ कादि-स्थैदोतोरुच्चारलाघवम् ॥८॥४॥४१०॥ पदान्ते उ-हुं-हि-हंकाराणाम् ॥८।४।४११॥ म्हो म्भो वा ॥ ८।४।४१२ ॥ अन्यादृशोऽन्नाइसा-ऽवराइसौ॥८।४।४१३॥ प्रायसः प्राउ-प्राइव-प्राइम्व-पग्गिम्बाः ४१४॥ वाऽन्यथोऽनुः ॥ ८ । ४ । ४१५ ॥ Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कुतमः कउ कहन्तिहु ।। ८ । ४ । ४१६॥ ततस्तदोस्तोः ॥ ८।४ । ४१७ ॥ एवं-परं-सम-ध्रुवं-मा-मनाक एम्व पर समाणु ध्रुवु मं मणारं ।। ८।४। ४१८ ॥ किला-ऽथवा-दिवा-सह-नहेः किरा-ऽहवइ दिवे महुं नाहिं ॥ ८ । ४ । ४१९ ॥ पश्चादेवमेवैवेदानी-प्रत्युतेतसः पच्छइ एम्वइ जि एम्वहिं पञ्चलिउ एत्तहे ॥८।४।४२०॥ विषण्णोक्त-वर्त्मनो बुन्न-वुत्त-विच्चं ॥ ४२१॥ शीघ्रादीनां वहिल्लादयः ॥ ८।४।४२२॥ हुहुरु-घुग्घादयः शब्द-चेष्टानुकरणयोः ४२३ घइमादयोऽनर्थकाः ॥ ८।४। ४२४ ॥ तादर्थ्य केहि-तेहिं-रेसि-रेसिं-तणेणाः॥४२५ पुनर्विनः स्वार्थे डुः ॥ ८।४ । ४२६ ॥ अवश्यमो डें-डौ ॥ ८ । ४ । ४२७ ॥ Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एकशसो डिः॥८।४। ४२८ ॥ अ-डड-डुल्लाः स्वार्थिकक-लुक् च ॥४२९॥ योगजाश्चैषाम् ॥ ८।४ । ४३०॥ स्त्रियां तदन्ताड्डीः ८ । ४ । ४३१॥ आन्तान्ताड्डाः॥८।४। ४३२ ॥ अस्येदे ॥ ८।४।४३३ ॥ युष्मदादेरीयस्य डारः ॥ ८।४ । ४३४ ॥ अतो.त्तुलः॥८।४।४३५ ॥ त्रस्य उत्तहे ॥ ८।४।४३६ ॥ त्व-तलोः प्पणः॥८।४।४३७ ॥ तव्यस्य इएवढं एवढं एवा ॥८।४।४३८॥ क्त्व इ-इउ-इवि-अवयः॥ ८।४।४३९॥ एप्प्येप्पिण्वेव्येविणवः ॥ ८।४। ४४०॥ तुम एवमणा-ऽणहमणहिं च ॥ ८।४।४४१॥ गमेरेप्पिण्वेप्प्योरेलुगू वा॥८।४।४४२॥ Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८३ तृनोऽणः ॥ ८।४ । ४४३ ॥ इवार्थे नं-नउ-नाइ-नावइ-जणि-जणवः ४४४ लिङ्गमतन्त्रम् ॥ ८।४।४४५ ॥ शौरसेनीवत् ॥ ८।४। ४४६॥ व्यत्ययश्च ॥ ८।४।४४७॥ शेषं संस्कृतवत् सिद्धम् ॥ ८।४।४४८॥ इत्याचार्यश्रीहेमचन्द्रविरचिते सिद्धहेमचन्द्राभिधानशब्दानुशासने अष्टमस्याध्यायस्य चतुर्थः पादः समाप्तः। तत्समाप्तौ च समाप्तोऽयमष्टमोऽध्यायः॥ भासीद्विशांपतिरमुद्रचतुःसमुद्र मुद्राङ्कितक्षितिभरक्षमबाहुदण्डः । श्रीमूलराज इति दुर्धरवैरिकुम्भि___ कण्ठीरवः शुचिचुलुक्यकुलावतंसः ॥ १ ॥ तस्यान्वये समजनि प्रबलप्रताप तिग्मधुतिः क्षितिपतिर्जयसिंहदेवः । येन स्ववंशसवितर्यपरं सुधांशी, श्रीसिद्धराज इति नाम निजं व्यलेखि ॥२॥ Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सम्यग् निषेव्य चतुरश्चतुरोऽप्युपाया , जिस्वोपभुज्य च भुवं चतुरब्धिकाञ्चीम् । विद्याचतुष्टयविनीतमतिर्जितात्मा, ___ काष्ठामवाप पुरुषार्थचतुष्टये यः ॥ ३ ॥ तेनाऽतिविस्तृतदुरागमविप्रकीर्ण शब्दानुशासनसमूहकदर्थितेन । अभ्यर्थितो निरवमं विधिवद् व्यधत्त, शब्दानुशासनमिदं मुनिहेमचन्द्रः॥४॥ ॥ सम्पूर्ण प्राकृतव्याकरणम् ॥ Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . संस्कृतादेशप्राकृतधातूनामनुक्रमणिका। प्राकृते अइच्छ गम् अई गम् अकुस गम् प्राकृतसूत्राङ्क: ४।१६२ ४।१६२ ४।१६२ ४।१८८ ४।१८१ ४।१०० ४।१६९ कृष् दृश् राज् अक्खोड अक्ख अग्ध अङ्गुम अग्धव अग्घार्ड अच्छ अञ्च " " " " आस् कृष अह कथ् अटू ४॥२१५ ४।१८७. ४१११९ ४।२३० ४११४३. अ अइक्स शिप Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्राकृते संस्कृते अणच्छ गम् ༈ ཟླ ཀློ ཡྻ ཟླ སྒྱུ . ब. अणुवज्ज अण्ह अप्पाह अभिड अब्भुत्त अब्भुत्त अयञ्छ अलत्थ अलिअ अल्लिव अल्ली अवअक्ख अवअच्छ अवास अवक्ख আনজৰ 现御阴阳例列例四洲阿丽肌,肌 प्राकृतसूत्राङ्कः ४११८७ ४।१६२ ४।११० ४।१८० ४।१६४ ४।१५२ ४।१४ ४।१८७ ४।१४४ ४।१३९ ४१५४ ४।१८१ ४।१२२ ४।१८१ ४।१६२ Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्राकृते अवयच्छ अवयज्झ अवयास अवसेह अवसे ह अवह अवहर अवहर अवहाव अक्हेड अवुक्क अहिऊल अहि पच्चुअ अहिपचुअ अहिरेम अहिलङ्घ अहिल ८७ संस्कृते दृश् दृश् श्लिष् गम् नश् रच वि गम् नश् कृप् मुच् ज्ञप् दहू आड् गम् ग्रह् पूर काङ्क्ष 34 " प्राकृत सूत्राङ्कः ४।१८१ ४।१८१ ४|१९० ४।१६२ ४११७८ ४।९४ ४।१६२ ४।१७८ ४।१५१ ४।९१ ४|३८ ४/२०८ ४।१६३ ४/२०९ ४।१६९ ४।१९२ " " Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कृष् प्राकते . . संस्कृते भाषा आध " आङ् प्रा आइन्छ आउइ आचस्क आढप्प आयज्झ आयम्व आरोअ लस् आरोल पुज् आलिह भालुक स्पृश आलुख आवुक आसङ्घ प्राकृतसूचाङ्क: ४१८१ ४१३ ४।१८७ ४।१०१ ४।२९७ ४।२५४ ४।१४७ म स्पृश् दह ४।२०२ ४११०२ ४।१८२ ४।१८२ ४।२०८ ४।३८ ४।३५ ४।१९२ ४।२७ ज्ञप् 4. भावि आह आहोड Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्राकृत संस्कृते गम् उम उक्त नुह उद घट उरागर उग्घुम प्राकृतसूत्राङ्कः ४।२१५ ४।१६२ ४।११६ ४/३३ ४१९४ ४।१०५ ४।१२ ४।३६ ४।१४४ ४।१३३ ४११६० N उत्था नम् उत्थत उत्थ आड रत्या समय क्रम् शल ४।१७४ आङ छिद उहाल उद्बुमा उप्पाल उप्पेल ४।१२५ ४।१६९ ४।२ कथ नम् उद् stik 2561 Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संस्कृते उद् क्षिप् व अभ्याङ् गम् नम् प्राकृतसूत्राङ्क: ४।१४४ ४॥९३ ४।१६५ ४॥३६ ४।११६ ४।२६ ४।११६ ४।९५ समा रच प्राकृते उन्मुत्त उमच्छ उम्मथ उल्लाल उल्लुक उल्लुण्ड उल्लूर उवहत्य उविव उवेढ उठवेल्ल उज्वेल्ल उस्सिक उस्सिक ऊसल ऊसुम्भ ओअक्ख ४।२२७ ४।२२३ ४।२२३ ४१७७ ४।१४४ ४॥९१ ४।२०२ क्षिप् मुच् उद् लस् ४।१८१ Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ९१ संस्कृते वि आप् आइ छिद् रोमन्थ प्राकृते ओअग्ग ओअन्द योग्गाल ओम्वाल ओम्वाल ओरस ओरुम्मा ओलण्ड प्राकृतसूत्राङ्कः ४११४१ ४।१२५ ४।४३ ४।२१ ४।४१ ४१८५ ४।११ सावि रिच तिज ओमुक ओह ओहाम ओहाव तुल क्रम् ओहीर ४।१०४ ४।८५ ४।२५ ४।१६० ४।१२ ४।१८७ ४।२२० ४।२४९ ४१४६ कड Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्राकृते. संस्कृते प्राकृतसूत्राङ्क: ४।७२ ४११० ४।१११ • भुज कम्म कम्मव करज उप का किण किलिकिञ्च कीर उद् ४।१०६ ४।२१४ ४१५२ ४।१६८ ४।२५० ४।१७ ४।२१७ ४।६५ ४।२३० ४९५ ४।१९५ ४१७६ कुज्झ कुण कुप्प समा र वि का केलाय कोमास कोष कोटमः . 4 Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्राकृते खउर खड्ड खम्म खा खा खिज खिर खुट्ट खुड ཟླ སྠཽ ཨོྃ ཨཻ ཡྻུཾ, ཡྻུཾ ཨཱཿ ཝཱ गण्ठ ९३ संस्कृते क्षुभ् मृद् खज सं स्त्यै खाद् खिद् क्षर तुड् " रम् गम् गम् घट् ग्रन्थ् गम् गवेष् प्राकृतसूत्राङ्कः ४।१५४ ४।१२६ ४।२४४ ४।१५ ४।२२८ ४।२२४ ४/१७३ ४।११६ " " ४|१०१ ४।१६८ ४।२१५ ३।१७१ ४|११२ ४।१२० ४।२४९ ४।१८९ Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्राकृते गल गलत्थ गा गिज्झ गुज गुञ्जोल गुण्ठ गुम गुम्म गुम्मड गुळल गुलगुच्छ गुलुगुञ्छ गृह गेह घस सं उत् ९४ संस्कृते घट् क्षिप् गै गृध् हस् लस् उद् धूल भ्रम् मुह "" 16 कृ उत् क्षिप् उद् नम् ग्रह " क्षिप् प्राकृत सूत्राङ्कः ४|११३ ४। १४३ ४६ ४।२१७ ४।१९६ ४/२०२ ४/२९ ४१६१ ४/२०७ " " ४।७३ ४। १४४ ४१३६ ४।३९४ ४/२०९ ४। १४३ Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्राकृते घत्त घिस घुम्म घुल घुसल घेप्प घोट घोल चकम्म चचुप्प चच्छ चड चडू चडू चड्ड चमढ चय ९५ संस्कृते गवेष् ग्रस् घूण् " मन्थ प्रहू पिब् घूर्ण भ्रम् अर्पि तथ् आड्रुह् मृद् पिष् भुज् 35 श प्राकृत सूत्राङ्कः ४।१८९ ४।२०४ ४।११७ 99 99 ४।१२१ ४।२५६ ४|१० ४।११७ ४।१६१ ४।३९ ४।१९४ ४।२०६ ४।१२६ ४।१८५ ४|११० 99 99 જોક્ Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्राकृते चल्ल चव चिश्व चिञ्चअ चिञ्चिल्ल चिट्ठ चिण चिम्म चिव्ण चुक्क चुलचुल चोप्पड छज छडू छिन्द छिप्प छिन ९६ संस्कृते चल् कथ् मण्डयू 36 " स्था HEER भ्रंश् स्पन्द प्रक्ष राज् मुच् छिद् स्पृह " प्राकृतसूत्राङ्कः ४।२३१ ४/२ ४।११५ "" "" " " ४।१६ ४।२४१ ४।२४३ ४।२४२ ४।१७७ ४।१२७ ४।१९१ ४।१०० ४ । ९१ ४।२१६ ४/२५७ ४।१८२ Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्राकृते . संस्कृते स्पृश छन्द आङ्० क्रम् छुप प्राकृतसूचाङ्क: ४।१८२ ४।१६. ४।२४९ ४।१४३ छुप्प छुह छिद् छेच्छं जअड जग्ग वर जागृ जच्छ कथ् जम्प जम्मा अब• जम्भ जन् जव यापि ४१८० ४।२१५ ४।२, .. ४११५७ ४।१३६ ४॥४. : ४।१३६ ४७. । ४॥२४॥ ४।११० ४॥२१. जिण. जिम जिम्म Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्राकृते संस्कृते जिव्व जीर प्राकृतसूत्राङ्क: ४।२४२ ४।२५० ४।१०३ ४।१०९ ४।२१७ जीह বুল जुज्झ ४।१०९ जुप्प ४।१०९ ४।१३२ ४।१३५ ४।९३ ४।११० ४।१३० ४।१६१ जेम सम्प झर ४१७४ सं० तप वि० लप् ४।१७३ ४।१४० ४।१४८ Page #111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ९९ प्राकृते सङ्क संस्कृते उपा० लम्भ निः श्वस् झत झण्ट झा झुण जुगुप्स स्मृ भ्रम् टिरिटिल्ल टिविडिक प्राकृतसूत्राङ्क: ४।१५६ ४।२०१ ४।१६१ ४६ ४।४ ४१७४. ४।१६१ ४१११५ ४।१७ ४।१६ ४।२४६ ४।१९८ ४।१०. ४११९७ ४।२१ ४४१६१ ४॥१८९ उत० थप * * * * * * * * ags डज्झ डल्ल डिम्भ ढक. ढण्ढल्ल ढण्ढोल. Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्राकृते संस्कृते रभ ढव ढंस ढिक वि० वृत प्राकृतसूत्राङ्क: ४।१५५ ४।११८ ४.९९ ४।१८९ ४१६१ ढुण्डल्ल गवेष् दुम " " णज्न णड णव्व णिआर णिउड्ड णिचल णिच्छल णिज्झर णिज्झोड मज्ज क्षर ४।२५२ ४/१५० ४।२५२ ४।६६ ४१०१ ४।१७३ ४।१२४ ४॥२० ४।१२४ ४।१७३ छिद् छिद् जिअ Page #113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्राकृते हि हि णिम णिम्मह णिरणास णिरिणज्ज णिरिग्ध णिरिणास णिरिणास गिलस णिलीय णिलुक्क णिलुक ਮਿਲਦ पिल्लर णिवह णिवह १०१ संस्कृते वि० गल कृ नि० अस् गम् नश् पिष् नि० लीङ् गम् पिष् उत्• लस् "" नि० लीड् "" तुड मुच् छिद् गम् नश् प्राकृतसूत्राङ्कः ४।१७५ ४१६७ ४।१९९ ૪૧૬૨ ४।१७८ ४।१८५ ४१५५ ४११६२ ४।१८५ ४/२०२ ४/५५ 29 29 ४।११६ ४ ।९१ ४।१२४ ४।१६२ ४।१७८ Page #114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्राकृते णिवह णिव्वड णिव्वर णिव्वर णिव्वल णिव्वा णिव्बोल णिहुव णिहोड णिसुद णी णीण णीरव णीरव णीलुक णीलुन्छ णीसर १०२ संस्कृते पिष् भू कथ् छिद् मुच् वि० श्रम् कृ कम् निर्० वृ०पत् नम् गम् " बुभुक्ष् आब्० क्षिप् गम् कृ रम् प्राकृत सूत्राङ्कः ४।१८५ ४।६२ ४ | ३. ४। १२४ ४९२ ४।१५९ ४१६९ ४।४४ ४।२२ ४।१५८ ४।१६२ " " ४/५ ४।१४५ ४।१६२ ४/७१ ४।१६८ Page #115 -------------------------------------------------------------------------- ________________ णीहर णीहर १०३ संस्कृते निर्० सू आङ्० न्द् छद् गुम. प्राकृतसूत्राङ्क: ४॥७९ । ४।१३१ ४२१ ४।१९९ ४।४५ ४११४३ ४।१९४ ४११३७ णुव्व णोल्ल तच्छ तक्ष तड्डव तमाड भ्रम शक भ्रम ४१३० ४१८६ ४११६१ तलअण्ट तालिअण्ट ४१३० . . शक . ४१८६ ४।२५० ४११६ Page #116 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संस्कते शाहले तुह त्वर तुवर तूर तेअन प्राकृतसूत्रा ४।२३० ४।१७२ ४११७० ४।१७१ ४।१५२ ४१११६ ४११६ ४१८७ ४।१३० ४।१७५ ४१२४१ ४।२४२ ४॥३२ थक चिप्प वि. गल थिप्प.. शुण । शुध्व दह ४।९ ४।३२ दंस ४१३२ Page #117 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्राकृते མཱ སྶ 1 ཡྻཱ ཡཱ ཝཱ ཝཱ སྠཽ ཚ ལླཾ་ སྠཽ ལྤ ཤྲཱ ཡཱ ཤྲཱ ཤྲཱ བྷཱུ ཟླ, दुगुच्छ दुन्म १०५ संस्कृते जुगुप्स " दुह धवल छिद् दू दृश् मुच् धाव् निर्० सृ धूम् उद्० घ्मा ধূস वृत् नद्र नम् प्राकृतसूत्राङ्कः ४|४ " " ४।२४६* ૪૪ ४।१२४ ४।२३ ४।१८१ ४।९१ જાક ४/७९ ૪|૧૪૧ ફોટ ४|५९ ४।२४२ ४/२२५ ४/२३० ४।२२६ Page #118 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्राकृते नरस नासव प्राकृतसूत्राङ्कः ४।२३० ४।३१ : ४।१८१ निअ. ४।१९ निअच्छ निम्मव निम्माण निरप्प निरुवार नीरज नील नूम पउल पक्खोड पक्खोड पञ्चड ४१२०९ ४११०६ ४१७९ ४।२१ ४।९० ४१४२ ४११३० ४।१७३ ४।१६३ ४।१५६ क्षर गम् पञ्चह पचार । उपा. लम्भ Page #119 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्राकृते पच्छन्द पज्ज पज्जर पज्झर पट्ट पट्ठव पड पडिअग्ग पडिसा पडिसा पड्डुह पणाम पदअ पन्नाड पम्हुस पम्हुह पद्म १०७ संस्कृते प्र० गम् पद् कथ क्षर पिब् स्थापय् पत् अनु० व्रज् शम् नशू क्षुभ् अर्पि गम् मृद् वि० स्मृ स्मृ प्रह प्राकृत सूत्राङ्कः ४।१६२ ४।२२४ જાર ४/१७३ ४/१०. ४।३७ ४।२१९ ४।१०७ ४।१६७ ४।१७८ ४।१५४ ४।३९ ४।१६२ ४।१२६ ४/७५ ४/७४ ४/२०९ Page #120 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्राकृते पयर पयल पयल पर परिअन्त परिअल परिक परिथाल परिवाड परिक्षाम परिह परी परी पलान पट्ट पल्हस्थ पल्हस्थ १०८ संस्कृते स्मृ कृ प्र० स भ्रम् विष् गम् "" मेष्ट घट शम् मृद् क्षिप् भ्रम् नश् परि० अस् "" "" वि० रिच् प्राकृतसूत्राङ्कः ४७४ ४/७० ४/७७ ४।१६१ ४।१९० ४।१६२ " " ४/५१ ४/५० ४।१६७ ४।१२६. ४। १४३ ४।१६१ ४।३१ ४/२०० " " ४/२६ Page #121 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०९ संस्कृते प्रत्या० गम् परि. अस् प्राकृते पलोह पलोह पव्वाय पव्वाल पव्वाल पविरज पहल्ल छद प्लावि भज पार प्राकृतसूत्राङ्क: ४।१६६ ४॥२०० ४।१८ ४।२१ ४।४१ ४।१०६ ४।११७ ૪૮૬ ४।१८१ ४।१० ४।२ ४।९७ ४।१०५ ४।२४१ ४।१८१ ४।२०२ ४।१८१ पास पिन पिसुम कथ प्रच्छ पुच्छ पुग्छ पुण पुलभ पुलमा उत्० पुगेम Page #122 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्राकृते ཤྲཱ གླ་ གླ གླ བྷཱུ ླ ཟླ ཝཱ ཡཱ ཝཱ पुस पुंस पेच्छ पेण्डव फरिस फास फिह फिड फुट्ट फुद्द फुड़ फुड ११० संस्कृते पू मृज़ bo " व्या० हृ दृश् प्र० स्थापय् क्षिप् विसं ० वद् स्पृश् " स्पृश् भ्रंस् "" "" स्फुट भ्रंस स्फुट प्राकृत सूत्राङ्कः ४।२१२ ४।१०५ " " ४/७६ ४।१८१ ४|३७ ४। १४३ ४।१२९ ४।१८२ " " ४।१८२ ४।१७७ 23 29 29 29 ४२३१ ४।१७७ ४२३१ Page #123 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्राकृते संस्कृते प्राकृतसूत्राङ्क: ४।१६१ भ्रम फुस फुस मृज बज्झ बन्ध बीह ४११०५ ४।२४७ ४।५३ ४।९८ ४॥२१७ ४११०१ ४।१९८ बुज्झ बुध् मज बोज त्रस् ४॥२ बोल्ल भण्ण कथ भण् ४।२४९ ४।१६१ भमड भम्मड भमाड ४।७४ 取丽打 Page #124 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११२ संस्कृते प्राकृतसूत्राङ्क: भिन्द भिस. भुम ४।२१६ ४।२०३ ४।१८६ ४।२४९ ४।११० ४।१६९ ४।१७७ ३११७१ ३।१७१ ४।२३० ४।२२५ ४११२३ ४।१२६ मेच्छं भोच्छं. मग्ग मच मज्ज मल " " ४१२६ ४।१९२ मह महमह ४१७८ Page #125 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्राकृते मिल्ल मुज्झ संस्कृते मील मुह प्राकृतसूत्रा ४।२३२ ४।२१७ मुण मुर मुसुमूर घट् भा म्हुस प्र० मृश-मुष् मोच्छं भन्ज मुच रम् ४।११४ ४।१०६ ४।१८४ ४।१०६ ३११७१ ४।१६८ ४।२८. ४।९१ ४।१९४ मोहाय मेलव मिश्र मुच तक्ष रम्फ आङ् र गम् ४११५५ ४।१६२ ४१४८ ४।४९. Page #126 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संस्कृते प्र. विश प्राकृते रिम रीड रीर . प्राकृतसूत्राङ्क: ४।१८३ ४।११५ ४।१०० ४।२१८ ४५७ 202 रुभ रोच्छं रोच्च ४।२१८ ४।२४५ ४।२१८ ४।२२६ ३।१७१ ४।१८५ ४।२२६ ४।१०५ रोव रोसाण रेभव ४॥९१ रेह . ४।१०० लग्ग Page #127 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११५ संस्कृते प्राकृते लढ लन्भ ल्हस लभ प्राकृतसूत्राङ्क: ४।७४ ४।२४९ ४।१९७. ४।५५ लिक हिक लिम्प लिब्भ लिप लिह लिस खप लुक लुञ्छ ४।१४९ ४।२४५ ४।१४६ ४/५५ ४।११६ ४।१०५ ४।२४१ ४।२४२ ४।१०५ ४।१२४ ४।१४६ ४॥२३० SEE Page #128 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्राकृते वग्गोल: रोमन्थ वञ्च काल ब्रज वज वज प्राकृतसूत्राङ्क: ४।४३ ४।१९२ ४।२२५ ४।१९८ ४।१८१ ४॥२ ४।१४८ ४।२२० ४।१०२ ४।१७६ ४।१९२ वज्जर कथ वडवड वडू वमाल वम्फ वम्फ वरहाङ वल ४१७९ ४|४७ वल आ० रोपि निर् पद प्रह आङ्० रुह उद् वा ४।१२८ . ४।२०९ ४।२०६ ४।११.. क्लग Page #129 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्राकृते वा वावम्फ वास वाह वाहिप्प विअ विउड विक्क विच्छोल विडविड विढप्प विढव विप्पगाल विम्हर बिम्हर विर विर. ११७ संस्कृते म्ले कृ अव० काश् गाह ** व्या० हृ विसं ० वद नश वि कृ कम्पि रच મ " नश वि० स्मृ 39 भज गुप प्राकृतसूत्राङ्कः ४११८ ४।६८ ४।१७९ ४/२०५ ४/२५३ ४। १२९ ४।३१ ४।५२ ४।४६ ४/९४ ४।२५१ ४।१०८ ४ | ३१ ४/७५ ४/७४ ४।१०६ ४।१५० Page #130 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्राकृते विरमाल विरल्ल विरा विरोल विलुम्प विलो विसह विसूर विहीर विहोड वीसर वीसाल वुब्भ वेड वेढ वेमय बेलव, ११८ संस्कृते प्रति० ईक्ष तन वि० लीड् मन्थ काक्षू विसं० वद दल खिद प्रति० ईक्ष तड वि० स्मृ मिश्र वह खच् वेष्ट् भज् उपा० लम्भू प्राकृत सूत्राङ्कः ४।१९३ ४११३७ ४।५६ ४।१२१ ४।१९२ ४१२९ ४।१७६ ४।१३२ ४।१९३ ४।२७ ४।७५ ४।२८ ४।२४५ ४।८९ ४२२१ ४।१०६ ४।१५६ Page #131 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११९ संस्कृते प्राकृते वेलव प्राकृतसूत्राङ्क: ४।९३ ४।०६८ वेल वेहव दम् ४।९३ वोक वि० ज्ञप वच वोच्छं वोज वीज वोत् वच गम् वोस वि० वोसिर सक कस् सृज शक ४॥३८ ३११७१ ४५ ४॥२११ ४११६२ ४।१९५ ४।२२९ ४॥२३० ४।१६८. ४।२ ४॥२१९ ४१६७ ४११५२ ४।१५२ सङ्घ सड सन्दाण सन्दुम सन्धुक. प्र. प्र० दीप Page #132 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्राकृते सन्नाम सन्नुम समाण समाण समार संभाव संवेल्ल सलह सव्वव सह साअड्ड सामग्ग सामय सार सारव साह साहह सादर १२० संस्कृते आ० दृड् छद भुज आप रच सम्० समा० लुभ सं० वेष्ट श्लाघ दृश राज कृष विष् प्रति० ईक्ष प्र० हृ समा० रच "" ། कथ सं० वॄ 25 " प्राकृत सूत्राङ्कः ४।८३. ४।२१ ४।११० ४।१४२ : ४।९५ ४।१५३ ४।२२२ ४।८८ ४।१८१ ४।१०० ४११८७ ४।१९० ४।१९३ ४|८४ ४९५ કાર ४८२ ४१८२ Page #133 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्राकृते सिज्ज सिज्झ सिञ्च सिप्प सिम्प सिव्व सिह सिह सीस सुण सुमर सुव्व सूड सूर सोल्ल सोल्ल हक. १२१ संस्कृते खिद् सिध सिच स्नेह ० सिच सिच् सिव् स्पृह काङ्क्ष कथ कত হত श्रु स्मृ श्रु भञ्ज "" नश् पच् क्षिप नि० सिध प्राकृत सूत्राङ्कः ४।२२४ ४।२१७ ४।९६ ४/२५५ ४१९६ ४।२३० કાક ४। १९२ ४२ ४।२४१ ४।७४ ४।२४२ ४।१०६ 33 39 ४।१७८ ४।९० ४/१४३. ४।१३४ Page #134 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्राकृते हक्खुव हण 122 संस्कृते उदू० क्षिप हम्म हव हस्स हारव प्राकृतसूत्राङ्क: 4 / 144 4 / 58 4 / 244 4 / 209 4 / 60 4 / 249 4 / 31 4 / 250 4 / 61 4 / 241 4 / 63 4 / 105 4 / 143 4 / 60 4 / 242 4 / 64 4 / 60 He Re ke kee in test